रोज़ मेरी खिड़की पर,चाँद आकर मुझसे बाते करता।
मन सुमन को आनन्दित कर, नए फूल खिला देता।
थोड़ी ही सही, अपनी चमक मुझपर छोड़ देता।
हर वो किस्सा मुझे सुनाता, जो वो चाँदनी संग करता।
रोज मेरी खिड़की पर चाँद आकर मुझसे बाते करता।
पूर्णमासी का प्रफुल्लित चेहरा, मेरा भी मन सहका देता।
गर जो पुछू उससे, क्यूँ है ? आज तू यूँ बहका-बहका।
धीरे से मुस्का देता,और संग चाँदनी का हर किस्सा सुना देता।
ख़ुशी के साथ, जुदाई का भी ग़म बता देता।
रोज मेरी खिड़की पर चाँद आकर मुझसे बाते करता।
थोड़ा सकुचाता, थोड़ा घबराता, कुछ उदास सा दिखता,
कहानी आज फिर,वो चाँदनी से जुदाई के गम का दुहराता।
कैसे अमावश तक जलेगा विरह में,थोड़ा-थोड़ा वो बतलाता।
लेकिन जब बाद अमावश, फ़िर बढ़ेगी मिलन की बेला,
आएगी फिर पूर्णमासी और सुखद एहसास की धुन बजेगी।
बढ़ा ढाढ़स, जब मैं समझाती, फिर वो ख़ुशी से झूम उठता।
रोज मेरी खिड़की पर चाँद आकर, मुझसे बाते करता।
✍️Upeksha🥀