बाबस्ता यूँ ही इक तस्वीर,
बन्द आँखों मे ठहर गई
Babasta yun hi ek tasveer band aankhon me thahar gai
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Babasta yun hi ek tasveer band aankhon me thahar gai |
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बाबस्ता आँखों में इक तस्वीर,
इस क़दर ठहरी, आईना सामने था,
और अक्स उसकी उभड़ी।
मुस्कुराता चेहरा...होठो पर तर्ज़नी उँगली...
शरारती आँखे, जैसे इश्क की डायरी ...
न! कोई ख़्वाब नही...
बस वक्त का ठहरा दरिया है
जो ठहर गया है....
आज,और आने वाला हर कल में।
बस वक्त का ठहरा दरिया है
जो ठहर गया है....
आज,और आने वाला हर कल में।
क्या करूँ!
बाबस्ता आँखों में इक तस्वीर,
जो ठहर गई है,आईना सामने है
और अक्स उसकी उभड़ी है...
जो ठहर गई है,आईना सामने है
और अक्स उसकी उभड़ी है...
खुली जो पलके...
खुल जाएंगी,
वक्त के आँचल मे बन्धी गाँठ सभी।
खुल जाएंगी,
वक्त के आँचल मे बन्धी गाँठ सभी।
वो कल था,
जो था, जितना था, अपना था।
वक्त नया है, और नए वक्त में मगर
फ़लसफ़े अब भी वही पुराने है, जो अपने है।
बाबस्ता यूँ ही इक तस्वीर,
जो आँखों मे ठहर गई है ..
काश ठहरी रहे...
और उम्र की जो ये कहानी है....
वो भी ठहर जाए बस इसी पल में
वक्त का हर लम्हा मेरा बन ...
मुझमे ही गुजर जाए कहीं।
बाबस्ता आँखों में इक तस्वीर,
इस क़दर ठहरी, आईना सामने था,
और अक्स उसकी उभड़ी।
बाबस्ता आँखों में इक तस्वीर,
इस क़दर ठहरी, आईना सामने था,
और अक्स उसकी उभड़ी।
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✍️ Shikha Bhardwaj ❣️
बहुत लिजलिजी रुमानियत भरी है आपकी रचना।। धन्यवाद जी।। शुभ प्रभात
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ❣️
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