बचपन_Bachpan
बचपन प्लीज तू लौट आ
फिर से कहीं से,
बड़ा होना सिर्फ सजा है,
पर तु सजा दे मुझे,
अपनी मासूम नादानियों से।
बचपन फिर तू लौट आ
फिर से कहीं से।
तेरी हर बेपरवाहि भी
कभी बस मजा थी सभी की,
आज परबाहि भी सजा है किसी की।
वो नदी, वो तालाब,वो सावन के झूले
वो बच्चों की टोली, बचपन के बोलबाले
हस्ती थी अपनी, हमी राजा, हमी रंक,
हमी चोर हमी सिपाही।
तू वो बेपरवाहि,
फिर सिखा दे मुझको।
बचपन तू लौट आ
फिर से कहीं से।
जहाँ तेरी मासूम मुस्कुराहटों
के कायल थे बस सभी,
आज वही उन मुस्कुराहटों का बस
हिसाब रखते है सभी।
बचपन प्लीज् तू लौट आ, फिर से कहीं से।
वो घर, वो अपने, सभी है,
पर तब जितने थे, अब नही है।
वो घर, वो आँगन, वो साथी,
सब उतने ही कर दे, जितने थे।
बचपन फिर तू लौट आ, फिर से कहीं से।
कहाँ गई तेरी इक अदा पर,
सबकी जान अटकने वाली।
अब तो बस, सबके चेहरे ढके परे हैं,
एक अनजान पर्दों से,
तू फिर से वो अदा सीखा दे,
और सबके चेहरे, अपनेपन से भर दे।
बचपन प्लीज तू लौट आ,
फिर से कहीं से।
बड़ा होना सिर्फ सजा है,
पर तु सजा दे मुझे।
वो कागज की किश्ती वो बारिश का पानी
ReplyDeleteकोई लौटा दे वो बचपन की कहानी