राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय, हिन्दी मे। Rashtr Kvi Maithili Sharan Gupt's Biography In Hindi"

राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय, हिन्दी मे।  Rashtr Kvi Maithili Sharan Gupt's Biography In Hindi"


प्रथम राष्ट्र कवि तुम, 
तुम ही हिंदी की पहचान।
जन जन में देश प्रेम जगाए,
ऐसी तेरी कलम की धार।
किया न्योछावर प्राण इस मातृभुमि पर,
बनकर देश सेवक, 
किया इस मिट्टी को निहाल।
तुम जैसे कवि अब होते कहां!
जो करे, जन चेतना विस्तार।
फिर लो जन्म तुम इस मिट्टी में,
है फिर से साहित्य चेतना की दरकार।

 "मैथिलीशरण गुप्त जी" की जिन्होंने न केबल हमारे साहित्य को आगे बढ़ाया, बल्कि उनकी लेखनी, उनके कलम के जादू ने ऐसी ऐसी कविताएँ दी हैं, जिससे भारत के आज़ाद क्रांतिकारियों को उनकी लेखनी से बल मिला।

देश के आम नागरिक में भी ऐसी जागृति पैदा हुई कि उनकी कविता पढ़कर देश की आज़ादी की ललक हर आम नागरिक के दिल मे उमड़ने लगी।


सिर्फ़ देश की आज़ादी ही नही, कीसानों के जागरूकता और उनके उत्थान के लिए भी बड़ा योगदान दिया।

कहते हैं, सोने का चम्मच मुँह में लेकर जन्म लेने वाले को कौन हाथ पकड़ सकता है ? लेकिन चाहे हीरे को चमक देनी हो या सोने को, हीरे को हथौड़े की मार या या सोने को आग की तपिश झेलनी ही पड़ती है।  जी मैथिलीशरण शरण गुप्त जी का जन्म तो बहुत बड़े सेठ के घर में हुआ था, लेकिन उन्हें भी अपनी चमक दिखाने से पहले मुश्किलों की कसमकश से गुजरना ही पड़ा था। 

अभी मैथिलीशरण गुप्त जी के जन्म दिन आनेवाले हैं, तो हम उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक बातों की तरफ चलते हैं:-

आइए जानते है हमारे राष्ट्र कवि के जीवन से जुड़े हर एक वसंत, पतझड़ और सावन को। 

Rashtr Kvi Maithili Sharan Gupt's Biography In Hindi .

मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन परिचय।


राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय: Rashtr kvi Maithili Sharan Gupt Biography In Hindi:कवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय, जन्म, रचना

Maithili Sharan Gupt's Biography, Poems, Books, Rachnaye, Death, Essay, Awards In Hindi

राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी हिंदी साहित्य के प्रथम कवि के रूप में माने जाते रहे हैं। 3 अगस्त उनकी जयंति आ रही है, जरूरी है कि हम उन्हें याद करे और उनको श्रद्धांजलि दे। मैथिलीशरण गुप्त जी की पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा आदि उनके काव्य में प्रथम गुण के रूप में छलकते हैं। गुप्त जी की कीर्ति  तो देश रहने तक जीवित रहेगी, लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध हुईं थी। इसी कारण से महात्मा गांधी भी इनके प्रभाव से वंचित नही रह सके थे,और उन्होंने उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि से सम्मानित किया था और आज भी हम सब लोग उनको याद कर उनकी जयंती को एक कवि दिवस के रूप में मनाते हैं। 

बिंदु (Points) जानकारी (Information):

नाम (Name)मैथिलीशरण गुप्त

जन्म (Date of Birth): 03/08/1886

आयु: 78 वर्ष।

जन्म स्थान (Birth Place):  झाँसी,उत्तरप्रदेश

पिता का नाम (Father's Name): रामचरण सेठ कनकने।

माता का नाम (Mother's Name): कशीवाई

पत्नी का नाम (Wife's Name): ज्ञात नहीं।

पेशा (Occupation ): लेखक 

चिरगाँव में साहित्यप्रेस की स्थापना : 1916 

कवि भाषा: शैली, ब्रजभाषा

मृत्यु (Death)12/12/1964 ई.


