कारगिल विजय दिवस 16 July 2022हमारे सैनिकों के वीरता, साहस, और बलिदान से दुश्मनों को नेस्तनाबूत करने वाला दिवस।

 कारगिल विजय दिवस 16 July 2022:

कारगिल विजय दिवस 16 July 2022हमारे सैनिकों के वीरता, साहस, और बलिदान से दुश्मनों को नेस्तनाबूत करने वाला दिवस।


हमारे सैनिकों के वीरता, साहस, और बलिदान से दुश्मनों को नेस्तनाबूत करने वाला दिवस।

आइए, उनको याद कर हम अपने बच्चो को भी उनकी गाथा सुनाए। 

कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के सभी देशवासियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। भारत में प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को यह दिवस मनाया जाता है। इस दिन भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था जो लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई के दिन उसका अंत हुआ और इसमें भारत विजय हुआ। 

*या तो तू युद्ध में बलिदान देकर स्वर्ग को प्राप्त होगा या विजयश्री प्राप्त कर पृथ्वी का राज्य भोगेगा


#गीता श्लोक:  पीढ़ियाँ आती रहेंगी और जाती रहेंगी, लेकिन ये जो गीता सार है, वो ज्ञान का सागर है, जिससे चाहे जितना निकाल लो कभी कम नही होगा और अपने स्रोतों से ज्ञान की गंगा बहाता रहेगा।

हमारे महान ग्रंथ Gita के प्रेरणा से ही भारत के शूरवीरों ने कारगिल युद्ध में दुश्मन को पाँव पीछे खींचने के लिए मजबूर किया था। 


26 जुलाई 1999 का दिन, जब भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि की शान को घुसपैठियों की बुरी नज़र से बचाया था। ‘26 जुलाई’ हमारे लिए फक्र और शहीदों को याद कर उनकी गाथा को उनके जज़्बे को हमारी आने वाली पीढ़ी को बताने का दिन है।

यूँ ही कैसे अपने तिरंगे की मान को जाने देते:

"फ़क़त तीन रंग नही, भारत का श्रृंगार है,
जहाँ आकाश ने केशरिया चुंदरी भेट कर बढ़ाई भारत माँ की शान है।
धानी रंग की साड़ी पहना पृथ्वी ने भी बढ़ाई मान है। मन मे सौहार्द और शीतलता का प्रतीक ये सफ़ेद रंग लिए हमारा तिरंगा देश की धड़कन है।"

26 july 1999
यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का दिन जो हँसते-हँसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया। बिना डर, चिन्ता और भय के।

लेकिन ये भी सोचने की बात है कि हमे ये विजय यूँ ही नही, बहुत बड़ी कीमत चुका कर मिली है।
बेकार का इतिहास तो बहुत पढ़े, अब अपने बच्चों को गौरवशाली इतिहास बताए।
नमन कर याद करे उन जवानों को जिनकी वजह से हम आज शांति से अपने घड़ों में हैं।

कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि बहुत साहसी और बलिदानी है : 

कारगिल युद्ध जो कारगिल संघर्ष के नाम से भी जाना जाता है, भारत और नापाक पाकिस्तान के बीच 1999 में मई के महीने में कश्मीर के कारगिल जिले से प्रारंभ हुआ था। जिसमे पाकिस्तान की चालबाज़ी को हमारे कई वीर सैनिकों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी।
कारगिल विजय दिवस 16 July 2022हमारे सैनिकों के वीरता, साहस, और बलिदान से दुश्मनों को नेस्तनाबूत करने वाला दिवस।



कारगिल युद्ध का बड़ा कारण था बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों व पाक समर्थित आतंकवादियों का लाइन ऑफ कंट्रोल यानी भारत-पाकिस्तान की वास्तविक नियंत्रण रेखा के भीतर प्रवेश कर कई महत्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लेह-लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सड़क का नियंत्रण हासिल कर सियाचिन-ग्लेशियर पर भारत की स्थिति को कमजोर कर भारत की राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा पैदा करना।

पूरे दो महीने से ज्यादा चलने वाले इस युद्ध को (विदेशी मीडिया ने इस युद्ध को सीमा संघर्ष प्रचारित किया था) हमारे देश भारतीय थलसेना व वायुसेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों और आताताइयों को मार भगाया था। लेकिन स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया गया था।

