राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय, हिन्दी मे। Rashtr Kvi Maithili Sharan Gupt's Biography In Hindi"
"मैथिलीशरण गुप्त जी" की जिन्होंने न केबल हमारे साहित्य को आगे बढ़ाया, बल्कि उनकी लेखनी, उनके कलम के जादू ने ऐसी ऐसी कविताएँ दी हैं, जिससे भारत के आज़ाद क्रांतिकारियों को उनकी लेखनी से बल मिला।
देश के आम नागरिक में भी ऐसी जागृति पैदा हुई कि उनकी कविता पढ़कर देश की आज़ादी की ललक हर आम नागरिक के दिल मे उमड़ने लगी।
सिर्फ़ देश की आज़ादी ही नही, कीसानों के जागरूकता और उनके उत्थान के लिए भी बड़ा योगदान दिया।
कहते हैं, सोने का चम्मच मुँह में लेकर जन्म लेने वाले को कौन हाथ पकड़ सकता है ? लेकिन चाहे हीरे को चमक देनी हो या सोने को, हीरे को हथौड़े की मार या या सोने को आग की तपिश झेलनी ही पड़ती है। जी मैथिलीशरण शरण गुप्त जी का जन्म तो बहुत बड़े सेठ के घर में हुआ था, लेकिन उन्हें भी अपनी चमक दिखाने से पहले मुश्किलों की कसमकश से गुजरना ही पड़ा था।
अभी मैथिलीशरण गुप्त जी के जन्म दिन आनेवाले हैं, तो हम उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक बातों की तरफ चलते हैं:-
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Rashtr Kvi Maithili Sharan Gupt's Biography In Hindi .
मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन परिचय।
राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय: Rashtr kvi Maithili Sharan Gupt Biography In Hindi:कवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय, जन्म, रचना
Maithili Sharan Gupt's Biography, Poems, Books, Rachnaye, Death, Essay, Awards In Hindi
राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी हिंदी साहित्य के प्रथम कवि के रूप में माने जाते रहे हैं। 3 अगस्त उनकी जयंति आ रही है, जरूरी है कि हम उन्हें याद करे और उनको श्रद्धांजलि दे। मैथिलीशरण गुप्त जी की पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा आदि उनके काव्य में प्रथम गुण के रूप में छलकते हैं। गुप्त जी की कीर्ति तो देश रहने तक जीवित रहेगी, लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध हुईं थी। इसी कारण से महात्मा गांधी भी इनके प्रभाव से वंचित नही रह सके थे,और उन्होंने उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि से सम्मानित किया था और आज भी हम सब लोग उनको याद कर उनकी जयंती को एक कवि दिवस के रूप में मनाते हैं।
बिंदु (Points) जानकारी (Information):
नाम (Name)मैथिलीशरण गुप्त
जन्म (Date of Birth): 03/08/1886
आयु: 78 वर्ष।
जन्म स्थान (Birth Place): झाँसी,उत्तरप्रदेश
पिता का नाम (Father's Name): रामचरण सेठ कनकने।
माता का नाम (Mother's Name): कशीवाई
पत्नी का नाम (Wife's Name): ज्ञात नहीं।
पेशा (Occupation ): लेखक
चिरगाँव में साहित्यप्रेस की स्थापना : 1916
कवि भाषा: शैली, ब्रजभाषा
मृत्यु (Death)12/12/1964 ई.