बाल कविताओं से अपनी लेखनी के सफ़र को शुरू करने वाले प्रमुख कवि और खड़ी बोली को अपनी कविताओं का माध्यम बनाने वाले मैथिलीशरण  गुप्त जी का जन्म सन 3 अगस्त 1886 ई. को झाँसी जिले के चिरगांव नामक स्थान पर एक संपन्न वैश्य परिवार में हुआ था। "चिरगाँव" जो कड़ोरो हिंदी प्रेमियो के लिए एक तीर्थ स्थल जैसा है, और उसके एक मात्र कारण, वहां के सितारा मैथिलीशरण गुप्त जी है, जिन्होंने महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के हिंदी के प्रति जागरूकता आंदोलन को आगे बढ़ाया।


इनके पिताजी का नाम सेठ रामचरण गुप्त और माता का नाम कशीवाई था।  जो मूलतः ग्वालियर के भांडेर से थे। उस समय गोरी हुकूमत और छोटे राजबारों के जुल्म चरम पर थे। उस समय डाकू और लुटेरों का तो आतंक था ही, साथ मे पिंडारो ने भी अमीर और बड़े व्यापारियों का जीना हराम किया था। मैथिलीशरण गुप्त जी के पिता कनकने परिवार भी इन सबसे दुखी परेशान होकर, झाँसी के चिरगाँव आ बसे। झाँसी रियासत की प्राथमिकता जनता की सुविधा ही थी। मैथिलीशरण गुप्त जी के पिता, रामचरण सेठ गुप्त जी ने वहां अपने व्यपार को खूब बढाया और बेशुमार दौलत कमाई। वे एक निष्ठावान् प्रसिद्ध राम भक्त और काव्यानुरागी थे। ये दोनों ही गुण गुप्त जी को पैतृक संपत्ति के रूप में प्राप्त हुए थे। गुप्त जी ने अपने पिताजी से भी बड़ा कवि बनने का आशीर्वाद अपनी एक प्रमुख रचना द्वारा पिताजी से ही अर्जित किया था।

मैथिलीशरण गुप्त जी का बचपन:

गुप्त जी बचपन बहुत ही ऐशों-आराम में गुजरा था। उनके पिता जी ने बहुत सी कोठियां, ऊंट, हाथी अनेको सिपाही, सब रखी थी।

लेकिन मैथिलीशरण गुप्त जी साधारण बच्चें की तरह ही थे उन्हें पढ़ाई में मन नही लगता था। लेकिन उनके पिता की ईक्षा थी कि उनका बेटा खूब पढ़े और डिप्टी कलेक्टर बने। इसलिए उनके पढ़ाई के लिए उन्होंने घर पर भी एक पंडित जी को रखा था।

तीसरी कक्षा तक गुप्त जी की पढ़ाई, एक मदरसे में हुई थी, जी उसी मदरसे में जिसमे कनकने परिवार ने वहां चंदे में 3000 रुपये दिए थे, जिनकी कीमत आज के जमाने मे लगभग 1 कड़ोर से भी ज्यादा होगी। 

फिर बाद में पिता जी ने उनका एडमिशन झाँसी के मैकडोनाल्ड स्कूल में करबा दिया। लेकिन नियति कुछ औऱ चाहती थी, सो अंग्रेजी व्यवस्था उनको रास न आई, और पढ़ाई से उनका मन हटता ही चला गया।  मैथिलीशरण गुप्त जी का मन पतंगबाज़ी, चक्री चलाने में ज्यादा लगता था।  मैथिलीशरण गुप् जी जब भी आस -पास के विवाह समारोह में जाते तो वहां भी वो अपने पतंगबाज़ दोस्तों को ले जाया करते थे। 

कहते हैं, दुःख के कान कच्चे होते है , शुख को नज़र लग गई। 

पहले कम उम्र में ही शादी कर दी जाती थी सो उनकी भी कर दी गई , लेकिन उनकी पत्नी का देहांत जल्द ही हो गया। 

