बेटियां, betiyan, एक विचार, समाज का आधार, घर की रौनक

बेटियां एक विचार, समाज का आधार, घर की रौनक


परिचय:

"बेटियाँ" एकदम छोटा सा शब्द लिए, विशाल अर्थ को प्रदर्शित करती भावनाएं। अगर एक शब्द में इसकी व्याख्या हो सकती है , तो वो है, "असीम"।

"बेटियाँ" एकदम छोटा सा शब्द लिए, विशाल अर्थ को प्रदर्शित करती भावनाएं। अगर एक शब्द में इसकी व्याख्या हो सकती है , तो वो है, "असीम"।




   बेटियां  एक विचार, समाज का आधार, घर की रौनक।


"बेटियां " जितनी ही विचारो से सुदृढ़ उतनी ही मन की कोमल।
संभव  नही उसे शब्दो से कागज़ो पर परिभाषित किया जा सके। अनंत की तरह है। थोड़ी सी भावना के बदले हर एक की ख़ुशी उसकी जिंदगी बन जाती है।  जिस घर मे बेटियां नही होती है, उस घर में ख़ुशी तो होती है, पर वो   रौनक नही होती।बचपन से ही जब वो नूपुर पहने आँगन में टहलती है, तो लक्ष्मी के आगमन जैसी खनक हर कोने में गुंजती रहती है। बेटियां, जैसे - जैसे बड़ी होती है, अपनी भावनाओं और मुुस्कान से सबके चेहरे को हर्षित करती रहती है।

ये तो हुई बेटियों की औरो को ख़ुश करने की कहानी, लेकिन एक नजर उसकी खुशी पर भी डालते हैं:

 बेटियों की जन्म तो  कली  के रूप में होती है,100% नही पर अधिकांशतः बहारो से उसकी मुलाकात कम ही होती है। ज्यादातर पतझड़ों से ही उसका सामना होता है। ठीक से बोलो, ठीक से बैठो, ना - ना, ज्यादा मत  बोलो और धीरे बोलो। क्या हुआ? तुम बेटी हो , थोड़ा बर्दास्त कर लो। ये तो हो गई , उसकी बचपन की बाते, सीखते- सीखते ही बिटिया रानी कब बड़ी हो जाती है, या जन्मजात ही बड़ी होती है , इसे समझाने के लिए मै  पाठको पर ही छोड़ती हूँ। 
  बेटियाँ एक विचार, समाज का आधार, घर की रौनक।

अब माँ बेटी के रिश्ते पर थोड़ा ध्यान केंद्रित करती हूँ। 

समझना बहुत मुश्किल है कि बेटियां जन्म के बाद से ही माँ के होठों की मुस्कान होती है या फिर माथे की सिकन, या फिर दोनों! एक तरफ बिटिया की किलकारी होती है तो दूसरी तरफ बढ़ते उम्र के साथ, जो दहेज़ से जुड़ी होती है। बेटियां जहां माँ के आँगन को अपने किलकारियों  से प्रफुल्लित करती है, वहीं वो जुदाई का एक एहसास भी छोड़ती है। माँ के चेहरे के बदलते भाव को जितनी आसानी से वो पढ़ पाती है, उतना हुनर शायद ही किसी रिस्ते मे हो और ठीक वही रिस्ता माँ का भी बेटी के लिये होता है। ये कहने की नही समझने की बाते है, बेटीयों का सुख तो वही समझ सकते हैं, जिनको वो सौभाग्य मिला हो।बेटी और माँ, जैसे सांसो का धड़कन से, इससे क़रीबी रिस्ता भी कोई हो सकता है क्या? बेटियां जितनी माँ के करीब होती है, उतनी ही अपने पापा के आँखों का तारा भी होती है।कभी भी किसी बेटी को समझाना नही पड़ता कि उनके माता-पिता को क्या परेशानी है, या उन्हें क्या चाहिए।चेहरे के बदलते भाव ही काफी होती हैं, और बेटी समझ जाती है।जहाँ तक मेरी अपनी अनुभव है, betiyon के  मुस्कान से ही माँ का आँगन खिला रह सकता है तो दूसरी तरफ उनके दिलो की ठंडक के लिए भी बेटियां ही पूरी तरह सक्षम होती है।
 बेटियां  एक विचार, समाज का आधार, घर की रौनक।

