Saaye Mein Dhoop "साये में धूप" by Dushyant kumar in Hindi with Meaning of poem in the book साये में धूप by dushyant Kumar ji


Saaye Mein Dhoop "साये में धूप" by Dushyant kumar in Hindi with Meaning of  poem in the book साये में धूप by dushyant Kumar ji


दुष्यंत कुमार की गजल "साये में धूप" की खूबी है साधारण बोलचाल के शब्दों का प्रयोग, हिंदी−उर्दू के घुले मिले शब्दों का प्रयोग। चुटीले व्यंग उनकी गजल की खूबी है। वे व्यवस्था और समाज पर चोट करते हैं। ये ही उन्हें सीधे आम आदमी के दिल तक ले जाती है। उनकी ये शैली ही दुष्यन्त कुमार को अन्य कवियों से अलग और लोकप्रिय करती है।


Saaye Mein Dhoop "साये में धूप" "अपरिचिता"



Saaye Mein Dhoop "साये में धूप" by Dushyant kumar in Hindi with Meaning of  poem in the book साये में धूप by dushyant Kumar ji


Saaye Mein Dhoop "साये में धूप" by dushyant Kumar ji


 कहाँ तो तय था चरागा, हर एक घर के लिये

कहाँ चराग़ मयस्सर(उपलब्ध) नही शहर के लिये।


यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है

चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिए।


न हो कमीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे

ये लोग कितने मुनासिब है, इस सफ़र के लिये।


खुदा नही , न सही, आदमी का ख़्वाब सही

कोई हसीन नज़ारा तो है, नज़र के लिये।


वो मुतमईन(संतुष्ट) है कि, पत्थर पिघल नही सकता

मैं बेक़रार हूँ, आवाज़ में असर के लिये।



जिये तो अपने बग़ीचे में, गुलमोहर के तले

मरे तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिये।




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Saaye Mein Dhoop "साये में धूप" by Dushyant kumar in Hindi with Meaning of  poem in the book साये में धूप by dushyant Kumar ji


Gazal Class 11 Summary (Saaye Main Dhoop)


ग़ज़ल साये में धूप कक्षा 11


प्रस्तुत गजल दुष्यंत कुमार जी के गजल संग्रह “साये में धूप” से ली गई है। साथ ही यह Hindi Aaroh1,  chapter 7 और Class 11 में भी है।

ये ग़ज़ल मेरे दिल के बहुत करीब है, इसलिए मैं इसे Explanation के साथ लिखना चाहती हूं।

दुष्यंत कुमार जी के खजाने में ऐसे तो उम्दा ग़ज़ल और कविताओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन चुकी ये Gazal, Class 11के हिन्दी साहित्य में भी है, जो कि साहित्य के स्टूडेंट्स को भी अच्छी लगेगी , इसलिए मैं इसे पूरा Explanation के साथ लिखना चाहती हूँ।

 ग़ज़ल साये में धूप"saye me dhup" कक्षा 11 हिन्दी आरोह। इस ग़ज़ल के माध्यम से कवि "दुष्यंत कुमार जी" सरकार की नीतियों और उनकी विफलता पर प्रश्नचिन्ह लगाकर कहना चाहते हैं कि भारत की आजादी के वक्त जिस खुशहाल और समृद्ध भारत का सपना देखा था वो अभी तक पूरा नहीं हो पाया हैं। यहाँ लोग अभी भी मूलभूत सुख – सुबिधाओं से वंचित हैं। देश के विकास का दायित्व जिनके कंधों पर था वो भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुके हैं।

आम जनता अभावों में जीने की आदी हो चुकी हैं। उन्हें यह विश्वास हो चुका हैं कि वो कुछ भी कर लें लेकिन इस व्यवस्था को बदल नहीं सकते हैं। इसीलिए अब उन्होंने विरोध करना भी छोड़ दिया हैं जो सरकार के लिए दोनों हाथों में लड्डू जैसा हो गया है, अतः उनके लिए तो बहुत अच्छा हैं। 

हालाँकि कवि  लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना चाहते हैं ताकि वो सत्ताधारी लोगों से अपना हक ले सकें। एक सुखी व समृद्ध भारत , कवि "गजल दुष्यंत कुमार जी" का सपना हैं जहाँ हर आदमी प्रेम , स्वाभिमान व आत्मसम्मान के साथ जी सके।


Gazal Class 11 Explanation साये में धूप (Saye Main Dhoop)#अपरिचिता_aparichita




Gazal Class 11 Explanation साये में धूप (Saye Main Dhoop)