28 साल की उम्र में ही उनके 2 पत्नियां, बेटा, पिता और माता  सबका एक- एक कर देहांत होता चला गया। बहुत कम उम्र में ही उनकी पहली पत्नी और बच्चें का देहांत हो चुका था, फिर पिता की मृत्यु, उसके बाद माता की मृत्यु, कारोबार में लगातार घाटा, उनको अंदर से तोड़ दिया था।

रिस्तेदारो के जोड़ देने पर दूसरी शादी की, लेकिन 28 वर्ष की उम्र में ही फिर से उन्हें पत्नी से विछोह का दुख भोगना पड़ा, उनकी दूसरी पत्नी का भी देहांत ही गया।

मैथिलीशरण गुप्त साहित्यिक जीवन परिचय :

 इतनी कम उम्र में मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपनी तन्हाई अपने शब्दों के साथ बॉटनी शुरू कर दी।

उन्होंने कविता, चौपाई, दोहे और छप्पय आदि लिखने शुरू कर दिए। वो अपनी रचनाओं को रषिकेन्द्र नाम से लिखा करते थे।

उनकी रचनाएं अलग-अलग पत्रिकाओं में छपने लगी थी।

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1904 और 1905 के बीच उनकी रचनाएं कोलकाता के वैश्योपकारक, मुम्बई के वेंकटेश्वर और कन्नौज के मोहिनी पत्रिका में प्रकाशित होने लगी थी।

Rashtr Kvi Maithili Sharan Gupt's Biography In Hindi .
मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन परिचय।



इसी क्रम में, उन्ही दिनों हिंदी के पुरौधा पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी झांसी के रेलवे में काम करते थे और साथ ही वहीं से सरस्वती पत्रिका का भी सम्पादन किया करते थे।


सरस्वती उस दौर की सबसे अच्छी और जानी-मानी पत्रिका थी जो इलाहाबाद में हिंदी में प्रकाशित होती थी। सरस्वती पत्रिका में किसी भी लेखक की रचना छपना, सम्मान की बात थी, और गुप्त जी की भी बड़ी ईक्षा थी कि उनकी लेखनी भी सरस्वती पत्रिका में छपे। 

बड़ी हिम्मत जुटा कर मैथिलीशरण गुप्त जी, महावीर प्रसाद जी से मिलने गए, और ये दिन उनके लिए नए जीवन की शुरुआत या नवनिर्माण का दिन थी।

महावीर प्रसाद द्विवेदी और मैथिलीशरण गुप्त,दोनों के बीच संवाद:


"मैं मैथिलीशरण गुप्त हूँ,

 और मैं चाहता हूँ, मेरी कविता सरस्वती में प्रकाशित हो।"


महावीर प्रसाद द्विवेदी: 

 हम्म, बहुत से ऐसे लोग हैं, जो चाहते हैं कि उनकी कविता सरस्वती में छपे, और आप तो ब्रज भाषा मे लिखते हैं, लेकिन सरस्वती खड़ी बोली की पत्रिका है। मैं भला उम्म...कैसे छाप सकता हूँ?


मैथिलीशरण गुप्त जी:

 अगर आप मुझे अस्वाशन दे तो मैं खड़ी बोली में भी लिख दूंगा।

महावीर प्रसाद द्विवेदी:

 हम्म...ठीक है तो पहले आप हमें कोई कविता भेजिए तो सही..अगर छपने लायक होगी तो हम जरूर प्रकाशित करेंगे!

मैथिलीशरण गुप्त जी:

 ठीक है, मैं अपनी कविताएं रषिकेन्द्र नाम से भेजूंगा।

महावीर प्रसाद द्विवेदी:

 हा हा..अब आप रषिकेन्द्र बनने की ईक्षा छोड़िए.. वो जमाना चला गया।


महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के आदेश का पालन हुआ, और रषिकेन्द्र बन गए "मैथिलीशरण गुप्त।" 

सरस्वती में "हेमंत" शीर्षक के साथ, मैथिलीशरण गुप्त जी की पहली कविता थी, जो कुछ संसाधनों के साथ महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने प्रकाशित कर दी और साथ मे उन्होंने कुछ टिप्स भी दी।

