बचपन बीत गया-Bachpan beet gaya

बचपन बीत गया-Bachpan beet gaya




बचपन बीत गया-Bachpan beet gaya


बचपन बीत गया 
खेल-खिलौनों और किलकारियों का,
न जाने कैसे साथ छूट गया,
बचपन बीत गया।

वो भी क्या दिन थे,
जब गुल्लक में संसार बसते थे,
और हर गली मुहल्ले में एक ,
 वज़ीर तो एक बादशाह रचता था।

जब बादशाहो की टोली निकलती थी,
तो क्या राजा और क्या फ़कीर
सबकी अपनी ही एक शान होती थी।
बचपन बीत गया। 

बाबा का राजदुलारा तो,
माँ के आँखो का तारा होता था।
बचपन छोड़, आये दिन किशोरों के,
कुछ लाड़ो के कुछ व्यवहारों के
और संग साथ लंगोटी यारों के।

बचपन बीत गया।
जवानी आई - गई
ढूंढ़ते भविष्य की परछाईं आ गई। 
तिनका - तिनका जोर की जिद्द ने
न जाने कितने वसंत और शावन
यूं ही गवाईं।

 जिम्मेदारियों की धूल से ढक गया।
बचपन की सारी कमाई।
और उसकी यादो पर तो
अब सिर्फ़ अफशोस की तुरपाई।
बचपन बित गया।


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