कैसे ये मैं कह दूं.... कि कोई गम नही-kaise mai kah doon ki koi gam nhi.

  कैसे ये मैं कह दूं....कि कोई गम नही....

कैसे ये मैं कह दूं....कि कोई गम नही....




कैसे ये मैं कह दूं....
कि कोई गम नही....
गम तो जैसे पूरक है मेरी।
दिन और रात के जैसी।

जैसे तमस हटते ही,
प्रकाश का आगमन होता है,
जीवन मे भी ग़म के बाद,
खुशी और निखर आती है।
वही खुशी जीने का मर्म बताती है।
जिंदगी की यही रीत है।

कैसे ये मैं कह दूं....
कि कोई गम नही....

कैसे मैं कह दूं?
तुम्हारी यादों से आज़ाद हुई...
धड़कने अब भी धड़क रही..
साँसे कहाँ आज़ाद हुई..
आँखो में अब भी वही लम्हात सजी हुई,
यादों की वन्दिशों में अब भी....
सज रही हूँ...

कैसे मैं कह दूं?
कि कोई गम नही....


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*kya tujhe yaad nhi



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