देखते ही देखते न जाने दिन कैसे गुज़र जाता है और फिर वो दिन आता है जिसका  ईंतजार एक समय के बाद हर किसी को होता है, वो है बेटी की शादी का।
                यहां फिर से समझने की जरुरत है, कि शादी का मतलब नये रिस्तो का जुड़ना होता है या फिर पुराने सभी मुस्कुराहटों का हिसाब? जिस घर मे बेटियां अपनी जिंदगी के लगभग एक तिहाई समय खुशी के साथ एक दूसरे का खयाल रखते हुए, या फिर अपनी खिली हुई हंसी से अपनो के चेहरे पर मुस्कान की छाप छोड़ती है, वो घर जहां बेटी का जन्म होता है,वो बड़ी होती है, न जाने कितने सपनो को बुनती है, मेंरा घर, मेंरी फ़ैमिली करते हुए, नही थकती, अचानक ही इस शादी नाम के तूफ़ान में बेटियां बस, असीम से जिम्मेदारी नाम के एहसास में सिकुड़ कर रह जाती है।और उसके सारे रिस्ते, प्यार-दुलार, बस तितर-वितर हो जाते हैं।  कन्यादान नाम के रिवाज के साथ ही ये घर अब उसके लिये पराया हो गया है। जैसे वो कोई इंसान नही, एक पौधा हो, जिसे एक जगह से उखाड़ कर दूसरे जगह लगा जाता है। अब वो इस घर मे आएगी तो जरूर पर मेहमान की तरह। मायका का घर चाहे जितना भी बड़ा हो, पर अब इस घर मे बेटियों के नाम का कोई कमरा नही है। कुछ ही दिनो के लिये तो आएगी, कहीं भी व्यवस्थित हो जाएगी। जैसे बेटियां जान नही  सामान हो गई।
 बेटियाँ एक विचार, समाज का आधार, घर की रौनक।


20-21 साल का, बेटियों का वो उस घर से रिश्ता और उनमें बसे एहसास शादी नाम की आँधी में उड़ कर खोते चले जााते है।

   शादी के बाद बेटियों का नया घर जहां उसके नाम का कमरा तो है, पर उसके ज़ज्बातों के लिये कोई जगह नही।ससुराल में सभी के पसंद-नापसंद की लिस्ट जारी हो गई है, पर वो बेटी जो अभी-अभी बहु में तब्दील हुई है, उसे क्या पसंद है क्या फर्क पड़ता है? माँ के घर मे तो वो अभी भी बच्ची थी, लेकिन यहां उम्र के साथ-साथ, व्यवहार में भी तो रातो-रात सबसे अधिक निपुणता होनी ही चाहिए। बेटी तो थी, अब बहु है, कंप्यूटर में इंटर क्लिक के साथ जैसे सारे रिजल्ट स्क्रीन पर होते हैं, ठीक वैसे ही उस बेटी से बहु में तपदिल हुए बिटिया को होना पड़ेगा।जहाँ तक प्यार की बात है, तो पति, पत्नी(बिटिया) को प्यार तो बहुत करते है, पर परिवार के बीच बोलने का कोई अधिकार नही देते। कोई भी बात हो उनके परिवार का पर्सनल मैटर होता है।
सास - ससुर जो अब से वही माता -पिता है पर बहु तो बहु होती है, बेटी कैसे बन जायेगी?
बेटियाँ एक विचार, समाज का आधार, घर की रौनक।


घर में देवर और ननद भी है जो अब भाई - बहन की जगह लेंगे, पर बात जब भी गलती की आएगी तो गलत भावी ही होगी, जबतक खुद की शादी नही हो जाती।
फिर आता है बच्चो का दौर। जबतक माँ के आँचल में होते है,
उनसे बढ़कर दुनिया मे कोई नहीं होता। पर अब उनके भी पंख आ गए हैं वो भी उड़ान भरने लगे हैं और माँ की सोच रूढ़िवादी हो गई है। बच्चों के अपने संसार हो गए हैं और वो बेटी जो अब माँ के रोल मे है, फिर से उसके ज़ज्बातों की कोई जगह नही। इसमे उन बच्चों का भी कोई दोष नहीं, क्योंकि इतना सोचने का वक्त किसके पास है?   

