सोलह श्रृंगार "बिंदी"
Solah-Shringar-Bindi
शृंगार बातों की, प्रकृति की, पुरुष की, स्त्री की। श्रृंगार पहचान ऐश्वर्य की, समृद्धि की, शांति की, सुख की, बिंदी की।
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शृंगार बातों की, प्रकृति की, पुरुष की, स्त्री की। श्रृंगार पहचान ऐश्वर्य की, समृद्धि की, शांति की, सुख की, बिंदी की। |
सोलह श्रृंगार "बिंदी"
तुम्हारे माथे की बिंदियाँ,
सुनो तो! बहुत कुछ कहती है।
ये जो दोनों भौहों के बीच,
लाल रंग की चमकती है,
तुम्हारी ख़ुशी और समृद्धि की कहानी कहती है।
तुम्हारी ख़ुशी से ही तो ये घर सजता है।
जब तुम खुश होती हो,
ख़ुशी से इस घर को चमकाती हो,
और अपने वात्सल्य से,
हर सदस्य को जोड़े रहती हो।
ये "बिंदिया" तुम्हारी खूबसूरती तो बढ़ाती है,
अनायास ही मुझे भी तुम्हारी तरफ खिंचती है।
ये बिंदियाँ यूँ ही तुम्हारे माथे पर चमकती रहे,
और तुम प्यार और वात्सल्य से इस घर को,
घर के सदस्यों को प्यार के धागे में बांधती रहो।
"श्रृंगार" जो सुहागन का स्वरूप तो है ही, सनातन संस्कृति में सोलह श्रृंगार की व्याख्या भी की गई है जिसमे हर एक श्रृंगार का अपना एक।अलग महत्व है, जिसमे इंसानी सेंटिमेंट से लेकर, शरीर के कई प्रकार के रोगों का भी निवारण करता है।
"श्रृंगार" न केवल सुहाग की निशानी है, बल्कि ये स्त्रियों के खुशी का भी कारण होता है। ये मेरी खुद की भी अभिव्यक्ति है कि जब भी कभी इंसान परेशान हो, या घर में किसी से नोकझोंक हो गया हो, किसी भी तरह की परेशानी क्यों न हो, अच्छे स्त्री किये हुए कपड़े, और हल्का सा श्रृंगार, स्त्रियों के मनोदशा को बदल देता है। ये सिर्फ़ स्त्रियां ही क्यूँ ? पुरुष भी इसे आज़मा कर देख सकते हैं। वे भी नए कपड़े और टाई के साथ जरूर खुश होंगे।
यहाँ जब बात चल रही है "श्रृंगार" की, तो स्त्रियों में सर्वप्रिय श्रृंगार होता है, बिंदी का। की माथे पर जब बिंदियाँ सजती है, तो चेहरे का निखार कुछ और ही होता है।
साथ मे बिंदी खूबसूरती तो बढ़ाता ही है, लेकिन सनातन संस्कृति में इसका विशेष ही महत्व है।
"बिंदी" संस्कृत शब्द बिंदु से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है, कर्ण या बून्द। इसके कई अलग अलग नाम भी है। जैसे:-- कुमकुम, टिप, टिकली और बोट्टू आदि।
बिंदी महिलाओं की खूबसूरती तो बढ़ाता ही है, आज मैं आपको बिंदी से जुड़े कई आश्चर्यजनक और स्वास्थ्य से जुड़े रोचक तथ्यों से भी अवगत कराउंगी।
पहले आइए जानते हैं शादी-सुदा स्त्रियों के लिए बिंदी क्यों जरूरी है?
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सोलह श्रृंगार "बिंदी" |
बिंदी लगाने से जुड़े कुछ जरूरी बातें:--
शरीर में सात चक्र होते हैं, और महिलाएँ जिस जगह बिंदी लगाती है, वह हमारे शरीर का छठा चक्र है, जिसे आज्ञा चक्र कहते हैं।
आज्ञा चक्र की जगह को भौंह चक्र या तीसरा नेत्र चक्र भी कहते हैं, ऐसा क्यों?
शरीर में जो सात चक्र पाए जाते हैं, उनका वर्णन, वेदों में भी किया गया है।
जिस जगह बिंदी लगाई जाती है, उस जगह को, अंतर्ज्ञान और बुद्धि की आँख माना जाता है। अर्थात बिंदी उन शक्तियों को बढ़ाती हैं, जिससे लगाने वाले का आंतरिक ज्ञान बढ़ता है। आंतरिक ज्ञान शांति की ओर ले जाती है, जिससे संसार को सही दृष्टि से देखने की क्षमता बढ़ती है।
यह क्षमता खुद का और औरों का भला करने के लिए जरूरी है।
"बिंदी" ऐसे तो बाज़ार में कई रंगों की या सभी रंगों की मिलती है, लेक़िन लाल रंग का महत्व सबसे ज्यादा है, वो किसलिए? आइए जानते हैं:--
लाल रंग समृद्धि का प्रतीक है। माना जाता है कि दुल्हन का जब पहली बार घर में आगमन होता है, तब वह अपने साथ घर में समृद्धि लेकर आती है। इसलिए दुल्हन का हर चीज लाल रंग से जुड़ा होता है।
उगता सूरज को भी अगर देखें तो वो भी लाल रंग का ही होता है, जो जीवन में सबके लिए नई उम्मीदों का नया प्रकाश लेकर आता है।
लक्ष्मी जी के श्रृंगार पर भी अगर ध्यान दिया जाए, तो हर चीज़, जैसे- बिंदी, सिन्दूर, चूड़ी, चुनड़ी, पूरा श्रृंगार लाल रंग से ही किया हुआ होता है।
लाल रंग की बिंदी प्यार और समृद्धि का भी प्रतीक है, साथ में यह रंग बेहद शुभ भी होता है।
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सोलह श्रृंगार "बिंदी" |
महिलाओं के सोलह श्रृंगार से जुड़े "बिंदी" की महत्ता को मैंने आपके सामने रखा, जो कि हमारी सनातन संस्कृति और वेदों के द्वारा बताए हुए ज्ञान को अपने कविता और लेखों द्वारा परिभाषित किया है, उम्मीद है आप सबको जरूर पसंद आएगी। आगे भी मैं सोलह श्रृंगार से जुड़े और भी विषयों को लेकर आऊंगी। आपके प्रश्न, सुझाव और कमेंट मुझे और लिखने के लिए उत्साहित करते हैं।
आपका धन्यवाद💐🙏
वाह!! बहुत ही सुंदर प्रस्तुति 👌👌
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