"जिंदगी" कभी आओ न! पर आहट के बिना।

"जिंदगी" कभी आओ न!  पर आहट  के बिना। 

"जिंदगी" कभी आओ न!  पर आहट  के बिना। 




"जिंदगी" कभी आओ न!
 पर आहट  के बिना। 

अनायास ही सामने खरे हो जाओ
इक्तला किये बिना। 
चेहरे पर बरी सी मुस्कान छोर जाओ ,
आस - पास की खबर लिए बिना।

क्या हुआ?
गर जो मैं  बदनाम हो जाऊँ ,
तुम्हारी निशा के बिना। 

"जिंदगी" कभी आओ न!
 पर आहट  के बिना। 

ये जो तुम्हारी शैतानियां हैं ,
सामने आ ही जाती है,
तुम्हे खबर किये बिना। 

तन्हाइयों में भी महफ़िल सी छाई रहती है ,
किसी आयोजन के बिना। 

बस तुम हो, तुम हो, और तुम हो,
ज़िन्दगी मैं तुम्हें जीना चाहती हूं।
कुछ पूछे बिना,कहे बिना,बताये बिना। 

हवाओ में, सांसों में ,धड़कनों मे,
         हर जगह बस तुम्हे ढूंढती हूँ, 

"जिंदगी" कभी आओ न!
 पर आहट  के बिना। 

तुम भी कभी मुझसे मिलो न
बिना आहट के,बिना इक्तला के,
बस मुझसे मिलो न जिंदगी।

"जिंदगी" कभी आओ न!
 पर आहट  के बिना। 

Jindgi-kabhi-aao-n-par-aahat-ke-bina


✍️Shikha Bhardwaj❣️




1 Comments

If you have any doubt, please let me know.

Previous Post Next Post