उसके बाद, मैथिलीशरण गुप्त जी की कविता, सरस्वती में प्रकाशित होती ही गई।

उस समय ब्रज भाषा का प्रचलन ज्यादा था, लेकिन महावीर प्रसाद द्विवेदी जी खड़ी भाषा हिंदी को लेकर मुहिम चला रहे थे, और उस समय एक जवान, जो खड़ी भाषा हिंदी में कवि उभर कर आए थे, और उनके साहित्यिक गुरु बन गए थे : "महावीर प्रसाद द्विवेदी जी।"

12 वर्ष तक वो संसद में  भी उनकी रचनाएं खूब चली। संसद भवन को मंत्र मुग्ध करती रही।

मैथिलीशरण गुप्त जी अब दद्दा के रूप में पहचाने जाने लगे थे। उनकी रचनाएं उस समय लोगों के दिलों में इस तरह घर की थी की वो सरस्वती के लेखकों में पहले स्थान पर थे।  

सच ही कहा है, जिसके सर पे सच्चे गुरु का हाथ हो, उसे जग जीतने से कौन रोक सकता है। वही हुआ- महावीर प्रसाद द्विवेदी जी गुरु हुए, जिससे मैथिलीशरण गुप्त जी, साहित्य की दुनिया के आकाश चूमने लगे।

1905 ई. से 1921 ई. तक मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएं जगह पाती रही थी। 

उनकी पहली कविता हेमंत से लेकर, जयद्रथ बद्ध, भारत-भारती, साकेत जैसी अनेक मशहूर रचनाएं , किताब की शक्ल लेने से पहले सरस्वती में छप चुकी थी। 

उन्होंने बंगाली भाषा के काव्य ग्रन्थ में ‘मेघनाथ बध’ अथवा ‘’ब्रजांगना’’ का भी अनुवाद किया था. 1912 व 1913 में राष्ट्रीयता की भावनाओं से परिपूर्ण ‘’भारत भारती’’ काव्य ग्रन्थ भी प्रकाशित हुआ था. इसमें गुप्त जी ने स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान में देश की दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का सम्पूर्ण प्रयोग किया था. संस्कृत भाषा का प्रमुख काव्य ग्रन्थ “स्वप्नवासवदत्ता”, महाकाव्य साकेत, उर्मिला आदि काव्य भी प्रकाशित हुए।


1910 ई. में में मैथिलीशरण गुप्त जी की कालजई रचना "रंग में भंग " लोगो के दिलों को उत्साह से भर दिया था 

"आज भी चित्तौड़ का सुन नाम कुछ जादू भरा 

चमक जाती चंचला-सी चित्त में करके त्वरा "


1905 ई. में उन्होंने खंड-काब्य "जयद्रथ बद्ध "  लिखा, जिसमे उन्होंने बंगाल विभाजन का पूरा गुस्सा निकला था। 

"वाचक! प्रथम सर्वत्र ही 'जय जानकी जीवन '
कहो फिर पूर्वजों के शील की शिक्षा तरंगो में बहो 
दुःख , शोक, जब जो आ पड़े , सो धर्यपूर्वक सब सहो 
होगी सफलता क्यों नहीं , कर्तब्यपथ पर दृढ रहो 
अधिकार खोकर बैठ रहना , यह महा दुष्कर्म है 
न्यायार्थ अपने बंधू को भी दंड देना धर्म है "


"जयद्रथ बद्ध " खंड-काव्य लिखने के बाद , मैथिलीशरण गुप्त की लोकप्रियता ने उन्हें शिखर पर पहुंचा दिया था। 

1914 ई. भारत-भारती : यूँ तो मैथिलि जी ने इतिहास के इस काव्यात्मक प्रस्तुति को 1912 में ही पूरा कर लिया था, लेकिन ये प्रकाशित हुई थी 1914 ई. में। 

इस कविता के द्वारा मैथिलि जी देशवासियों को उस समय के कठिन परिस्थितियों को अपने गौरवमई इतिहास की तुलना कर जागरूक करने का पुरजोर कोशिश करते हैं। 

"हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी 
आओ विचारे आज मिलकर ये समस्याएँ सभी 
यधपि हमें इतिहास अपना प्राप्त पूरा है नहीं,
हम कौन थे, ये ज्ञान, फिर भी अधूरा है नहीं "