अंततः जो कली फूल बन खिली थी, कब मानवीय विचारों के थपेड़े में इसका एक-एक पंखुड़ी बिखर जाता है, न वो बेटी समझ पाती है और न ही समाज के बुद्धिजीवी।
कुछ बेटियों के नसीब तो इतने खोटे होते है  कि सारी परेशानियों के साथ - साथ दुर्भाग्य से उन्हें एक नया पोस्ट मिल जाता है, वह है विधवा का।उसके पति के जाने का दुःख शायद कम होता है, इसलिए उसके मनोबल को तोड़ने के लिए हर रोज एक नया रिवाज़ बनाया जाता है।हाँ घर के बाकी सभी का दुःख ज्यादा होता है, बूढ़े माँ - बाप के सामने जवान बेटे के जाने का ग़म, भाई और बहन के लिए उनके भाई के जाने का ग़म।लेकिन सबसे कम दुःख होता है तो वो है,उसकी पत्नी का।उसको क्या हैं? ज़रा श्रृंगार में थोड़ी कटौती होगी, मन का बात मन ही रहेगा, पर खाना तो खाएगी ही न!बो तो छूटने वाला नही जो छोड़ेगी।ख़ैर अब संसार चलाना है तो सबको खुश तो रखना ही परेगा ।हाँ ठीक है, सबका समय कटता है इसका भी कट जाएगा।
अब सबका सेवा करो और खुश रहो।
समझना होगा कि हमारी बेटियां भी हमारे शरीर का ही अंग है, सिर्फ शादी हो जाने से वो पराई नही हो जाती। इस घर में उसका सबसे अनमोल छन गुजरा है,जहाँ उसकी जिम्मेदारी अपने ससुराल और परिवार के प्रति होता है तो दूसरी तरफ मायके की सलामती के लिये भी उसकी प्रार्थना चलती रहती है। उसके जिम्मेदारी के लिस्ट में मायका भी आता है।
जिस घर में वो बहु बन गई है, वहाँ वो अपने पीछे जिंदगी के अनमोल छन और प्रियजन छोड़ कर आई है। चाहे आप उससे जितनी भी उम्मीद रखे पर उसकी भावनाओं का भी ख्याल रखे।

जरूरी नही है कि बेटीयों का सुख पाने के लिए, उसको जनम देना ही जरूरी है, बहु को भी उसी नजऱ से मान-सम्मान देकर देखिये और विस्वास कीजिए वो ज्यादा ही लौटाएगी। कोई भी बेटी अचानक से बहु बनकर, कैसे पूरी तरह बदल सकती है? नया घर जहाँ उसके लिए सबकुछ नया है, नया जन्म जैसा ही तो है। पहले उसको नए माहौल में ढलने दीजीए, कुछ सीखने दीजिए, इतना ही नही, जब सारा ज़िन्दगी उससे अच्छे की उम्मीद लगाए बैठे हैं, तो कुछ नए दिन में आप तो उसको अच्छा देने की कोशिश कीजिए।

धन्यवाद, मैं उम्मीद करती हूँ आपलोग अपने सुझाव से इस ब्लॉग को और अच्छा बनाएंगे।


                                                      ✍️Upeksha❣️









1 Comments

If you have any doubt, please let me know.

  1. समाज और परिवार में हर एक रिस्ते की अपनी पहचान होती है जो कभी भी किसी भी रिस्ते की वज़ह से धूमिल नही होनी चाहिए।

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