परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं।
Paramparaon ki chatri aaj thodi nichi kar doon.
परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं।
बड़ी जिद्द है खुद से,
कि आज खुद को बाहों में भर लूँ।
बहुत दिनों बाद आज मन बरसा है।
मिलूँ ख़ुद से, कि मिले हुए हुआ अरसा है।
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परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं।
परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं।
चलो खुल के मैं भी भींग लूँ।
सरगोशियों की बाज़ार लगी है,
ख़ामोसी की कुछ तहरीरों से,
कुछ - एक क़िताबें मैं भी लिख दूं।
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परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं। |
परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं।
कुछ सिलवटें हैं चेहरे पर,
जो वक्त ने पेशे ख़िदमत की है।
मुस्कुराहटों के कुछ लिफाफे रखें थे,
ख्वाहिशों की पेटी में,
आज उनको बाहर कर,
उन सिलवटों को, कुछ तो कम कर दूं।
आज मैं भी जरा खुद के लिए खुलकर हँस लूँ।
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परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं। |
परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं।
मैं कौन हूँ, ढूंढती खुद को खुद में।
हवाओं संग एक परिचय मेरे आँचल की,
बांध डोर जिसकी पवन संग,
आज इसे मैं बादल कर दूं।
फिर कुछ आँख मिचौली, चाँद और तारों संग
देख चकोर का भी मन भरमा दूं।
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परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं। |
परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं।
कुछ बेचैन धड़कनें हैं दिल मे,
सोचती हूँ, कि आज़ाद उन्हें मैं कर दूं।
कुछ साँसे हैं, उधार की ही रखी है,
कर्ज़ सारे आज अदा मैं कर दूं।
परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं।
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परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं। |
परम्पराओं की छत्री आज थोड़ी नीची कर दूं।
#Paramparaon_ki_chatri_aaj_thodi_niche_kr_doon
✍️Shikha Bhardwaj ❣️