"भारत-भारती" देश के अतीत, वर्तमान और भविष्य से जुडी कीर्तियाँ थी। ये काव्य इतनी मशहूर हुई की देखते ही देखते इसकी सारी प्रतियां समाप्त हो गई, और 2 महीने के भीतर ही दूसरा संस्करण छापना पड़ा। 

"मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारे आरती 
भगवान ! भारत वर्ष में गूंजे हमारी भारती 
हो भद्रभावोदभाविनि वह भर्ती हे भगवते 
सीतापते ! सीतापते ! गीतामते ! गीतामते !
हाँ लेखनी ! हृत्पत्र पर लिखनी तुझे है यह कथा 
दृक्कालिमा में डूबकर, तैयार होकर सर्वथा 
स्वछन्दता से कर तुझे करने पड़े प्रस्ताव जो 
जग जाए तेरी नोंक से सोये हुए हों भाव जो 
संसार में किसका समय है, एक सा रहता सदा 
है निशि दिवा सी घूमती सर्वत्र विपदा-सम्पदा 
जो आज एक अनाथ है , नरनाथ कल होता वही 
जो आज उत्सव मग्न है, कल शोक से रोता वही "


भारत - भारती इतनी प्रशिद्ध हुई कि चाहे प्रभात फेरी हो या राष्ट्रिय आन्दोलन, शिक्षा संस्थानों या प्रातः कालीन प्रार्थनाओं , सब में भारत-भारती गाई जाने लगी थी। पढ़े -लिखे के जवान पर तो ये रचनाएं थी ही, लेकिन गांवों में भी , यहां तक कि जो अनपढ़ थे , वे भी सुन-सुन कर इन कविताओं को याद कर चुके थे, और उनके जुबान पर बस यही बस चूका था। 

नागपुर में जब महात्मा गांधी का झंडा सत्याग्रह हुआ , वहां भी सभी सत्याग्रही जुलुस में इसी गीत को गाने लगे थे। 
गोरी सरकार परेशान होकर भारत-भारती पर पावंदी लगा दीऔर साड़ी प्रतियाँ जप्त कर ली। 

मैथिलीशरण गुप्त जी ने भारत - भारती  तीन खंड में लिखी थी। 
एक अतित का खंड था , जिससे प्रेरणा मिलती थी ,
दूसरा वर्तमान का खंड था , जिसमें उन्होंने वर्तमान की विषमता का चित्रण किया हुआ है , जिससे लोगों में आकर्ष भरता था। 
तीसरा भविष्य का खंड: जिसमे उन्होंने आने वाली परिस्थिति से अवगत कराया है। 

ऐसी ऐतिहासिक और युगांतरकारी , चाहे स्वाधीनता आंदोलन को हवा देना था , हिंदी के माध्यम से जो किया था , उसकी शुरुआत मैथिलीशरण गुप्त जी ने भारत-भारती के माध्यम से किया था। 
मैथिलीशरण गुप्त उर्फ़ दद्दा जी , कोई भी नया या मंगल काम करते थे, भारत-भारती की सुरु की लाइने जो थी "मंगलाचरण" , उनकी कोशिश होती थी कि वो उन लाइनों को गाकर ही करे। 

"मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारे आरती 
भगवान ! भारत वर्ष में गूंजे हमारी भारती 
हो भद्रभावोदभाविनि वह भर्ती हे भगवते 
सीतापते ! सीतापते ! गीतामते ! गीतामते !
हाँ लेखनी ! हृत्पत्र पर लिखनी तुझे है यह कथा 
दृक्कालिमा में डूबकर, तैयार होकर सर्वथा 
स्वछन्दता से कर तुझे करने पड़े प्रस्ताव जो 
जग जाए तेरी नोंक से सोये हुए हों भाव जो 
संसार में किसका समय है, एक सा रहता सदा 
है निशि दिवा सी घूमती सर्वत्र विपदा-सम्पदा 
जो आज एक अनाथ है , नरनाथ कल होता वही 
जो आज उत्सव मग्न है, कल शोक से रोता वही "


