Bharat Ratn Atal Bihari Bajpai Ji-भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी


 Bharat Ratn Atal Bihari Bajpai Ji


एक देशभक्त, एक क्रांतिकारी, एक लेखक, एक लीडर, एक भारत रत्न, एक सुलझे हुए प्रधानमंत्री, जिसका गुणगान विपक्षी भी करता था, इन सबका बस एक नाम, अटल बिहारी वाजपेयी।

Bharat Ratn Atal Bihari Ji

अटल नाम अटल काम,
अटल विचारों का वो,
भारत माँ का लाल।
जब तक रहा, अटल रहा, 
विचारों और संवेदनाओं से,
भारत रत्न वो, विश्व पटल पर,
अब अगर यादें हैं,
छवि है सुरक्षित, और रहेगी अटल।
वो कवि, वो नेता, वो गौरव, वो सौरभ, 
चमकता रहेगा अटल,
वो गगन पटल पर बन कर,
सूर्य सा प्रकाश।





"25 दिसंबर" को बाजपेयी जी की जयंती पूरा देश हर साल मनातें है। "भारत रत्न" इस सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति का व्यक्तित्व कितना ऊंचा होगा, कोई भी समझ सकते हैं। 
उनका जन्म, ग्वालियर में हुआ था और उन्होंने तीन बार देश के उच्च पद, प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए। अटल बिहारी वाजपेयी जी को सन् 2015 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। राजनेता होने के साथ ही वे एक कोमल हृदय वाले और महान कवि भी थे। जिनकी लिखी हुई पंक्तियां सदा लोगो के दिल मे देश भक्ति और अन्याय के विरुद्ध खड़े होने का अलख जगाता रहेगा।

"पुनः चमकेगा दिनकर"



"पुनः चमकेगा दिनकर" Bharat Ratn Atal Bihari Ji ki kavita



पुनः चमकेगा दिनकर। 



आज़ादी का दिन मना ,
नई गुलामी बीच ;
सुखी धरती , सुना अंबर ,
मन-आँगन में किंच ;
मन-आँगन में किंच ,
कमल सारे मुरझाए ;
एक-एक कर बुझे दिप ,
अंधियारे छाए ;
कह कैदी कबिराय 
न अपना छोटा जी कर ;
चीर निशा का वक्ष 
पुनः चमकेगा दिनकर। 



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अटल बिहारी वाजपेयी जी की दो अनुभूतियाँ जो एक ही गीत से निकली है, बहुत ही प्रेरक है, जो सभी को पढ़नी चाहिए। मैं यहाँ उन्ही के द्वारा लिखी हुई अनुभूति को प्रेषित करती हूँ:--    
                                  

पहली अनुभूति :--


गीत नहीं गाता हूँ ।

बेनक़ाब चेहरे हैं, 
दाग बड़े गहरे हैं।
टूटता तिलिश्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नही गाता हूँ।
लगी कुछ ऐसी नज़र,
बिखरा शीशे सा शहर।

अपनों के मेले में मीत नही पाता हूँ
गीत नही गाता हूँ।

पीठ में छूरी सा चाँद,
राहु गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार-बार बंध जाता हूँ,
गीत नहीं गाता हूँ।


दूसरी अनुभूति :--


गीत नया गाता हूँ।


गीत नया गाता हूँ
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात,
कोयल की कुहुक रात

प्राची में अरुणिम की रेख देख पाता हूँ,
गीत नया गाता हूँ।

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी,
अंतर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा
रार नई ठानूँगा

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ।

कदम मिलाकर चलना होगा



कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएँ आती है आए,
घिरे प्रलय की घोर घटाएँ,
पाँवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरशे यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते हँसते,
आग लगाकर जलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।

हास्य रुदन में, तूफानों में
अगर असंख्य बलिदानों में,
उद्धानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अन्धकारें में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में ,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के सत-सत आकर्षक,
अरमानों को डालना होगा ,
कदम मिलाकर चलना होगा। 


सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरन्तर कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल, समान मनोरथ,
सबकुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढालना होगा। 
कदम मिलाकर चलना होगा। 


कुछ काँटों से सज्जित जीवन ,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन ,
नीरवता से मुखरित मधुवन ,
परहित अर्पित अपना तन-मन ,
जीवन को सत-सत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा। 
कदम मिलाकर चलना होगा। 







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Aparichita_______

1 Comments

If you have any doubt, please let me know.

  1. अटल जी की कविताओं का बेहतरीन संग्रह 👌👌

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