किससे कहूं, क्या कहूं, कैसे कहूं?|| kisase kahun kya kahun kaise kahun

 किससे कहूं?

किससे कहूं, क्या कहूं, कैसे कहूं?|| kisase kahun kya kahun kaise kahun

किससे कहूं?

चीखती-चिल्लाती रातों की बातें,

कान चीरती ख़ामोशी की बातें,

सिसकती-सुलगती जागती आँखों की बातें,

तमस से घिरे विचारों की बातें।


कैसे कहूं?

उस श्वेत रजनी की बातें,

तम को दूर भगाती मयंक की बातें,

निशा संग शशि के मिलन की बातें,

लेकिन फिर वही रात्रि को घेरती तमस की बातें।


किससे कहूं?

जिसकी मंज़िल गहरी दीवार थी,

जिससे निकलने को कोई डोर न दीवार थी।

बस गहराई— जिसे मैंने ही चुना था।


क्या कहूं, क्या हुआ?

जो बगिया पुष्पों से न महकी,

हुआ क्या जो तरु फल न दे?

क्या हुआ,

जो उसका अहसास,

बदन तो क्या, दिल भी छलनी कर दे?


बाबुल!

मैंने ही लगाए थे ये बीज।


किससे कहूं, क्या कहूं, कैसे कहूं?

चीखती-चिल्लाती रातों की बातें,

कान चीरती ख़ामोशी की बातें।


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