लेकिन एक तरफ जहां , पूरा देश उनकी भारत - भारती को गुनगुना रहा था, वहीं दूसरी तरफ उनकी दूसरी पत्नी के भी देहावसान की खबर आई , फिर से एक अवसाद ने उन्हें घेर लिया था। पत्नी का देहांत , कोई संतान नहीं और माता - पिता का पहले ही स्वर्गवास , हो चूका था। यूँ अकेलेपन से मन उचाट और खिन्न रहने लगा था। 

इसी बीच चिरगाँव  में , प्रिंटिंग प्रेस और प्रकाशन के कारोबार को सुरु किया गया था। जिसमे 1914 में "सकुंतला" , और उसके दो साल के बाद 1916 ई. में  "किसान " नाम के कविता संग्रह प्रकाशित हुए। जिसमे भारतीय किसानो की परेशानी और और उनकी दुर्दशा का चित्रण अद्भुत किया गया है। 

" किसान " की कुछ पंक्तियाँ :

हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है।
पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है॥


हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ।
खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ॥


आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अंत में।
अधपेट खाकर फिर उन्हें है काँपना हेमंत में॥


ये एक ऐसा खंड-काव्य था , जिसका नायक दलित किसान था , और ये अंग्रेज़ो और मुग़लो के फुट डालो शाशन करो के व्यवस्था पर एक प्रहार का शुरुआत था। 

मैथिलीशरण गुप्त जी की रचनाएं और दूसरी पत्रिकाएं , जैसे इंदु , प्रताप , प्रभा जैसी पत्रिकाओं में छप रही थी। लोग उनकी हर एक कविता के दीवाने थे। 

इसी दौरान उन्होंने 1915 -1916 ई. में  तीन नाटक की भी रचना की : तिलोत्तमा, चन्द्रहास और अनध 

1925 ई. में मैथिलीशरण गुप्त जी ने एक ऐतिहासिक खंड काव्य की रचना की, जिसका नाम था ,  "पंचवटी" इसमें उन्होंने राम- सीता और लक्ष्मण के 14 साल के बनवास के दौरान पंचवटी में जो समय गुजारा था , उसका मैथिलि जी ने सजीव चित्रण किया है। 
पंचवटी में उन्होंने लक्ष्मण के किरदार को जो निखारा है , इससे पहले किसी का विचार उस तरफ नहीं गया था। लक्ष्मण के साथ - साथ मैथिलि जी ने कुदरत को भी भी अपने शब्दों में बड़ी ही खूबसूरती से ढाला है , जिसे पढ़कर कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाए और और उस रमणीक दृश्य से सजीव साक्षात्कार जैसा अनुभव हो। 

"पंचवटी " काव्य-खंड की कुछ लाइने :--


चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।


पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥


पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,
जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर-वीर निर्भीकमना,


जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है?
                 भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है॥


किस व्रत में है व्रती वीर यह, निद्रा का यों त्याग किये,
राजभोग्य के योग्य विपिन में, बैठा आज विराग लिये।


बना हुआ है प्रहरी जिसका, उस कुटीर में क्या धन है,
जिसकी रक्षा में रत इसका, तन है, मन है, जीवन है!




 917 ई. में शुभचिंतकों ने मिलकर सरयूदेवी के साथ उनका बहुत कह-सुनकर तीसरा विवाह करवा दिया। 
उनसे उनको कई संताने हुई , लेकिन कोई भी संतान जीवित नहीं बच पाई। 

मैथिलीशरण गुप्त जी के आठ संतान की मृत्यु हो चुकी थी , कोई बच नहीं पा रहा था , फिर एक साधू ने उनकी पत्नी से कहा था कि , जब आपके बच्चें हो तो आप उनका स्तन पान मत कराना। 
फिर ढलती उम्र में मैथिलीशरण गुप्त जी को जाकर एक संतान प्राप्त हुई जिनका नाम पड़ा, "उर्मिल शरण", विडंबना ये थी कि इतना बच्चों को खोने के बाद और साधू के दिए हिदायतों के कारण , मैथिलि जी की पत्नी ने , न तो अपने बच्चें को कभी स्तन पान करबाया, और न ही , कभी अपने बच्चें को पुचकारा ही।  देहाती टोटका का विश्वास का जोड़ कहिए कि एक माँ की ममता ऐसी थी कि उसे जीवित देखने के लालसा में कभी उसे प्यार नहीं किया। यही भारतीय स्त्री का सौंदर्य कहिए या मातृ शक्ति , जो अपने संतान के लिए कुछ भी कर सकती है। 



