वक्त, कविता

Vakt_पंछी, हौसलों की उड़ान_hauslon ki udan



Panchi_पंछी, हौसलों की उड़ान_hauslon ki udan



कविता परिचय:
कभी -कभी इंसान अच्छे की उम्मीद करते-करते सब खो देता है, और वो जो वक्त होता है बड़ा लम्बा होता है, कभी न खत्म होने जैसा।ऐसे में वो वक्त उसे अंदर ही अंदर तोड़ने-बिखेरने लगता है।उस वक्त इंसान उम्मीद अपनो से करता है, लेकिन जब वक्त आँख दिखता है, तो उम्मीद सिर्फ ख़ुद से करना चाहिए, रिस्ते कोई भी क्यों न हो, ख़ुद को समेटना ही सबसे बड़ी टक्कर वक्त को देना होता है।यही हौसला आपको रास्ता दिखाती है और मंजिल भी मिल ही जाती है।


Panchi_पंछी, हौसलों की उड़ान_hauslon ki udan


ये वक्त और मेरे हौसले, दोनों की जंग छिड़ी हो जैसे।
बस बेबस और लाचार, पर कटे पंछी के जैसे।


जरा सी बात पर क्यूँ मनोभाव हो जाते ऐसे,
जैसे कि जिंदगी ख़त्म हो बस इसी पल जैसे।
नन्हीं - नन्हीं इन पंछी से सीखो,
आंधियाँ आई और पूरा आशियाँ इनकी उड़ा ले गई।
कब थक कर बैठ गई ?
वो तो फिर तिनकों को बिनती ऐसे,
कुछ हुआ ही नही हो पहले जैसे।


ये वक्त और मेरे हौसले, दोनों की जंग छिड़ी हो जैसे।
बस बेबस और लाचार, पर कटे पंछी के जैसे।


चलो चेहरे पर खुशी का मास्क लिए, 
वक्त को आँख दिखाते हुए।
चिड़ियों की चूँ - चूँ गान सुनो, इनके कलरब की तान सुनो
तुम भी जीवन के एक नया गीत बुनों,
कहीं दूर से ही सही, खुशी देती है आवाज़ सुनो।
माना हालत है गर्दीश में तो क्या?
 आनी है, हर शाम के बाद सुबह सुनो।


ये वक्त और मेरे हौसले, दोनों की जंग छिड़ी हो जैसे।
बस बेबस और लाचार, पर कटे पंछी के जैसे।


मुस्कुराहट तो दिल की होती है,तो हंसो जोड़ से।
जैसे पंछी की मधुर तान, देती सीख जीने को सुकून से।
माना रोकर पा ही लोगे दया हिसाब से,
लेकिन क्या ये दया, रहने देगी इत्मिनान से ?
माना जलना लिखा है, इस वक्त तुझे,
और तुम जलो, मगर शौख से,
क्योंकि यही अग्नि ही देगी नया प्रकाश तुझे। 


ये वक्त और मेरे हौसले, दोनों की जंग छिड़ी हो जैसे।
बस बेबस और लाचार, पर कटे पंछी के जैसे।


सुनो रातो की खामोशी भी कुछ कहती है।
ये वक्त अभी हमारा है।
 होगी सुबह, और वो प्रकाश तुम्हारा होगा।
सन्नाटो के बाज़ार में, दो पल ढूंढो ख़ुद को।
पंछियों की कोलाहल बढ़ेगी जब,
 सारे नक़ाब से ढके चेहरे तुम्हारे अपनों के होंगे,
और वक्त पड़ेगी जब, सारे पत्थर उधर के ही होंगे।
चुन लेना तुम उन पत्थरों को, जैसे पंछी चुनती तिनकों को।
सिरहाने यादें बना बिछा लेना, 
है ये वक़्त का सबक
किताबों से नही, पंछियों से हौसलों से समझा देगी।


ये वक्त और मेरे हौसले, दोनों की जंग छिड़ी हो जैसे।
बस बेबस और लाचार, पर कटे पंछी के जैसे।


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नमस्कार दोस्तों , अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है आपके लिए कुछ अच्छा लिखने की। मेरी कविता थोड़ी मायूस जरूर है, पर हौसलों से भरी हुई है।

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         अपरिचिता_Aparichita_✍️

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