इसे कभी, कवि की कल्पनाओ द्वारा परिभाषित किया गया है तो कभी श्री कृष्ण की लीलाओ द्वारा। ये बादलो के झुण्ड जैसा घना है तो कभी किसी रुपवती की लहराती गेसुओं की सुनहरी जाल। कभी ये मुरली की बांसुरी की मधुर तान है तो राधा की खनकती हुई धुन।यही प्रेम है जो राधा कृष्ण को दूर होते भी एक करती है। ये, या तो पूर्ण समर्पण है या सबकुछ पा लेने की जिद्द।ये एक नसा भी है जो कभी आपको फलक पर बैठा दे या फिर जब संभाल न पाओ तो गर्त में भी डाल दे। इस प्यार के तो सती और शिव भी उदाहरण है। शिव ने इसे संगीत में पिरोया तो श्री राम ने त्याग में ही इसे परिभाषित कर दिया। ये प्यार ही है जिसने कालिदास जैसे अज्ञानी को भी पंडित बना दिया। प्यार, त्याग और समर्पण से किया जाता है तो यह पारस बन जाता है और चाहत से की जाय तो विनाशक बनने में भी देर नहीं लगती है।
इसी प्रेम ने छोटी सी राजकुमारी मीरा को जोगन बना दिया था तो ,उसी प्रेम के विस्वास ने राणा के विष को भी अमृत कर दिया था। तो एक तरफ सत्यवती के पिता का पुत्री प्रेम, महाभारत की नीव रख दी थी प्यार केवल ढाई अक्षर का है लेकिन इसको विस्तारित करना इंसान के वस का नहीं। इस प्रेम ने तो कई महान साधुओ की तपस्या भंग कर दी तो उन्हें पथ से भटकाया।
"प्यार" लेकिन यहाँ पर प्रश्न चिह्न है कि प्यार की अभी भी वही परिभाषा है ? प्यार किसी की तस्वीर देखने मात्र से हो जाती है या फिर उसकी आवाज सुनकर या पहली मुलाकात में ही। अगर ये होता है तो क्या एक दिन, एक साल या एक महीने के लिए होता है? और फिर उतनी ही आसानी से दूसरा रास्ता या दूसरा चेहरा बदल लिया जाता है ?और यदि हाँ तो कितनी बार ?
समाज ने अपना मॉडिफिकेशन करते - करते इस प्यार का भी कर दिया है। क्या छणिक या कुछ दिनों की मस्ती सही है,सभी जानते हैं की गलत है लेकिन मन को सुख दे रहा है तो सब सही है।
कोई बता सकता है, इसको बिगारने में किसका हाथ है ?बॉलीवुड का या खुद का, खुद के ऊपर कट्रोल नहीं होना क्या भविस्य के साथ खिलवाड़ नहीं है।
प्यार बहुत ही पवित्र शब्द है इसके साथ मजाक होना या नौजवानो का इसके पीछे भटकना बीमार मानसिकता का परिचय है। ये बाते उनको समझनी पड़ेगी।क्षनिक सुख बर्बादी तो दे सकती है पर मंजिल नही।
जरुरी है की प्यार की कुछ परिभाषा इन्हे मालुम होना चाहिए। ये कुछ छन ,कुछ दिन या कुछ साल के लिए नहीं होता। जिसे आप दूसरे के साथ खेल के लिए करना चाहते हैं क्यों न आप अपनी जीवन संगिनी के लिए बचा कर रखे। ये ईमानदारी तो आपको रखना ही चाहिए। जीवन में बहुत सारे काम या खुशी के पल होते है जो हम जिंदगी में पहली बार करते हैं और उसका आनंद खाश होता है। क्यों किसी के पीछे उस आनंद के पल को नस्ट करे। यही तो सौगात होता है, आपकी अर्धांगिनी के लिए आपका। जब भी मनोरंजन के लिए आप किसी से दोस्ती करते हैं तो जाहिर सी बात है कि उनसे वो सारी बाते करेंगे जो आप अपनी जीवन संगिनी के साथ करना चाहेंगें, तो फिर उनके लिए नया आपने क्या बचाया?जो अपनी सारी जिंदगी आप पर न्योछावर करने आने वाली है। अविष्वास की परिभाषा तो यहीं से सुरु हो जाती है।