बाल कविताओं से अपनी लेखनी के सफ़र को शुरू करने वाले प्रमुख कवि और खड़ी बोली को अपनी कविताओं का माध्यम बनाने वाले मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म सन 3 अगस्त 1886 ई. को झाँसी जिले के चिरगांव नामक स्थान पर एक संपन्न वैश्य परिवार में हुआ था। "चिरगाँव" जो कड़ोरो हिंदी प्रेमियो के लिए एक तीर्थ स्थल जैसा है, और उसके एक मात्र कारण, वहां के सितारा मैथिलीशरण गुप्त जी है, जिन्होंने महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के हिंदी के प्रति जागरूकता आंदोलन को आगे बढ़ाया।
मैथिलीशरण गुप्त जी का बचपन:
गुप्त जी बचपन बहुत ही ऐशों-आराम में गुजरा था। उनके पिता जी ने बहुत सी कोठियां, ऊंट, हाथी अनेको सिपाही, सब रखी थी।
लेकिन मैथिलीशरण गुप्त जी साधारण बच्चें की तरह ही थे उन्हें पढ़ाई में मन नही लगता था। लेकिन उनके पिता की ईक्षा थी कि उनका बेटा खूब पढ़े और डिप्टी कलेक्टर बने। इसलिए उनके पढ़ाई के लिए उन्होंने घर पर भी एक पंडित जी को रखा था।
तीसरी कक्षा तक गुप्त जी की पढ़ाई, एक मदरसे में हुई थी, जी उसी मदरसे में जिसमे कनकने परिवार ने वहां चंदे में 3000 रुपये दिए थे, जिनकी कीमत आज के जमाने मे लगभग 1 कड़ोर से भी ज्यादा होगी।
फिर बाद में पिता जी ने उनका एडमिशन झाँसी के मैकडोनाल्ड स्कूल में करबा दिया। लेकिन नियति कुछ औऱ चाहती थी, सो अंग्रेजी व्यवस्था उनको रास न आई, और पढ़ाई से उनका मन हटता ही चला गया। मैथिलीशरण गुप्त जी का मन पतंगबाज़ी, चक्री चलाने में ज्यादा लगता था। मैथिलीशरण गुप् जी जब भी आस -पास के विवाह समारोह में जाते तो वहां भी वो अपने पतंगबाज़ दोस्तों को ले जाया करते थे।
कहते हैं, दुःख के कान कच्चे होते है , शुख को नज़र लग गई।
पहले कम उम्र में ही शादी कर दी जाती थी सो उनकी भी कर दी गई , लेकिन उनकी पत्नी का देहांत जल्द ही हो गया।
28 साल की उम्र में ही उनके 2 पत्नियां, बेटा, पिता और माता सबका एक- एक कर देहांत होता चला गया। बहुत कम उम्र में ही उनकी पहली पत्नी और बच्चें का देहांत हो चुका था, फिर पिता की मृत्यु, उसके बाद माता की मृत्यु, कारोबार में लगातार घाटा, उनको अंदर से तोड़ दिया था।
रिस्तेदारो के जोड़ देने पर दूसरी शादी की, लेकिन 28 वर्ष की उम्र में ही फिर से उन्हें पत्नी से विछोह का दुख भोगना पड़ा, उनकी दूसरी पत्नी का भी देहांत ही गया।
मैथिलीशरण गुप्त साहित्यिक जीवन परिचय :
इतनी कम उम्र में मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपनी तन्हाई अपने शब्दों के साथ बॉटनी शुरू कर दी।
उन्होंने कविता, चौपाई, दोहे और छप्पय आदि लिखने शुरू कर दिए। वो अपनी रचनाओं को रषिकेन्द्र नाम से लिखा करते थे।
उनकी रचनाएं अलग-अलग पत्रिकाओं में छपने लगी थी।
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1904 और 1905 के बीच उनकी रचनाएं कोलकाता के वैश्योपकारक, मुम्बई के वेंकटेश्वर और कन्नौज के मोहिनी पत्रिका में प्रकाशित होने लगी थी।
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Rashtr Kvi Maithili Sharan Gupt's Biography In Hindi .
मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन परिचय।
इसी क्रम में, उन्ही दिनों हिंदी के पुरौधा पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी झांसी के रेलवे में काम करते थे और साथ ही वहीं से सरस्वती पत्रिका का भी सम्पादन किया करते थे।
सरस्वती उस दौर की सबसे अच्छी और जानी-मानी पत्रिका थी जो इलाहाबाद में हिंदी में प्रकाशित होती थी। सरस्वती पत्रिका में किसी भी लेखक की रचना छपना, सम्मान की बात थी, और गुप्त जी की भी बड़ी ईक्षा थी कि उनकी लेखनी भी सरस्वती पत्रिका में छपे।
बड़ी हिम्मत जुटा कर मैथिलीशरण गुप्त जी, महावीर प्रसाद जी से मिलने गए, और ये दिन उनके लिए नए जीवन की शुरुआत या नवनिर्माण का दिन थी।
महावीर प्रसाद द्विवेदी और मैथिलीशरण गुप्त,दोनों के बीच संवाद:
"मैं मैथिलीशरण गुप्त हूँ,
और मैं चाहता हूँ, मेरी कविता सरस्वती में प्रकाशित हो।"
महावीर प्रसाद द्विवेदी:
हम्म, बहुत से ऐसे लोग हैं, जो चाहते हैं कि उनकी कविता सरस्वती में छपे, और आप तो ब्रज भाषा मे लिखते हैं, लेकिन सरस्वती खड़ी बोली की पत्रिका है। मैं भला उम्म...कैसे छाप सकता हूँ?
