बचपन_Bachpan
बीत गया बचपन आगे जाने क्या होगा?
beet gaya bachpan aage jaane kya hoga ?
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beet gaya bachpan aage jaane kya hoga ? |
जब माँ के आंगन खेली थी ,
लरखराते पैर और देह सनी मिटटी थी ,
वो धूल भी बनी चन्दन थी ,
जब लगी माँ के आँचल थी।
वो संसार प्यार, अनुराग और वात्सल्य का ,
फिर कहाँ कब होगा, न बचपन रही न वो मौज होगा।
बचपन तो बस बीत गए, आये दिन जवानी के,
कली खिल कमल बनी अब
मधुकर के तलाश की बारी है ,
कौन है जो वासंती रखेगा इस हरे मन को
करेगा श्रृंगार पावन प्रिय ह्रदय से
नए संसार और इम्तिहान की बारी है।
इस पार अथाह प्रयाश,
उस पार धुंधला प्रकाश न जाने क्या होगा ?
कदम - कदम पर विवेचनाओं और परीक्षाओं की बारी है ,
अभी तक बस कलि और कुमुद का सफर ही जाना ,
वसंत से पतझर की सैर अभी तो बाकी है।
अभी तक बस बेटी थी तू ,अब कई जिम्मेदारियों की बारी है।
है श्रृंगार हक तेरा ,पर न तू सिर्फ प्रीतम प्यारी है।
न रहना बस पानी में निहारते मोहक छवि खुद की ,
याद रखना के सृस्टि स्वरुप भी तुम्हारी ही है।
हां पर है साथ यहां शिव स्वरुप प्राणेश की संगत ,
उस पार धुंधला प्रकाश न जाने क्या होगा ?
हर पल नई चेतनाओं और चेतावनियों का संगम,
जैसे तपस में वटबृक्ष का शीतल आलंगम।
सब है ,कभी संघर्ष तो कभी परिणामो का परचम।
कभी ख़ुशी तो कभी विषाद भरा मन ,
पर क्या ?है यही जीवन का सार और सरगम।
नहीं, तु नहीं सदा यहां का अधिवासी ,
तू जिससे अनभिज्ञ धरावाशी
जो छिपा उस पार धुंधला प्रकाश के,
न जाने क्या होगा?
इस पार प्यार,अनुराग और प्रयाशो का संगम,
बीत गया बचपन आगे जाने क्या होगा?
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