वक्त से कुछ लम्हे निकालकर, आज एक मुलाकात खुद से।

वक्त से कुछ लम्हे निकालकर,
आज एक मुलाकात खुद से।




वक्त से कुछ लम्हे निकालकर,
आज एक मुलाकात खुद से।


 


वक्त से कुछ लम्हे निकालकर,
आज एक मुलाकात खुद से।
एक सवाल ख़ुद से, ज़िन्दगी से।

क्या खोया ? शायद सबकुछ!
क्या पाया ? शायद कुछ भी नही।

रात करवटों में गुजर रही थी,
ये एक सवाल था जो जहन में घर कर रही थी।

बात, माँ-बाप से बच्चों तक आ रही।
उम्र है, बस ढले जा रही।

ज़िन्दगी का पता कुछ नही, कहीं नही।
बस एक कसमकस, और बेचैनी, छाई रही।

कितनों की मुस्कान बनी, है पता! कुछ भी नही।
हर आने वाला कल, बस आज में बीत रही।

बेटी थी, अब माँ हूँ, मुमकिन है कल कुछ और बनूँ।
सोच रही, कि ज़िन्दगी का बस अर्थ यही!

कभी खुद को पाना तो दूर, ढूंढा भी नही।
जो ख़्वाब थे, यही थे, या अधूरी ही मैं रही।

नही अब भी अधूरे हैं, जो है ख़्वाब मेरे,
बहुत कर्ज़ है, जो पूरे करने है, मेरे।

इस मिट्टी की, इस समाज की, इस देश की।
जब सर्वोच्च मनुष्य बना, फिर क्यूँ संकीर्ण सोच बना।

वक्त से कुछ लम्हे निकालकर,
आज एक मुलाकात खुद से।
एक सवाल ख़ुद से, ज़िन्दगी से।

Vakt-se-kuch-lamhen-nikalkar-aaj-ek-mulakat-khud-se

#Aparichita हरदम हरवक्त आपके साथ है। #Aparichita कुछ अपने, कुछ पराए, कुछ अंजाने अज़नबी के दिल तक पहुँचने का सफर। #aparichita इसमें लिखे अल्फ़ाज़ अमर रहेंगे, मैं रहूं न रहूं, उम्मीद है, दिल के बिखड़े टुकड़ो को संभालने का सफर जरूर आसान करेगी। #aparichita, इसमें कुछ अपने, कुछ अपनो के जज़बात की कहानी, उम्मीद है आपके भी दिल तक जाएग




 

2 Comments

If you have any doubt, please let me know.

  1. शानदार है आपकी प्रस्तुति धन्यवाद जी
    शुभ प्रभात।। बहन जी

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति....इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में सब काम तो होते पर खुद से मुलाकात शेष रह जाती !!!

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