प्रीत की रीत बड़ी निराली।

 प्रीत की रीत बड़ी निराली।

प्रीत की रीत नही ताज़महल की।

वो तो बस कब्र है, क्रूरता की कारधानी।

प्रीत...प्रीत बसा है, वृंदावन में।

जिसकी हर गली, 

हर कूचे कहती अजब कहानी।

जहां एक राधा दीवानी, 

दूजा वंशी वाले की प्रीत निराली।

एक दूजे में बस खुद को खो कर,

सब पा जाने की अनंत कथा कह डाली।


एक प्रीत पंचवटी की,

रची राम और सीता ने भी थी।

हर लता, हर पुष्प झुम उठी थी।

जब राम -लक्ष्मण और भावी सीता संग,

अटूट प्रेम, सहर्ष त्याग का साक्ष्य बनी थी।


एक प्रीत दंडकारण्य की,

जहाँ विरह की व्यथा हर दिशा सही थी।

प्रेम बसा हर उस पथ के कण में, 

जहां राम चले सीता के सिमरण में।

नयन नीर बहे थे, 

हृदय विरह विदीर्ण हुए थे।


एक प्रीत की है वो पूल भी निशानी,

जहाँ बस राम नाम का पत्थर तैरा,

और पिरो सागर को मिलन की लम्बी,

ब्रिज बना डाली।


प्रीत की रीत बड़ी निराली,

नही ये काम राजा या रंको वाली,

ये तो है बस सम्पूर्ण समर्पण की रितों वाली।



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