क्यूँ न बेख़यालियो में यूँ ही घूमा करे हम।

 क्यूँ न कभी बेख़यालियो में यूं ही घूमा करे हम।



क्यूँ न कभी बेख़यालियो में यूं ही घूमा करे हम।




क्यूँ न कभी बेख़यालियो में यूं ही घूमा करे हम।

और हमारे सारे ख़यालात बाँचा करे हम।

मैं और तुम छाँटकर हम बन जाया करे हम।

क्यूँ न फिर से कोशिशों को गुज़ारिश करे हम।

और नई शुरूआत की आगाज़ करे हम।

क्यूँ न कभी बेख़यालियो में यूं ही घूमा करे हम।


दरम्यां जो भी सवालात है, मिलकर सुलझाव करे हम।

कुछ शिक़वे तुम करो, कुछ उलझनों को बयां करे हम।

मिलकर असमंजसों की गाँठ को फिर ढ़ीली करे हम।

शिकायतों की जो धूल परी है, मिलकर साफ़ करे हम।

खोल मन की खिड़कियों को, दिल को रोशन कर हम।

क्यूँ न बेख़यालियो में यूं ही घुमा करें हम।


क्यों वक्त की दीवार को दरम्यां लाया करे हम।

क्यूँ न हर दिन सावन और हर रात चाँदनी करे हम।

हमारा प्यार है और रहेगा,

 क्यूँ न ख़यालो को ही सवारा करें हम।

क्यूँ किसी अस्तित्व की मोहताज़ बने हम।

क्यूँ न बेख़यालियो में यूं ही घूमा करे हम।


                ✍️ Shikha Bhardwaj🍂❣️🥀



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