ये साल कुछ अलग है, "A tribute to corona warriors"
कोरोना की दूसरी और तीसरी लहर तक आ गई है, और चली भी जाएंगी ,लेकिन हमारे देश में जो जयचंद है, वो खत्म होने का नाम नहीं ले रहे ,उनसे कैसे निपटेंगे।
कविता, अभिव्यक्ति।
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ये साल कुछ अलग है, "A tribute to corona warriors" |
ये साल कुछ अलग है,
पर उतनी भी बुरी नही,
जितनी गुलामी के जंजीरो में बंधी रही।
सब कुछ अपना ही था,
पर रहमोकरम किसी और की बनी रही।
पन्ना धाय जैसी वफादार के देश मे,
जयचन्द की दग़ाबाज़ी बनी रही।
जान महारानी झाँसी की लेकर,
अताताइयों की चाटूकारिता बनी रही।
ये साल कुछ अलग है,
पर उतनी भी बुरी नही।
मिटाकर इतिहास राणा और शिवा जी का,
गुणगान अकबर की गाये रही।
भूल गए गुरु गोविंद के लाल को,
साम्प्रदायिकता के ढोंग सजाए रही।
भूल के बलिदान,
सुखदेव, भगतसिंह और राजगुरु
जैसे वीरो का,मानसरोवर पर
झंडा चीन का लहराए रही।
आज भी कुछ ना है बदला,
उरी और गलबन घाटी की
साहसिक कारनामो पर भी
बेशर्मी से सवाल उठाए जा रही।
ये साल कुछ अलग है
पर उतनी भी बुरी नही।
जिस देश मे गाय को माँ
की दर्ज़ा मिली रही,
वही देश आज निर्ममता से
उसकी हत्या का मजा लेती रही।
बता के नाम काल्पनिक राम का
बाबर के गुण गाए रही।
ये साल कुछ अलग है
पर उतनी भी बुरी नही।
करके सलाम तिरंगा को
कुछ तो नया प्रण करे हम,
जो याद रहे बलिदान वीर जवानों का।
जय वन्दे मातरम
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विचार :-
इस कविता या अभिव्यक्ति के द्वारा मैं समाज को जागृत करने की कोशिश कर रही हूँ , उम्मीद है, आप यानी मेरे पाठक समझेंगे। कोरोना से निपटने के लिए कुछ सरकार कुछ हमारी जागरूकता काम का रही है , लेकिन हमारे समाज , गली, मोहल्ले में, या नेता के रूप में जो जयचंद बैठे हुए है ,वो यहाँ की मिटटी को खखोड़कर तो खा ही रहे हैं, साथ में देश की अस्मिता को भी ठेस पहुंचा रहे हैं ,उन्हें पहचानने की बहुत जरूरत है।