 हमारे वीर सैनिक जिनका हिमालय से ऊँचा था साहस  :

पूरे दो महीने से ज्यादा चलने वाले इस युद्ध को (विदेशी मीडिया ने इस युद्ध को सीमा संघर्ष प्रचारित किया था) हमारे देश भारतीय थलसेना व वायुसेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल पार न करने के आदेश के बावजूद अपनी मातृभूमि में घुसे आक्रमणकारियों और आताताइयों को मार भगाया था। लेकिन स्वतंत्रता का अपना ही मूल्य होता है, जो वीरों के रक्त से चुकाया गया था।


कारगिल युद्ध में गर्व के साथ - साथ आत्माएं भी कराहने लगती है कि हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हुए थे, जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वहन किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है। 

कारगिल युद्ध के रणबाँकुरों ने भी अपने परिजनों से वापस लौटकर आने का वादा किया था, जो उन्होंने निभाया भी, मगर उनके आने का अन्दाज निराला था। वे लौटे, मगर लकड़ी के ताबूत में। उसी तिरंगे मे लिपटे हुए, जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने उठाई थी, उस सौगंध को भी बख़ूबी निभाया था प्राण गया लेकिन सौगंध को पूरा किया। जिस राष्ट्रध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुका होता था, कितने ख़ुशनसीब थे वो कि, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जाँबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था। 

भारत के अनमोल वीर सपूत : 


 कैप्टन विक्रम बत्रा  : ‘ये दिल माँगे मोर’ - हिमाचलप्रदेश के छोटे से कस्बे पालमपुर के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा उन बहादुरों में से एक हैं, (एक थे कि जगह हमेसा एक हैं, रहेंगे, क्योंकि ये लोग कभी जाते नही है, अमर हो जाते हैं।)जिन्होंने एक के बाद एक कई सामरिक महत्व की चोटियों पर भीषण लड़ाई के बाद फतह हासिल की थी।

उस नापाक पाकिस्तानी लड़ाकों ने भी हमारे जवाँज़ सिपाही की बहादुरी को सलाम करने से नही रोक पाया था और उन्हें ‘शेरशाह’ के नाम से नवाजा था। मोर्चे पर डटे इस बहादुर ने अकेले ही कई शत्रुओं को ढेर कर दिया। सामने से होती भीषण गोलीबारी में घायल होने के बावजूद उन्होंने अपनी डेल्टा टुकड़ी के साथ चोटी नं. 4875 पर हमला किया, मगर एक घायल साथी अधिकारी को युद्धक्षेत्र से निकालने के प्रयास में माँ भारती का लाड़ला विक्रम बत्रा 7 जुलाई की सुबह अमर हो गया। अमर शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को अपने अदम्य साहस व बलिदान के लिए भारत के सर्वोच्च सैनिक पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

कैप्टन अनुज नायर : 17 जाट रेजिमेंट के बहादुर कैप्टन अनुज नायर टाइगर हिल्स सेक्टर की एक महत्वपूर्ण चोटी ‘वन पिंपल’ की लड़ाई में अपने 6 साथियों के शहीद होने के बाद भी मोर्चा सम्भाले रहे। गम्भीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अतिरिक्त सैनिक टुकड़ी आने तक अकेले ही दुश्मनों से लोहा लिया, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना इस सामरिक चोटी पर भी वापस कब्जा करने में सफल रही। 


इस वीरता के लिए कैप्टन अनुज को वीरगति प्रान्त भारत के दूसरे सबसे बड़े सैनिक सम्मान ‘महावीर चक्र’ से नवाजा गया। 

 मेजर पद्मपाणि आचार्य : राजपूताना राइफल्स के मेजर पद्मपाणि आचार्य भी कारगिल में दुश्मनों से लड़ते हुए अमर हो गए। उनके भाई भी द्रास सेक्टर में इस युद्ध में शामिल थे। उन्हें भी इस वीरता के लिए ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

