रात अचानक जुगनू, सिरहाने आकर बैठ गई।
रात अचानक जुगनू, सिरहाने आकर बैठ गई।
रात अचानक जुगनू सिरहाने आकर बैठ गई,
फिर टिमटिमाती नजरो से न जाने,
कितने प्रश्नों के वाण, बेध गई।
क्यूँ खुली है आँखे तेरी, क्यूँ अब तक तू जाग रही।
देखो सारे सो गए, पर अब भी तेरी अखियाँ बोल रही।
रात अचानक जुगनू सिरहाने आकर बैठ गई।
मैंने भी हँसकर कह दिया,
आज अमावस्या, रात अकेली, मैं अकेली,
ये रात चाँद की सहेली,
आज ही तो मुझसे मिलने आती है।
यही वक्त है खामोशी की भी,
जब वो मुख से बोल ,दिन के किस्से सुनाती है।
कैसे कान चिड़ती ध्वनि, दिन को उसे सताती है।
फिर तू क्यूँ विघ्न डाल रही, करने दे, जो कुछ बाते हैं।
यही वक्त, इसी की भी, जो मन के गांठ खोल रही।
रात अचानक जुगनू, सिरहाने आकर बैठ गई।
कुछ सकपकाई, फिर घबराई और कानों में धीरे से बोल गई।
मुझे भी संग कर लो अपने, मैं भी कब से डोल रही।
कुछ मेरी भी सुन लो, कब से राग मैं छेड़ रही।
मैं भी देर न की, और भर दी इजाज़त की हामी,
खुश हुई जुगनू भी, माथे पर आकर बैठ गई,
प्यारी सी एक झपकी देकर, संग हमारे बैठ गई।
रात अचानक ही जुगनू सिरहाने आकर बैठ गई।
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Aparichita हरदम हरवक्त आपके साथ है। Aparichita कुछ अपने, कुछ पराए, कुछ अंजाने अज़नबी के दिल तक पहुँचने का सफर। aparichita इसमें लिखे अल्फ़ाज़ अमर रहेंगे, मैं रहूं न रहूं, उम्मीद है, दिल के बिखड़े टुकड़ो को संभालने का सफर जरूर आसान करेगी। aparichita, इसमें कुछ अपने, कुछ अपनो के जज़बात की कहानी, उम्मीद है आपके भी दिल तक जाएग
✍️Shikha Bhardwaj❣️
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