Jindgi ki ughdi libas,ज़िन्दगी की उघड़ी लिवास
Jindgi ki ughdi libas,ज़िन्दगी की उघड़ी लिवास
Jindgi ki ughdi libas,ज़िन्दगी की उघड़ी लिवास
फिर से रफू करने तो बैठी हूँ...
ज़िन्दगी की ये जो उघड़ी सी लिवास है...
पर सुरु करूँ कहाँ से?
वक्त से बस इतना सा सवाल है।
विस्वास का जो धागा था ...
जहाँ देखो वहीं गाँठ पड़ा सा है।
और लिवास जो ज़िन्दगी का है...
बस गुदड़ी सा उघड़ा पड़ा है।
वक्त फिसला और धागा तंज पड़ा है...
हर सुबह..वही हौसलों का ताना-बाना
और शाम मायूसी का कटोरा लिये खड़ा है।
सब अपने हैं.. या अपनो की भीड़ है?
इस भीड़ में चिल्लाती मेरी ख़ामोशी
मेरे चेहरे पर सुखी हँसी छोड़ जाती है..
मेरी ये सुखी हँसी मामूली नही...
अपनों को ही न जाने कैसे..
दहकते अंगारे की धाह दे जाती है।
सुखी हँसी, तंज़ विस्वास के धागे...
होगी रफू ....?
ये जो उघड़ी ज़िन्दगी की लिवास है ?
इसे भी पढ़े:--
https://aparichita04.blogspot.com/2021/11/%20%20%20%20%20%20%20%20.html
It is a unique blog about sad, love, motivational and devotional kavita, poem, shayri quotes, thoughts, our sanskriti and story. Request to all my readers... please read it and suggest me to how I more improve my writing...So I success to spread more smile and satisfaction on your face.
✍️ Shikha Bhardwaj❣️