एक वनवाशी भीलनी शबरी और एक राजपुत्र राम के बीच हुए सौहार्द और आंनद के पराकाष्ठा को जगह देती, प्रसंग।
एक भीलनी शबरी और राम के बीच का प्रसंग:
कुछ सुनी कुछ अनसुनी।
एक वनवाशी भीलनी शबरी और एक राजपुत्र राम के बीच हुए सौहार्द और आंनद के पराकाष्ठा को जगह देती, प्रसंग।
रामायण का एक प्रसंग जिसमे एक गरीब भीलनी जिसे प्रभु श्री राम ने माता का दर्जा दिया था।
फिर न जाने ऐसा क्या हुआ ?, किसकी साज़िस थी ये कि हमारा देश "भारत" जातियों में जो बटां फिर वो बटता ही चला गया और इस क़दर नासूर हुआ कि आज भी इसका इलाज़ बहुत कठिन प्रतीत हो रहा है।
क्या एक वनवाशी भीलनी शबरी और एक राजपुत्र राम के बीच सौहार्द और आंनद के पराकाष्ठा को जगह दे सकती है?
आइए , श्री राम और बूढ़ी भीलनी शबरी के प्रसंग की ओर चलते हैं।
न जाने कब से बूढ़ी भीलनी शबरी, रोज अपनी कुटिया के सामने साफ करती और रास्ते पर फूल बिछाया करती थी कि न जाने कब उसके प्रभु श्री राम आ जाए।
एक दिन वो भी आया जब भीलनी शबरी एक टक देर तक किसी सदपुरुष को निहारते जा रही थी। वो सद्पुरुष कोई और नही, उसके पूरे जीवन की प्रतीक्षा उसके प्रभु श्री राम अपने अनुज भाई लक्ष्मण के साथ थे।
अचानक ही कुछ देर बाद वृद्धा भीलनी के मुंह से स्वर निकले:
"कहो हे राम ! शबरी की कुटिया को ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ ?
राम मुस्कुराए : बोले, माता यहां तो आना ही था फिर कष्ट कैसा?
भीलनी शबरी फिर कहने लगी: जानते हो राम ! तुम्हारी प्रतीक्षा पल - पल तब से कर रही हूँ, जब तुम्हारा जन्म भी नही हुआ था। ये तक भी नहीं जानती थी, कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था, कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा।
प्रभु श्री राम ने कहा : जानता हूँ माता! तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था, कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है।
उसके बाद दोनों एकदूसरे के प्रति भावविभोर हो बातें करने लगे। लक्ष्मण जी आश्चर्यचकित बस देखते रहे।
भीलनी शबरी कहती है "एक बात बताऊँ प्रभु ! भक्ति में दो प्रकार की शरणागति होती हैं | पहली ‘वानरी भाव’, और दूसरी ‘मार्जारी भाव’|
”बन्दर का बच्चा सदैव अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न... और उसे सबसे अधिक भरोसा अपनी माँ पर ही होता है, और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। भक्त को पता है कि प्रभु हर हाल में मुझे बचा लेंगे और मुझे गिरने नहीं देंगे। दिन रात प्रभु की ही आराधना में लगा रहता है...”(वानरी भाव कहलाता है)
पर मुझे तो वानरी भाव नही, मार्जारी भाव चाहिए। उसी भाव में मुझे रमते जाना है। मैंने कभी वानरी भाव को नहीं अपनाया। मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति रहना चाहती थी जो अपनी माँ को पकड़ती ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठी रहती है कि माँ है न! फिर मुझे किस बात की चिंता! वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और बिल्ली की माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है... मैं भी उसी तरह निश्चिन्त थी कि तुम भी एकदिन आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना...(इसे मार्जारी भाव कहते हैं।)
प्रभु श्री राम मुस्कुरा कर रह गए।
भीलनी शबरी ने पुनः कहा :- "सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक भी कहीं न कहीं अच्छाई छिपी होती है न... “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं”। तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी... यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते ?”
प्रभु श्री राम शबरी की बातों को सुन, थोड़ी गम्भीर मुद्रा में आ जाते हैं और भीलनी शबरी से कहते हैं:
क्या राम वन में सिर्फ 14 वर्ष का वनवास काटने गए थे ?
*ऐसे भ्रम में न पड़ो मांता ! “राम क्या इतनी दूर रावण का वध करने आया है” ?
