असीम आकाश, अजिर बिहारी का सार, प्रेम की रेखा(मानस प्रवचन)

 "असीम प्रकाश"मानस प्रवचन का छोटा सा अंश मात्र है। इस अंश का नाम "असीम प्रकाश" मै ही रखी हूँ।क्योंकि मुझे इसे पढ़कर ऐसा ही लगा।ईश्वर असीम हैं, उनको समझना, कहीं बहुत ही आसान है, तो फिर कहीं बहुत ही मुश्किल। वो प्रकाश की भांति उदयमान है।मुझे उम्मीद है आपको भी पसंद आएगी।

 असीम आकाश(मानस प्रवचन)

असीम प्रकाश, Asim prakash
असीम आकाश


तुमहिं आदि खग मसक प्रयन्ता ।
नभ उड़ाहिं नहिं पावहिं अंता।।
मच्छर से लेकर गरुड़ तक इस असीम आकाश में उड़ते हैं किंतु वे उसका अनन्त नही ढूंढ़ पाते हैं।वेदांत-शास्त्र की मान्यता है कि जीव तथा ब्रह्म तो अभिन्न हैं और उसे समझाने के लिए शब्द चुना गया 'घटाकाश' और 'मठाकाश।' 'घटाकाश' का अर्थ है कि घड़े में जो शून्यता है वह भी आकाश ही है।और मठ के रूप में जो हमारा आपका शरीर है वह भी आकाश ही है।परंतु इस संदर्भ में यह प्रश्न बरे महत्व का है कि जो आकाश, घड़े में अथवा घर में है,वो असीम है कि ससीम।यधपि यह बात समझना सरल है कि जो वस्तु आकार वाली है वह तो टुकड़े में बंट सकती है, पर जो निराकार है वो भला कैसे बंट सकता है।?पर उसके लिए वेदांत की भाषा में हम आकाश न कहकर घटाकाश कह देते हैं।और आकाश (शरीर)को एक घर में देखकर मठाकाश भी कह देते हैं।वस्तुतः आकाश तो सर्वदा अनन्त है भले ही वह घर मे परिभाषित हो रहा हो या घड़े में।
असीम प्रकाश के  संदर्भ में यह विचार कर के देखे कि अगर आकाश अनन्त है तो फिर घट की आवश्यकता जीवन में है कि नही?और इसका एकमात्र उत्तर यह है कि असीम की अनन्ता से हमारे ज्ञान को तो संतोष मिलता है लेकिन-हमारे आवश्यकताओ की जो पूर्ति है वह असिमता से नही होगी।आकाश असीम है यह सोचकर यदि हम उसी असीम आकाश के नीचे रहे तो हमारी क्या दशा होगी? असीम आकाश में जब हम घर बनाते हैं तब भी आकाश तो ज्यों का त्यों ही रहता है, पर उस घर के माध्यम से हम सुरक्षित हो जाते हैं।जब हमने घड़े में आकाश को पाया तब आकाश तो खंडित नही हुआ,टुकड़े में नहीं बंटा लेकिन हां ! हमे प्यास बुझाने के लिए जिस जल की आवश्यकता थी वह तो घट के अंदर ही मिली।निराकार और साकार के संदर्भ में भी ठीक यही सैद्धान्तिक सत्य है।निराकार ब्रह्म तो असीम और अनन्त है।किन्तु इतना जानते हुए भी हम उसे असीम और साकार क्यों बनाते हैं? इसका क्या अर्थ है ?
साधारण दृष्टि से देखे तो ऐसा लगेगा जो असीम, व्यापक ब्रह्म हैं, जब वह एक देश में, एक प्रान्त में तथा एक नगर में जन्म लेता है और एक नगर में भी एक व्यक्ति के महल में जन्म लेता है तब हमें ऐसा लगता है कि वह ब्रह्म तो सीमाओं में घिर गया।पर मानस में गिस्वामी जी भगवान राम की वंदना करते हुए ,एक बड़ी अनोखी बात कह दी।

अजिर बिहारी का सार (मानस प्रवचन)
 

   मानस में गोस्वामी जी ने भगवान राम की वंदना करते हुए कहा है---

मंगल भवन अमंगल हारी।

द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी।।

हे दशरथ अजिर बिहारी ! (बिना थके निरंतर चलते रहना) आप मुझपर द्रवित होइये।यद्यपि लगता तो यही है कि जो समस्त ब्रह्माण्ड बिहारी हैं उसे 'दशरथ अजिर बिहारी'कहकर गोस्वामी जी ने अत्यंत छोटा बना दिया है।पर वस्तुतः निराकार को साकार बनाने के पीछे वृति यही है कि निराकार के द्वारा हमारे ज्ञान का संबर्धन तो होता है,असीमता का बोध तो होता है पर हमारे जीवन की आवश्यकताओ की पूर्ति उस निःसीम को ससीम रूप में देखे बिना नहीं होगी।इसके लिए तो उसे 'दशरथ अजिर बिहारी' की सीमा तक लाना होगा।

