अलविदा कह गया कोई-Alvida kah gaya koi


            अलविदा कह गया कोई
       Alvida kah gaya koi


Alvida kah gaya koi


                                अलविदा कह गया कोई

                                      अलविदा कह गया कोई,
ज़िन्दगी के उस प्लेटफॉर्म पर,
जहाँ से ये तक पता नहीं,
कि यहाँ गाड़ी अप आती है या डाउन।


कुछ पहचाने चेहरे हैं,
हमदर्दी का नक़ाब लिए,
और मैं अबतक उस एक,
अलविदा शब्दों में उलझी पड़ी हूँ।


कितना आसान सा शब्द है, अलविदा...
लेकिन अलविदा उन वादों के यादों का क्यों नही...
अलविदा बारिश में भींगे, 
चाय पकौड़ो का क्यों नही।
खूबसूरत लम्हों और खयालातों का क्यों नहीं?


चाँदनी रातों में आकाश तले,
गिनते तारों की खुशियों को 
आँचल में भरते लमहातों को,
जो अब भी वक्त के खिड़की से चली आई है..
उन यादों को अलविदा क्यों नही।


सारे वादे, सारी यादे, 
जो हालातों के मोती बन...
मेरी आँखों से बही जा रही है...
उन बहती धारों को अलविदा क्यों नही?


है कोई रीत!! जहाँ विसर्जित हो,
यादों की सारी पोटली, 
और दे-दे वक्त के धार से
जो ज़िन्दगी से खर्च किये मैंने।


वो वक्त के खर्चे का हिसाब, 
वो प्यार में जागती आँखों का सवाल!
अलविदा उन रिस्तों का, उन अदब का,
करो अलविदा हर उस पल का,
जो अब भी यादों के झरोखे से मुझे झकझोरती है।



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