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आँशुओं के बबंडर को
आँखो में छुपाए बैठी हूँ ,
न जाने कितनी बेचैनियों को
दिल मे दबाए बैठी हूँ।
कौन सुनने वाला है!
किसे सुनाऊँ,
दर्दे दास्तान को
गहरे उरु में समाए बैठी हूँ।
आँशुओं के बबंडर को
आँखों में छुपाए बैठी हूँ।
हसरतों की आंधी में,
जो था सब गवाएं बैठी हूँ।
सामने जो है सब धुँधला है,
पीछे जो था,
उसकी उलझती तारो में
खुद को उलझाए बैठी हूँ।
हजारों सवाल है,
लेकिन अनसुलझे जवाबों में
खुद को उलझाए बैठी हूँ।
आँशुओं के बबंडर को
आँखों में छुपाए बैठी हूँ।
ख्वाहिशें थी क्या ?
और क्या लिए बैठी हूँ ?
न कोई संकेत न शिकायत,
तुम गए मुझको छोड़, इस क़दर
सवालों के घेरे में खुद को
क़ैद किये बैठी हूँ।
आँशुओं के बबंडर को
आँखों में छुपाए बैठी हूँ।
जानती हूँ,
तुम इंसानी मनोभावों से
ऊपर उठ चुके हो लेकिन!
ख़्वाबों में ही सही,
तुमसे मिलने की आश लगाए बैठी हूँ।
आओ तो कभी,
समझाओ, कुछ दिलाशा दो कि
19 सालो का एहसास,
पल में गवाए नही जाते कभी,
कि अभी भी
तुमसे ही उम्मीद लगाए बैठी हूँ ।
आँशुओं के बबंडर को
आँखो में छुपाए बैठी हूं।