क्यूँ न लापता से...
हो जाएं हम भी एक दिन...
क्यूँ न लापता से...
हो जाएं हम भी एक दिन...
क्यूँ न लापता से...
हो जाएं हम भी एक दिन...
बस दिल की ये ही आरज़ू बहुत है।
मेरी भी जिंदगी के रास्ते खत्म हो...
मैं भी अल्फाज़ों में ही सिमट लूँ
बस यही आरज़ू आख़िरी अब है।
मैं भी मिलूंगी तुमसे यूँ ही कहीं..
किसी तट पर खाक बनकर...
फिक्र न करो ....
ज़िन्दगी की तपिश से बेज़ार हम भी बहुत है।
ढूंढ़ते फ़िरते हैं...हर रिश्ते में छाँव,
भूल जाते हैं कि...
मेरे मुक़द्दर को अकेलेपन की कशिश बहुत है।
मिलूँ मैं भी तुमसे... उसी तट पर...
हाँ वहीं......खाक बनकर...
ज़िन्दगी जो सबक दे गई...
सवर जाएं...शायद कहीं फ़नाह होकर।
ज़िन्दगी जो कर न पाई..
जल विसर्जन ही कर दे....
मिला दे हमारे मुक़द्दर,
अब आख़िरी जुश्तज़ू....
की तलब बाकि यही बस है।
#क्यूँ_न_लापता_से_हो_जाएं_हम_भी_एक_दिन
#Kyun_n_lapata_se_ho_jaae_ham_bhi_ek_din
#Aparichita_अपरिचिता
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क्यूँ न लापता से... |
Aparichita हरदम हरवक्त आपके साथ है। Aparichita कुछ अपने, कुछ पराए, कुछ अंजाने अज़नबी के दिल तक पहुँचने का सफर। aparichita इसमें लिखे अल्फ़ाज़ अमर रहेंगे, मैं रहूं न रहूं, उम्मीद है, दिल के बिखड़े टुकड़ो को संभालने का सफर जरूर आसान करेगी। aparichita, इसमें कुछ अपने, कुछ अपनो के जज़बात की कहानी, उम्मीद है आपके भी दिल तक जाएगी।
वाकई काबिले तारीफ़ है आपकी रचना धन्यवाद जी
ReplyDeleteशुभ प्रभात।। ईश्वर आपको प्रसन्न चित्त रखे
बहुत सुंदर है आपकी रचना धन्यवाद जी
ReplyDeleteशुभ प्रभात