तेरी ही बिटिया मैं बाबुल।
जमाना बहुत बदल गया, लेकिन समाज की सोच अभी भी बहुत जगहों पर वैसी ही है, जैसे बिटिया तो पड़ाई धन होती है, और कुछ इस तरह की ही बाते। इस कविता के द्वारा समझाने की कोशिश की हूँ इस कविता में में जिसका शीर्षक है- " तेरी ही बिटिया मैं बाबुल"
तेरी ही बिटिया मैं बाबुल।
पर कटे पक्षी के जैसे,
दिया ये जीवन विशाल
आशा और निराशा के झुले,
झुलती रही, ये मन कंकाल।
तेरी ही बिटिया मैं बाबुल।
हर दिन-हर पल,
गूँजे बस यही सवाल,
उसी कोख की बिटिया मै बाबुल
जिस कोख जन्मा तेरा लाल।
फिर कैसे मैं पराई बाबुल,
और लल्ला लिए तू निहाल।
तेरी ही बिटिया मैं बाबुल।
मै हुई दान की वस्तु,
और बेटा तेरा हुआ कमाल।
मिला न क्या मुझसे शुख एकपल,
जो किया मुझे खुद से ही ओझल।
तेरी ही बिटिया मैं बाबुल।
सात फेरे की सात वचन
निभाने की जिसने कसमे खाई,
उसे भी रहा यही मलाल,
मैं बस वस्तु एक बोझिल,
जिससे मन का हर रिस्ता ओझल
बस निज फर्ज समझ,
मन को करती रही सबल।
तेरी ही बिटिया मैं बाबुल।
पर अब टूट रहा हर मनोबल,
चाह नही अब जिंदगी की ,
हो रहा मन,
अब बस विदा को विकल।
पर कटे पक्षी के जैसे,
दिया ये जीवन विशाल।
तेरी ही बिटिया मैं बाबुल।
Teri_hi_bitiya_mai_babul
✍️Shikha Bhardwaj🥀
उम्मीद है, आप सबको ये भाव पसंद आए, और समाज इसपर ध्यान दे। आपके सुझाव के लिए आपेक्षित रहूँगी।
अब विदा को व्याकुल
ReplyDeleteकटे हुए पक्षी जैसा हाल
दिया तूने जीवन विशाल
ओ बाबुल मेरे दयाल।। शुभ संध्या