जाने क्या खता थी हमारी !-jaane kya khata thi hamari!
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जाने क्या खता थी हमारी !-jaane kya khata thi hamari! |
जाने क्या खता थी हमारी !
ये तो पता न था।
जो यूं मिली है सजा,
किस बात की मालूम ना था।
उजाले नसीब हुए, बस देखने के लिए,
अन्तर्मन रहा सुना बस फ़क़त रौशनी के लिए ।।
कहते हैं.... चलते गए कारवाँ बनता गया,
लेकिन हम जब चले,
न जाने कैसे रहबर मिले,
मन मिज़ाज़ सब सुना पड़ा ।।
वक्त के आकाश में,
रूह उड़ता रहा परीन्दा बनकर ।
हम अपनी एक एक पर जलाते रहे.
धूप में जिन्दा बनकर ।।
करने बैठे हैं, हिसाब जिंदगी का।
हासिल क्या हुआ,
मुस्कान से सुरु,
झुर्रियों पर ख़तम हुआ।।
मान कर बैठे थे, हम जिसे दबा अपना।
पता चला....
वो मेरे सिर्फ दर्द का वज़ह निकला ।।
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दावा जिस पर समझा वही दर्द दे गया
ReplyDeleteज़िंदगी हुई पतझड़ रहबर बहार ले गया
बहुत शानदार अभिव्यक्ति है आपकी