बेशुमार सवाल... किससे?
Beshumar savaal... Kissase?
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सवाल है....बेशुमार है.....
मगर किससे? |
तुम्हारी एक ख़ास खुशबू हुआ करती थी
जिसमें मैं वर्षों बाद भी......
तुम्हारे ऐबसेंस में भी महक जाया करती थी।
तुम्हारा अपना एटीट्यूड... अपना अंदाज़ था।
तुम्हारे कुछ ख़्वाब थे, कुछ बचपना था।
बारिश की रिमझिम बूंदों से.....
जैसी मिट्टी से खुशबू आती है....
मै भी तो सुरभित थी।
पर... बस...मै ग़लत थी
गलत तुम्हे समझने में....
वो स्थान...
जिसके रत्ती मात्र भर नहीं थे तुम।
पर तुम्हे बैठाया तो था...सबसे ऊपर।
थी ना मै ग़लत!
थी मैं तुम्हारे प्यार की कशिश मे भीगी सी।
प्यार आज भी है....पूरा है
पर खुद पर शर्म ज़्यादा है।
सवाल है....बेशुमार है.....
मगर किससे?
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