साकेत के प्रस्तावना में मैथिलीशरण गुप्त जी ने सरस्वती और महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के साथ अपने रिश्ते के बारे में लिखा :
"करते तुलसीदास भी कैसे मानस  का नाद ?
महावीर का यदि उन्हें, मिलता नहीं प्रसाद"

 सच ही कहा था, मैथिलीशरण गुप्त, को मैथिलीशरण गुप्त बनाने में आचार्य महावीर प्रसाद का ही हाथ था।  

सरस्वती पत्रिका : सरस्वती एक सचित्र मासिक थी , जिसमे रंगीन चित्र भी छपते थे।  मैथिलीशरण गुप्त जी की अनेक रचनाएं इन चित्रों को उजागर करती थी।, उनमे कहिए तो जान डालती थी। 

16 साल के दौरान, गुप्त जी ने करीब 300 कवितायेँ लिखी। 

एक सच्चे राष्ट्र कवि भी थे. इनके काव्य हिंदी साहित्य की अमूल निधी माने जाते हैं. महान ग्रन्थ ‘भारत भारती’ में उन्होंने भारतीय लोगों की जाति और देश के प्रति गर्व और गौरव की भावना जगाई है। अंतिम काल तक राष्ट्र सेवा में अथवा काव्य साधना में लीन रहने वाले और राष्ट्र के प्रति अपनी रचनाओं को समर्पित करने वाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी 12 दिसम्बर सन 1964 ई. को अपने राष्ट्र को अलविदा कह गए।

कवि मैथिलीशरण गुप्त की रचनायें:


यशोधरा:

रंग में भंग

साकेत

भारत भारती

पंचवटी

जय भारत

पृथ्वीपुत्र

किसान

हिन्दू

चन्द्रहास

कुणालगीत

द्वापर आदि.


पुरस्कार | Maithili Sharan Gupt's Awards


इलाहाबाद विश्विद्यालय से इन्हें डी.लिट. की उपाधि प्राप्त हुई थी.


सन 1952 में गुप्त जी राज्य सभा में सदस्य के लिए मनोनीत भी हुए थे।

1952 ई. में मैथिलीशरण गुप्त जी को राजसभा  सदस्य मनोनीत किया गया, जहां उन्होंने अपने पद के प्रति पूरी निष्ठा से 12 साल सेवा प्रदान किया और सदन की गरिमा बढाते रहे। वहां भी वो अपनी कविता से सभी सांसदों को मंत्रमुग्ध करते रहे। उनकी अभिव्यक्ति ज्यादातर कविताओं में ही हुआ करती थी।

 मैथिलीशरण गुप्त जी को सन् 1954 ई. में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। 



1954 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था।

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मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन परिचय।


ये मैथिलीशरण गुप्त जी के जीवन परिचय का अंश मात्र है, मैं समय समय पर आप सबको और जानकारियां इकट्ठा करके देती रहूंगी, उम्मीद है, आप सब को ये साहित्य संवाद पसंद आए होंगे।


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#Aparichita हरदम हरवक्त आपके साथ है। #Aparichita कुछ अपने, कुछ पराए, कुछ अंजाने अज़नबी के दिल तक पहुँचने का सफर। #aparichita इसमें लिखे अल्फ़ाज़ अमर रहेंगे, मैं रहूं न रहूं, उम्मीद है, दिल के बिखड़े टुकड़ो को संभालने का सफर जरूर आसान करेगी। #aparichita, इसमें कुछ अपने, कुछ अपनो के जज़बात की कहानी, उम्मीद है आपके भी दिल तक जाएग

Shikha Bhardwaj__✍️







1 Comments

If you have any doubt, please let me know.

  1. मैथिली शरणगुप्त जी के जीवन से जुड़ी अच्छी जानकारी शेयर की।

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