जिंदगी तू इम्तेहाँ ले मुस्कुराती है !
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जिंदगी तू इम्तेहाँ ले मुस्कुराती है ! |
जिंदगी तू इम्तेहाँ ले मुस्कुराती है!
पर तेरी ये मुस्कुराहट,
मेरी ज़िन्दगी की नई शबब बन जाती है।
हर दिन तू नया सवाल, सज़ा के पेश कर,
देख मै हारती हूँ ,
लेकिन तू सुन,
मुझे तेरी चुनौतियों में ही मज़ा आता है।
पर तू क्यूँ भूल जाती है,
कि कितना लड़ेगी तू मुझसे ?
जब मेरी डोर कटेगी तुझसे ,
तब क्या करेगी तू ?
क्या तब भी इतना ही हँसेगी मुझपर ?
पर सच कहूँ !
तेरे इम्तहानों ने ही जीना सिखाया है मुझे।
ये तेरी इम्तिहानो की ही ज़िद्द है ,
कि ग़म के बाद मुस्कुराना भी सिखाया है मुझे।
तेरे इम्तिहानो की ही उंगली है जिसने ,
ख़ुशी और ग़म से रूबरू कराया है मुझे।
ग़म के बाद ख़ुशी क्या होती है ,
इसका मोल तूने ही बताया है मुझे।
ऐ जिंदगी शुक्रिया तेरा तूने ,
इतने रहमो - करम बरसाये मुझपर।
सोचती हूँ कि ग़र तेरे इम्तिहाँ न होते ,
तो भी क्या इतना समझ पाती मै तुझे !
जितनी बार तेरे इम्तिहाँ ने गिराया है ,
फिर मेरे हौशलों ने उठाया है मुझे।
पर ये हौशले भी तो तूने ही दिलाया है मुझे।
ग़र न ठोकरे होती ,
तो चलना कौन सिखाता मुझे !
जिंदगी तू इम्तिहाँ ले मुस्कुराती है।
पर तेरे इम्तिहानों ने ही जीना सिखाया है मुझे।
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