मैथिलीशरण गुप्त जी:
अगर आप मुझे अस्वाशन दे तो मैं खड़ी बोली में भी लिख दूंगा।
महावीर प्रसाद द्विवेदी:
हम्म...ठीक है तो पहले आप हमें कोई कविता भेजिए तो सही..अगर छपने लायक होगी तो हम जरूर प्रकाशित करेंगे!
मैथिलीशरण गुप्त जी:
ठीक है, मैं अपनी कविताएं रषिकेन्द्र नाम से भेजूंगा।
महावीर प्रसाद द्विवेदी:
हा हा..अब आप रषिकेन्द्र बनने की ईक्षा छोड़िए.. वो जमाना चला गया।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के आदेश का पालन हुआ, और रषिकेन्द्र बन गए "मैथिलीशरण गुप्त।"
सरस्वती में "हेमंत" शीर्षक के साथ, मैथिलीशरण गुप्त जी की पहली कविता थी, जो कुछ संसाधनों के साथ महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने प्रकाशित कर दी और साथ मे उन्होंने कुछ टिप्स भी दी।
उसके बाद, मैथिलीशरण गुप्त जी की कविता, सरस्वती में प्रकाशित होती ही गई।
उस समय ब्रज भाषा का प्रचलन ज्यादा था, लेकिन महावीर प्रसाद द्विवेदी जी खड़ी भाषा हिंदी को लेकर मुहिम चला रहे थे, और उस समय एक जवान, जो खड़ी भाषा हिंदी में कवि उभर कर आए थे, और उनके साहित्यिक गुरु बन गए थे : "महावीर प्रसाद द्विवेदी जी।"
12 वर्ष तक वो संसद में भी उनकी रचनाएं खूब चली। संसद भवन को मंत्र मुग्ध करती रही।
मैथिलीशरण गुप्त जी अब दद्दा के रूप में पहचाने जाने लगे थे। उनकी रचनाएं उस समय लोगों के दिलों में इस तरह घर की थी की वो सरस्वती के लेखकों में पहले स्थान पर थे।
सच ही कहा है, जिसके सर पे सच्चे गुरु का हाथ हो, उसे जग जीतने से कौन रोक सकता है। वही हुआ- महावीर प्रसाद द्विवेदी जी गुरु हुए, जिससे मैथिलीशरण गुप्त जी, साहित्य की दुनिया के आकाश चूमने लगे।
1905 ई. से 1921 ई. तक मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएं जगह पाती रही थी।
उनकी पहली कविता हेमंत से लेकर, जयद्रथ बद्ध, भारत-भारती, साकेत जैसी अनेक मशहूर रचनाएं , किताब की शक्ल लेने से पहले सरस्वती में छप चुकी थी।
उन्होंने बंगाली भाषा के काव्य ग्रन्थ में ‘मेघनाथ बध’ अथवा ‘’ब्रजांगना’’ का भी अनुवाद किया था. 1912 व 1913 में राष्ट्रीयता की भावनाओं से परिपूर्ण ‘’भारत भारती’’ काव्य ग्रन्थ भी प्रकाशित हुआ था. इसमें गुप्त जी ने स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान में देश की दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का सम्पूर्ण प्रयोग किया था. संस्कृत भाषा का प्रमुख काव्य ग्रन्थ “स्वप्नवासवदत्ता”, महाकाव्य साकेत, उर्मिला आदि काव्य भी प्रकाशित हुए।
1910 ई. में में मैथिलीशरण गुप्त जी की कालजई रचना "रंग में भंग " लोगो के दिलों को उत्साह से भर दिया था
"आज भी चित्तौड़ का सुन नाम कुछ जादू भरा
चमक जाती चंचला-सी चित्त में करके त्वरा "
1905 ई. में उन्होंने खंड-काब्य "जयद्रथ बद्ध " लिखा, जिसमे उन्होंने बंगाल विभाजन का पूरा गुस्सा निकला था।
"वाचक! प्रथम सर्वत्र ही 'जय जानकी जीवन '
कहो फिर पूर्वजों के शील की शिक्षा तरंगो में बहो
दुःख , शोक, जब जो आ पड़े , सो धर्यपूर्वक सब सहो
होगी सफलता क्यों नहीं , कर्तब्यपथ पर दृढ रहो