 
कैप्टन सौरभ कालिया : भारतीय वायुसेना भी इस युद्ध में जाँवाज़ी दिखाने में पीछे नहीं रही, टोलोलिंग की दुर्गम पहाडियों में छिपे घुसपैठियों पर हमला करते समय वायुसेना के कई बहादुर अधिकारी व अन्य रैंक भी इस लड़ाई में दुश्मन से लोहा लेते हुए अमर हुए। सबसे पहले कुर्बानी देने वालों में से थे कैप्टन सौरभ कालिया और उनकी पैट्रोलिंग पार्टी के जवान। घोर यातनाओं के बाद भी कैप्टन कालिया ने कोई भी जानकारी दुश्मनों को नहीं दी। 


लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय : 1/11 गोरखा राइफल्स के लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय की बहादुरी की इबारत आज भी बटालिक सेक्टर के ‘जुबार टॉप’ पर लिखी है। अपनी गोरखा पलटन लेकर दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र में ‘काली माता की जय’ के नारे के साथ उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में लड़ते हुए मनोज पांडेय ने दुश्मनों के कई बंकर नष्ट कर दिए। उनकी गाथा जितनी गाई जाए उतनी कम है।

 

गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद भारत माँ के जांबाज़ सपूत मनोज अंतिम क्षण तक लड़ते रहे। भारतीय सेना की ‘साथी को पीछे ना छोडने की परम्परा’ का मरते दम तक पालन करने वाले मनोज पांडेय को उनके शौर्य व बलिदान के लिए वीरगति परांत ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।


स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा : स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा का विमान भी दुश्मन गोलीबारी का शिकार हुआ। अजय का लड़ाकू विमान दुश्मन की गोलीबारी में नष्ट हो जाने के बाबजूद भी उन्होंने हार नहीं मानी और पैराशूट के।सहारे उतरते हुए भी शत्रुओं पर गोलीबारी जारी रखी और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए।

फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता को इस युद्ध में पाकिस्तान द्वारा युद्धबंदी बना लिया गया। वीरता और बलिदान की यह फेहरिस्त यहीं खत्म होने वाली नहीं है। कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के विभिन्न रैंकों के लगभग 30,000 अधिकारी व जवानों ने ऑपरेशन विजय में भाग लिया। 

 

कारगिल युद्ध के पश्चात पाकिस्तान ने इस युद्ध के लिए कश्मीरी आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया था, जबकि यह बात किसी से छिपी नहीं थी कि पाकिस्तान इस पूरी लड़ाई में लिप्त था। बाद में नवाज शरीफ और शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पाक सेना की भूमिका को स्वीकार किया था। यह युद्ध हाल के ऊँचाई पर लड़े जाने वाले विश्व के प्रमुख युद्धों में से एक है। 

 

नमन है हमारे जाबांज़ सिपाही को जिन्होंने बता दिया कि कोई भी युद्ध हथियारों के बल पर नहीं लड़ा जाता, युद्ध लड़े जाते हैं साहस, बलिदान, राष्ट्रप्रेम व कर्त्तव्य की भावना से और इतिहास गवाह है कि हमारे भारत में इन जज्बों से भरे युवाओं की कोई कमी नहीं है।

 

मातृभूमि पर सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर बलिदानी भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, मगर इनकी यादें हमारे दिलों में हमेशा- हमेशा के लिए बसी रहेंगी... 

 

‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।
जय हिंद, वन्देमातरम🚩🙏🙏
उम्मीद है, यह लेख आप सभी को पसंद आए, और अपनी भावी पीढ़ी को भी जरूर बताए, ताकि उनके दिलों में भी जज़्बों की कोई कमी न हो।
कारगिल विजय दिवस 16 July 2022हमारे सैनिकों के वीरता, साहस, और बलिदान से दुश्मनों को नेस्तनाबूत करने वाला दिवस।




कारगिल विजय दिवस 16 July 2022 हमारे सैनिकों के वीरता, साहस, और बलिदान से दुश्मनों को नेस्तनाबूत करने वाला दिवस।
Kargil-vinay-divas-16-July-2022-hmare-sainikon-ke-virta-sahas-aur-balidaan-se-dushmano-ko-nestanaabut-krne-wala-divas.



                            Shikha Bhardwaj___✍️
 

 



1 Comments

If you have any doubt, please let me know.

  1. सभी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।।
    सभी देशवासियों को विजय दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।।जय हिन्द वन्देमातरम

    ReplyDelete
Previous Post Next Post