"असीम प्रकाश"मानस प्रवचन का छोटा सा अंश मात्र है। इस अंश का नाम "असीम प्रकाश" मै ही रखी हूँ।क्योंकि मुझे इसे पढ़कर ऐसा ही लगा।ईश्वर असीम हैं, उनको समझना, कहीं बहुत ही आसान है, तो फिर कहीं बहुत ही मुश्किल। वो प्रकाश की भांति उदयमान है।मुझे उम्मीद है आपको भी पसंद आएगी।
असीम आकाश(मानस प्रवचन)
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असीम आकाश |
तुमहिं आदि खग मसक प्रयन्ता ।
मंगल भवन अमंगल हारी।
द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी।।
हे दशरथ अजिर बिहारी ! (बिना थके निरंतर चलते रहना) आप मुझपर द्रवित होइये।यद्यपि लगता तो यही है कि जो समस्त ब्रह्माण्ड बिहारी हैं उसे 'दशरथ अजिर बिहारी'कहकर गोस्वामी जी ने अत्यंत छोटा बना दिया है।पर वस्तुतः निराकार को साकार बनाने के पीछे वृति यही है कि निराकार के द्वारा हमारे ज्ञान का संबर्धन तो होता है,असीमता का बोध तो होता है पर हमारे जीवन की आवश्यकताओ की पूर्ति उस निःसीम को ससीम रूप में देखे बिना नहीं होगी।इसके लिए तो उसे 'दशरथ अजिर बिहारी' की सीमा तक लाना होगा।
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असीम प्रकाश, Asim prakash |
वह समस्त ब्रह्माण्ड बिहारी जब तक हम सब(दशरथ) के आंगन में बिहार नही करता तबतक उससे मिलने वाले उस आनन्द का अनुभव हमें हो ही नहीं सकता जो महाराज श्री दशरथ को मिला है।
असीम अनन्त ब्रह्म अनेक रूपो में दिखाई देने पर भी टुकड़ो के रूप में नही बटेगा क्योंकि निःसीम का खंड नही हो सकता।वस्तुतः उसे अगर हम केवल ससीम के रूप में देखे तो भी अधूरापन है और केवल असीम के रूप में देखने पर भी उसके द्वारा समस्या का समाधान नहीं होगा।।इसका सीधा सा सूत्र यह है कि उसे हम जाने तो असीम पर असीम होते हुए भी अपनी भावनाओं की रक्षा करने के लिए, अपने हृदय की तृप्ति के लिए तथा अपने जीवन की समस्याओं के समाधान के लिए उस ब्रह्मांड बिहारी को हम दशरथ अजिर बिहारी बना ले।यही साधना का चरम उद्देश्य है।वस्तुतः ब्रह्म की असीमता को जान लेना यह ज्ञान है।,तथा उसे सीमाओं में देखना यही भक्ति है।पर यदि उसे हम सचमुच सीमाओं में घिरा हुआ ससीम ही मान ले, फिर तो हमारा ज्ञान अधूरा ही है।इसे श्री राम चरित मानस के कई प्रसंगों में चित्रित किया गया है।
वह ब्रह्म'दशरथ अजिर बिहारी' ही नहीं अपितु सिमटते सिमटते दशरथ के गोद में भी आ जाता है।अब विचार कीजिए कि वह कितना छोटा हो गया होगा कि कौशल्या जी के गोद में भी आ गया था।गोस्वामी जी का अभिप्राय है कि !अगर हम इतना छोटा नहीं बनाऐंगे तो वह कौशल्या जी के गोद में कैसे आएगा ? अगर हम गोद में लेना चाहते हैं तो उसे छोटा बनना होगा।
Prem ki rekha
अजिर बिहारी कहकर हम असीम ब्रह्म को छोटा तो करते हैं पर हमें यह नही भुलना चाहिए कि
व्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुण बिगत बिनोद।
सो अज प्रेम भगति बस कौशल्या के गोद।।
ज्ञान कहता है कि वह असीम है और प्रेम कहता है कि वह छोटा है।इसे हम राम और कृष्ण दोनो की असीमिता और कौशल्या एवं यशोदाजी जी के प्रेम को परिभाषित कर सकते हैं।
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यद्द्पि ज्ञान की रेखा तो बड़ी थी पर भक्तों ने प्रेम की ऐसी रेखा खींच दी कि उसके सामने जो व्यापक ब्रह्म था,वह भी छोटा लगने लगा।यहां यह बात याद रखने की जरूरत है कि वह छोटा हो नही गया अपितु छोटा लगने लगा।जैसे सभी समझते हैं कि श्री सीता जी गौरांगी हैं और राम जी स्याम वर्ण।किन्तु गौरांग तो दोनों हैं लेकिन श्री सीता जी के गौरांगता के पीछे श्री राम, स्याम लगने लगते हैं।वस्तुतः ईस्वर छोटे इसलिए दिखाई देते हैं, क्योंकि प्रेम उससे बड़ा है।
दुसरे प्रसंग में, भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप को माँ यशोदा रस्सियों से बाँधने की कोशिश करती हैं पर उतने छोटे बालक को बाँधने के लिए घर की तो छोड़ो पुरे गाँव की रस्सी भी छोटी पर जाती है,
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लेकिन श्री कृष्ण के बाल रूप को बाँध नही पाती है, यह देखकर माँ यशोदा अचंभित नही होती हैं,वो उनके इस चमत्कार से तनिक भी प्रभावित नही होती है।और बस यही कहती रहती है कि मैं तुम्हे बाँध कर ही छोरूँगी।और यही भक्तों का दावा है।भक्त कहता है कि ईस्वर चाहे जितना चमत्कार दिखाए, पर हम उसे बांधे बिना नही छोरेंगे।