प्रेम की परिभाषा ,prem ki paribhasha

प्रेम की परिभाषा 

प्रेम की परिभाषा 

 प्रेम परिभाषा बड़ी कठिन जग माही 

प्रेम परिभाषा गर सरल भय होती !

फिर काहे  ऋतुपति को पतझड़ हेलनी होती।

न सावन को लू का  जंगल हेलना  होता ।

पृथ्वी की भी मोहलत सिर्फ कुछ महीने की,

 बरसात संग प्यास बुझा हृदय आलिंगन की।


 प्रेम की परिभाषा इतनी आसान होती,

तो क्या! राधा के श्याम न होते ?

 एक ही शिव🍃 के लिए सती 

पार्वती न होती और न ही, 

सीता🌷 पृथ्वी समाहित होती।

मीरा के अंतर्मन में कृष्ण बसे रहे,

पर कृष्ण का साथ तो रुक्मिणी के हिस्से रही।

साथ सदा रुक्मिणी का था, 

हृदय में समाहित सिर्फ राधा रही।


 प्रेम की परिभाषा इतनी आसान होती,

तो हर भक्त प्रह्लाद और भगवान नरसिंह न होते ?

हर शहर वृंदावन की कुँज गली और हर नदी यमुना न होती?

सिर्फ जन्म दे अगर माँ होती, तो हर देवकी यशोदा न होती?


प्रेम की परिभाषा इतनी आसान होती,

तो क्या! राधा के श्याम न होते ?


                             ✍️Shikha Bhardwaj❣️





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