अब मंजिलों की तलाश किसे है... सफ़र में ही ज़िन्दगी की शाम हो तो बेहतर है।

अब मंजिलों की तलाश किसे है...

सफ़र में ही ज़िन्दगी की शाम हो तो बेहतर है।


अब मंजिलों की तलाश किसे है...
सफ़र में ही ज़िन्दगी की शाम हो तो बेहतर है।


 अब मंजिलों की तलाश किसे है...

सफ़र में ही ज़िन्दगी की शाम हो तो बेहतर है।

कब तलक ख्वाबो का स्वेटर...

यूँ बुनते और उधेड़ते रहे हम,

एक साया सा जो जहन में बैठा है....

उसका हाथ हो .....और

उसी साए में घुलती मेरी साँसे बेदम हो...

तो बेहतर है

जीने के लिए एक उम्र नही....

जिंदगी हो तो बेहतर है।

बहुत हुआ यूं घरौंदा बनाते - बनाते....

अपने ही पंख उजाड़ना,

टहनियों पर ही वक्त में ठहरा......

 हमारा लम्हा कैद हो तो बेहतर है।

तुम्हे एक उम्र गुजारनी है......

मैं इसी वक्त में एक ज़िन्दगी गुजार लूँ ......

तो बेहतर है।

सुना है, सुनते हैं खुदा तुम्हारा......

मेरी भी एक अर्जी लगा दो.....

गुज़रे वक्त से फिर एक मुलाक़ात...

करा दो तो बेहतर है।

कुछ शिकायतें हैं , कुछ नादानियों की दरारें है...

उस वक्त में कुछ पैवंद लगा दूं तो बेहतर है।

महफिलों में तन्हा घूमना...कहाँ तक सही है

ख़ुद को ख़ुद में ही कैद कर लूं तो बेहतर है।

अब मंजिलों की तलाश किसे है...

सफ़र में ही ज़िन्दगी की शाम हो तो बेहतर है।

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✍️Shikha Bhardwaj ❣️









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