तुम्हारी ही बातें होंगी।
"तुम्हारी ही बातें होंगी।" एक ख्याल, एक एहसास, एक अधूरापन,एक परिचय।
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तुम्हारी ही बातें होंगी। |
तुम्हारी ही बातें होंगी।
अब तुम नहीं ,
तुम्हारी बातें ही होंगी।
वजूद में नहीं बस एहसासों में होंगी।
चूड़ियों की खनक में न सही,
इन कंगाल कलाइयों में होंगी।
जब भी देखूँगी आईना,
सूनेपन में परिलक्षित
तुम्हारी यादें होंगी।
श्रृंगार में न सही,
प्रत्यक्ष नही प्रलंभ में होंगी,
पर अब सिर्फ तूम्हारी ही बाते होंगी।
सबब और बेसबब होंगी,
अखिल नहीं अधूरे ख्वाबों में होंगी।
स्याह रात से लेकर, रेशमी किरणों तक,
अब सिर्फ तुम्हारी बाते होंगी।
सार्थक नहीं प्रयाशों में होंगी,
वर्तमान और भविष्य,
उपसर्ग और प्रत्यय हैं।
पर तुम मूल रहोगे।
सारे रिस्ते बस छलावे के हैं,
अब भी साथ तुम्ही रहोगे।
वजूद नही एहसासों में होंगी,
पर अब सिर्फ तुम्हारी ही बाते होंगी।
लेखक विचार :-
"तुम्हारी ही बातें होंगी।" एक ख्याल, एक एहसास, एक अधूरापन,एक परिचय ख़ुद के अधरपान से," परिचय एक ऐसे एहसास से जो कभी था,और आज यदि नहीं हैं तो साये के रूप में ही सही , हर जगह परिलक्षित है , अधूरेपन में भी पूर्णता का एहसास।
धन्यवाद
Shikha Bhardwaj
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