*रावण का वध तो, लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर भी बड़ी आसानी से कर सकता है।
*राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है....तो है माता आप! राम सिर्फ आपसे मिलने आया है। है माँ, ताकि “सहस्त्रों वर्षों के बाद भी, जब भी कोई भारत के अस्तित्व या संस्कृति पर कोई प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास गर्व कर उत्तर दे सके कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ शबरी ने मिल कर गढ़ा था”।
*जब कोई भारत की परम्पराओं, संस्कृति और सभ्यता के ऊपर उँगली उठाये तो काल उसको चिल्ला कर बता सके कि नहीं ! यह एकमात्र ऐसी संस्कृति और सभ्यता है जहाँ: एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती हुई एक वनवासिनी भीलनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार कर करता है।*
*राम वन में बस इसलिए आया है, ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाय, तो उसमें अंकित हो कि ‘शासन/प्रशासन/सत्ता’ जब पैदल चल कर वन में रहने वाली समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है”।
इतना ही नही, जब भी कोई, भविष्य डगमगाए या भटके तो वो अपने इतिहास से सिख सके कि:
*राम वन में इसलिए भी आया है, ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं, बस लग्नता से वो प्रतिक्षा तो करे। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया हैं मां।*
माता शबरी एकटक राम को बस निहारती जा रही थी, और राम के शब्द उसके कानों में और उसके अन्तर्मन को प्रफुल्लित और एक हर्षोल्लास के ऐसे चरम स्थान तक पहुंचा दिया था जिसकी कल्पना भी स्वयं माता शबरी द्वारा भी नही की जा सकती थी।
राम ने फिर कहा :-
*राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता शबरी ! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य को राह दिखाने और सत्यकर्म पर चलकर आदर्श की स्थापना करने के लिए”।*
*माता शबरी! राम निकला है, ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है” क्योंकि माँ तो माँ है, जिनका स्थान प्रभु ने सबसे ऊपर रखा है।*
*राम निकला है, कि ताकि “भारत विश्व को सीख दे सके कि किसी सीता (अर्थात किसी भी स्त्री) के अपमान का दण्ड असभ्य रावण को ही नही उसके पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होती है”।*
*राम आया है: ताकि “भारत विश्व को बता सके कि जब - जब अन्याय और आतंक बढ़ेगा, तो शस्त्र द्वारा उसका अंत करना ही धर्म और पहला कर्तव्य है”।*
*राम आया है, ताकि “भारत विश्व को सदैव के लिए सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है, कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं जैसी की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों जैसे लोगो द्वारा फैलाए साजिशों के जाल का तार तोड़ा जाय”।*
* और इसलिए भी राम आया है, ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी भीलनी माता शबरी के आशीर्वाद से भी जीते जाते हैं”।*
शबरी की आँखों में जल भर आया था, वो बस राम को एक टक देखे और सुने जा रही थी। ये पल उसको मन आनंद के चरम सीमा पर था।
क्या आपको पता है? प्रभु श्री राम ने माता शबरी के जूठे बेर को भी बड़े प्यार से और स्वाद के साथ ख्या था।
उसने बात बदलते हुए कहा : बहुत दूर से आए हो, थक गए होंगे और भूखे भी होंगे। उसने पूछा "बेर खाओगे राम” ?
राम मुस्कुराए, "बिना खाये, माँ के द्वार से जाऊंगा भी नहीं ।"
शबरी अपनी कुटिया में गई और वहां से झपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख कर बोली खाओ राम! सारे बेर बड़े अच्छे हैं और मीठे भी। मैंने एक - एक को चखकर एकत्रित किया है।
लक्ष्मण को तो खाने में थोड़ी दिक्कत हुई, क्योंकि वो बेर जूठे थे, और भैया राम कहा रहे थे, तो लक्ष्मण भला कैसे मना कर सकते थे।
राम और लक्ष्मण दोनों भीलनी शबरी के बेर खाने लगे।
प्रभु श्री राम ने बेर की प्रशंसा भी की।
*"यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां ! बस इतना समझ रहा हूँ, कि यही अमृत है”|*
सबरी मुस्कुराईं, बोलीं :- *"सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम"*
तो समझने वाली बात है कि, राम ऐसे ही नही बना जाता, राम बनने के लिए त्याग, समर्पण, शालिनता, दूसरे के प्रति दिलों में आदर्श और प्यार का अंबार हो। जो एकतरफ शालीनता और त्याग की मिसाल कायम कर तो दूसरी तरफ, अन्याय का खात्मा करने का भी दम्भ भर सके।
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*रामायण प्रसंग मे: गरीब भीलनी को श्री राम ने माता का दर्जा दिया।
*फिर क्या हुआ कि हमारा "भारत" जातियों में बटता चला गया।
*रावण का वध, लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर,कर सकते थे।
*लेकिन भारत की परम्परा, संस्कृति और सभ्यता जहाँ: एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती,भीलनी से भेंट के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार कर करता है।*
*राम वन गए, ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाय,तो उसमें अंकित हो कि ‘शासन/प्रशासन/सत्ता’ पैदल,वन में रहने वाली समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे।
उम्मीद है, आप सबको ये भीलनी माता शबरी और राम के बीच का प्रसंग पसंद आए, कोई त्रुटि या सुझाव हो तो कृपया कमेंट कर अवश्य बताएं।
🙏🏼💐🌿🚩जय जय सियाराम🚩💐🌿🙏🏼
✍️Shikha Bhardwaj🙏🏼
जय श्री राम 🙏🙏
ReplyDeleteभीलनी माता शबरी और राम के बीच का अत्यंत सुंदर प्रसंग..
🙏🙏💐
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