ग़ज़ल साये में धूप कक्षा 11 का भावार्थ 



1. कहां तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए ।

कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।। 

भावार्थ –

दुष्यंत कुमार जी द्वारा रचित "साये में धूप" के पहले शेर में उन नेताओं पर व्यंग्य किया है जो चुनाव के वक्त जनता को रंग-बिरंगे और लोक – लुभावने सपने दिखाकर सत्ता में आते हैं मगर सत्ता में आते ही जनता से किए वादों का कोई मोल नही होता।

उपरोक्त पंक्तियों में कवि "दुष्यंत कुमार जी" वेदना व्यक्त करते हुए कहते हैं कि आजादी के वक्त हमारे नेता, कुर्सी पर आसीन होने वक्त तय किया था कि हर घर में खुशियों के दीप जलाएंगे यानि हर घर में खुशहाली लाएंगे लेकिन आजादी के इतने साल बाद भी हर घर तो छोड़िए , वो एक शहर तक को खुशहाल नहीं बना पाये हैं।



काव्य सौंदर्य –


उपरोक्त पंक्तियों में सिस्टम के प्रति अपनी नाराजगी को कवि दुष्यंत कुमार जी ने जाहिर की है।


इस कविता में हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग कीया गया है।


जिससे ये गजल शैली में निखर कर आया है।


“तो तय”  में अनुप्रास अलंकार है।


2. यहां दरख्तों के साए में धूप लगती है ,

चलो यहां से चलें और उम्र भर के लिए। 

भावार्थ –

दुष्यंत कुमार जी द्वारा रचित "साये में धूप" के दूसरे शेर में कवि कहते हैं कि पेड़ों की छाया में भी हमें धूप लग रही है जबकि पेड़ों की छाया में हमें छाँव मिलनी चाहिए। यानी जिन राजनेताओं को हमने अपने लोक कल्याण , सुरक्षा व विकास के लिए चुना था। आज वही हमारा शोषण कर रहे हैं , भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। ऐसे समाज में जीना बहुत मुश्किल है।

कवि कहते हैं कि ऐसे समाज को छोड़कर कहीं दूर चले जाना चाहिए जो आपकी खुशियां व सुख सुबिधायें नहीं दे सकता हैं। कवि भी इस समाज को छोड़कर कहीं दूर चले जाना चाहते हैं और फिर कभी लौटकर दोबारा यहां नहीं आना चाहते हैं। साथ में वो समाज के अन्य लोगों से भी ऐसा करने को आग्रह करते हैं।


काव्य सौंदर्य –


हिंदी और उर्दू की शब्दावली के प्रयोग से 

गजल शैली में निखर कर आया है।


यह अलंकार का विरोधाभास रूप है।


3. ना हो कमीज तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे ,

यह लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।


भावार्थ –

दुष्यंत कुमार जी द्वारा रचित "साये में धूप" के तीसरे में  शेर में कवि समाज के उन लोगों पर कटाक्ष करते हैं जो हर परिस्थिति में जीने के आदी होते है। उनके आसपास क्या हो रहा हैं। इस बात से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है।

हर बात सिस्टम पर छोड़कर जीने को मजबूर हो जाते हैं।

कवि दुष्यंत कुमार जी कहते हैं कि अभाव में जीवन जीने के आदी इन लोगों के पास यदि पहनने को कमीज (कपड़े) नहीं होती हैं तो वो अपने पांवों को मोड़ कर अपने पेट को ढंक लेते हैं मगर शाशक वर्ग के खिलाफ आवाज तक नहीं उठाते हैं।


और ऐसे ही लोग , भ्रष्ट शाशक वर्ग के लिए बहुत अनकूल या अच्छे होते हैं क्योंकि वो उनका विरोध नहीं करते हैं या उस व्यवस्था के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर नहीं करते हैं। 


काव्य सौंदर्य –


हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग है।


गजल शैली का प्रयोग है।


4.खुदा नहीं , न सही , आदमी का ख्वाब सही ,

कोई हसीन नजारा तो है नजर के लिए। 

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि दुष्यंत कुमार जी "साये में धूप" के चौथे शेर में  कहते हैं कि अगर लोग वर्तमान परिस्थितियों को बदल नहीं सकते, या शासक वर्ग पर उनकी किसी बात का कोई असर नहीं हो रहा है तो कोई बात नही। कम से कम वो सुंदर सपने तो देख ही सकते हैं, दुष्यंत कुमार जी  "साये में धूप" के सहारे लोगो को जागरूक करना चाहते हैं। 

कवि आगे कहते हैं कि अगर ईश्वर , इंसान की मनचाही मुराद पूरी नहीं कर रहा हैं तो कोई बात नहीं। कम से कम वह सपनों में ही सही , कुछ मनचाहे सुंदर दृश्य या नजारे देखकर खुश तो हो ही सकता हैं यानी इन्सान को सपने अवश्य देखने चाहिए, सपने देखने वाले ही उन्हें पूरा करने का हौसला रखते हैं।