असीम प्रकाश, Asim prakash
  असीम प्रकाश, Asim prakash

               वह समस्त ब्रह्माण्ड बिहारी जब तक हम सब(दशरथ) के आंगन में बिहार नही करता तबतक उससे मिलने वाले उस आनन्द का अनुभव हमें हो ही नहीं सकता जो महाराज श्री दशरथ को मिला है।

असीम अनन्त ब्रह्म अनेक रूपो में दिखाई देने पर भी टुकड़ो के रूप में नही बटेगा क्योंकि निःसीम का खंड नही हो सकता।वस्तुतः उसे अगर हम केवल ससीम के रूप में देखे तो भी अधूरापन है और केवल असीम के रूप में देखने पर भी उसके द्वारा समस्या का समाधान नहीं होगा।।इसका सीधा सा सूत्र यह है कि उसे हम जाने तो असीम पर असीम होते हुए भी अपनी भावनाओं की रक्षा करने के लिए, अपने हृदय की तृप्ति के लिए तथा अपने जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए उस ब्रह्मांड बिहारी को हम दशरथ अजिर बिहारी बना ले।यही साधना का चरम उद्देश्य है।वस्तुतः ब्रह्म की असीमता को जान लेना यह ज्ञान है।,तथा उसे सीमाओं में देखना यही भक्ति है।पर यदि उसे हम सचमुच सीमाओं में घिरा हुआ ससीम ही मान ले, फिर तो हमारा ज्ञान अधूरा ही है।इसे श्री राम चरित मानस के कई प्रसंगों में चित्रित किया गया है।

वह ब्रह्म'दशरथ अजिर बिहारी' ही नहीं अपितु सिमटते सिमटते दशरथ के गोद में भी आ जाता है।अब विचार कीजिए कि वह कितना छोटा हो गया होगा कि कौशल्या जी के गोद में भी आ गया था।गोस्वामी जी का अभिप्राय है कि !अगर हम इतना छोटा नहीं बनाऐंगे तो वह कौशल्या जी के गोद में कैसे आएगा ? अगर हम गोद में लेना चाहते हैं तो उसे छोटा बनना होगा।

Prem ki rekha 

  अजिर बिहारी कहकर हम असीम ब्रह्म को छोटा तो करते हैं पर हमें यह नही भुलना चाहिए कि

व्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुण बिगत बिनोद।

सो अज प्रेम भगति बस कौशल्या के गोद।।

ज्ञान कहता है कि वह असीम है और प्रेम कहता है कि वह छोटा है।इसे हम राम और कृष्ण दोनो की असीमिता और कौशल्या एवं यशोदाजी जी के प्रेम को परिभाषित कर सकते हैं।

असीम प्रकाश, Asim prakash
असीम प्रकाश, Asim prakash

यद्द्पि ज्ञान की रेखा तो बड़ी थी पर भक्तों ने प्रेम की ऐसी रेखा खींच दी कि उसके सामने जो व्यापक ब्रह्म था,वह भी छोटा लगने लगा।यहां यह बात याद रखने की जरूरत है कि वह छोटा हो नही गया अपितु छोटा लगने लगा।जैसे सभी समझते हैं कि श्री सीता जी गौरांगी हैं और राम जी स्याम वर्ण।किन्तु गौरांग तो दोनों हैं लेकिन श्री सीता जी के गौरांगता के पीछे श्री राम, स्याम लगने लगते हैं।वस्तुतः ईस्वर छोटे इसलिए दिखाई देते हैं, क्योंकि प्रेम उससे बड़ा है।

दुसरे प्रसंग में, भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप को माँ यशोदा रस्सियों से बाँधने की कोशिश करती हैं पर उतने छोटे बालक को बाँधने के लिए घर की तो छोड़ो पुरे गाँव की रस्सी भी छोटी पर जाती है,

असीम प्रकाश, Asim prakash
असीम प्रकाश, Asim prakash


लेकिन श्री कृष्ण के बाल रूप को बाँध नही पाती है, यह देखकर माँ यशोदा अचंभित नही होती हैं,वो उनके इस चमत्कार से तनिक भी प्रभावित नही होती है।और बस यही कहती रहती है कि मैं तुम्हे बाँध कर ही छोरूँगी।और यही भक्तों का दावा है।भक्त कहता है कि ईस्वर चाहे जितना चमत्कार दिखाए, पर हम उसे बांधे बिना नही छोरेंगे।
उम्मीद है , आपलोगो को ये अंश पसंद आया होगा। आगे भी मैं कोशिश करूँगी कि इसके छोटे-छोटे अंश डालती रहूँ।
पसंद आए तो कृपया कमेंट और सुझाव जरूर दे।
                                      ✍️Upeksha💐

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