काव्य सौंदर्य –


हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग है।


गजल शैली का प्रयोग है।


 5. वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता ,

मैं बेकरार हूं आवाज में असर के लिए। 


भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि दुष्यंत कुमार जी "साये में धूप" के पाँचवे शेर में कहते हैं कि गरीब व शोषित वर्ग को यह विश्वास हो गया है कि हम कुछ भी कर लें लेकिन इन परिस्थितियों को नही बदल सकते हैं लेकिन मेरे अन्दर इन परिस्थितियों को बदलने की बेचैनी है।

कवि कहते हैं कि अगर हम सब मिलकर इस भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ आवाज उठायेंगे और हमारी आवाज में दम होगा तो ये परिस्थितियां अवश्य बदलेंगी।


यानि आम आदमी को यह विश्वास हो गया है कि अब परिस्थितियां नहीं बदल सकती है लेकिन मैं बेचैनी से इंतजार कर रहा हूं कि कब लोग एक साथ मिलकर सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाएं और फिर देखिए कैसे बदलाव आएगा और यह सिस्टम बदल जाएगा। कवि का यह व्यंग्य उन लोगों पर है जो मान बैठे हैं कि परिस्थितियां बदल ही नहीं सकती हैं।

काव्य सौंदर्य –


हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग है।


गजल शैली का प्रयोग है।


“पत्थर पिघल” में अनुप्रास अलंकार है।


6.तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की ,

ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए। 

भावार्थ –

दुष्यंत कुमार जी द्वारा रचित "साये में धूप" के पाँचवे शेर में कहना है, जब भी कोई कवि या लेखक शासन की भ्रष्ट नीतियों के खिलाफ लोगो को जागरूक करने के लिए अपनी आवाज बुलंद करता हैं तो शाशन वर्ग उस कवि की जुबान बंद करने की कोशिश करता हैं। उसकी अभिव्यक्ति पर रोक लगा देता हैं।

इसीलिए कवि कहते हैं कि यह संभव हैं कि सत्ताधारी लोग अपनी सत्ता बचाये रखने के लिए मेरी जुबान बंद कर सकते हैं या मेरी अभिव्यक्ति की आजादी को छीन सकते हैं। कवि खुद मानते है कि इस सिस्टम को चलाए रखने के लिए ऐसी सावधानी करनी भी ठीक उसी प्रकार जरूरी है जैसे गजल के छंद (बहर) के लिए बंधन या मीटर की सावधानी करनी बहुत जरूरी है।


यानि गजल के छंद लिखने वक्त भी कई बातों का ध्यान रखना पड़ता हैं तब जाकर एक सुंदर व सधी हुई गजल बनती हैं।


काव्य सौंदर्य –


हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग है।


गजल शैली का प्रयोग है।


शेर 7.

जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले ,

मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए। 


भावार्थ –

यहाँ पर गुलमोहर शब्द का प्रयोग दुष्यंत कुमार जी "साये में धूप" में   “स्वाभिमान या आत्मसम्मान” के अर्थ के रूप में प्रयोग किया है। उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि इन्सान को अपने घर में भी पूरे आत्मसम्मान व स्वाभिमान के साथ जीवन जीना चाहिए।

और अगर अपने घर के बाहर हमारी जान चली भी जाती हैं तो , वो भी अपने स्वाभिमान की रक्षा करते हुए जाय यानि घर हो या बाहर , व्यक्ति को सदैव अपने स्वाभिमान व आत्मसम्मान के साथ जीना चाहिए।

काव्य सौंदर्य –


हिंदी और उर्दू की शब्दावली का प्रयोग है।


गजल शैली का प्रयोग है।


यहाँ पर गुलमोहर शब्द “स्वाभिमान” के लिए प्रयोग किया है।


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सहयोग के लिए आपका बहुत – बहुत धन्यबाद।


Aparichita हरदम हरवक्त आपके साथ है। Aparichita कुछ अपने, कुछ पराए, कुछ अंजाने अज़नबी के दिल तक पहुँचने का सफर। aparichita इसमें लिखे अल्फ़ाज़ अमर रहेंगे, मैं रहूं न रहूं, उम्मीद है, दिल के बिखड़े टुकड़ो को संभालने का सफर जरूर आसान करेगी। aparichita, इसमें कुछ अपने, कुछ अपनो के जज़बात की कहानी, उम्मीद है आपके भी दिल तक जाएगी।




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