अधिकार खोकर बैठ रहना , यह महा दुष्कर्म है
न्यायार्थ अपने बंधू को भी दंड देना धर्म है "
1914 ई. भारत-भारती : यूँ तो मैथिलि जी ने इतिहास के इस काव्यात्मक प्रस्तुति को 1912 में ही पूरा कर लिया था, लेकिन ये प्रकाशित हुई थी 1914 ई. में।
"हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी
आओ विचारे आज मिलकर ये समस्याएँ सभी
यधपि हमें इतिहास अपना प्राप्त पूरा है नहीं,
हम कौन थे, ये ज्ञान, फिर भी अधूरा है नहीं "
"मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारे आरती
भगवान ! भारत वर्ष में गूंजे हमारी भारती
हो भद्रभावोदभाविनि वह भर्ती हे भगवते
सीतापते ! सीतापते ! गीतामते ! गीतामते !
हाँ लेखनी ! हृत्पत्र पर लिखनी तुझे है यह कथा
दृक्कालिमा में डूबकर, तैयार होकर सर्वथा
स्वछन्दता से कर तुझे करने पड़े प्रस्ताव जो
जग जाए तेरी नोंक से सोये हुए हों भाव जो
संसार में किसका समय है, एक सा रहता सदा
है निशि दिवा सी घूमती सर्वत्र विपदा-सम्पदा
जो आज एक अनाथ है , नरनाथ कल होता वही
जो आज उत्सव मग्न है, कल शोक से रोता वही "
"मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारे आरती
भगवान ! भारत वर्ष में गूंजे हमारी भारती
हो भद्रभावोदभाविनि वह भर्ती हे भगवते
सीतापते ! सीतापते ! गीतामते ! गीतामते !
हाँ लेखनी ! हृत्पत्र पर लिखनी तुझे है यह कथा
दृक्कालिमा में डूबकर, तैयार होकर सर्वथा
स्वछन्दता से कर तुझे करने पड़े प्रस्ताव जो
जग जाए तेरी नोंक से सोये हुए हों भाव जो
संसार में किसका समय है, एक सा रहता सदा
है निशि दिवा सी घूमती सर्वत्र विपदा-सम्पदा
जो आज एक अनाथ है , नरनाथ कल होता वही
जो आज उत्सव मग्न है, कल शोक से रोता वही "
हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है।
पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है॥
हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ।
खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ॥
आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अंत में।
अधपेट खाकर फिर उन्हें है काँपना हेमंत में॥
चारुचंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में,
स्वच्छ चाँदनी बिछी हुई है अवनि और अम्बरतल में।
पुलक प्रकट करती है धरती, हरित तृणों की नोकों से,
मानों झीम रहे हैं तरु भी, मन्द पवन के झोंकों से॥
पंचवटी की छाया में है, सुन्दर पर्ण-कुटीर बना,
जिसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर, धीर-वीर निर्भीकमना,
जाग रहा यह कौन धनुर्धर, जब कि भुवन भर सोता है?
भोगी कुसुमायुध योगी-सा, बना दृष्टिगत होता है॥
किस व्रत में है व्रती वीर यह, निद्रा का यों त्याग किये,
राजभोग्य के योग्य विपिन में, बैठा आज विराग लिये।
बना हुआ है प्रहरी जिसका, उस कुटीर में क्या धन है,
जिसकी रक्षा में रत इसका, तन है, मन है, जीवन है!
सरस्वती पत्रिका : सरस्वती एक सचित्र मासिक थी , जिसमे रंगीन चित्र भी छपते थे। मैथिलीशरण गुप्त जी की अनेक रचनाएं इन चित्रों को उजागर करती थी।, उनमे कहिए तो जान डालती थी।
एक सच्चे राष्ट्र कवि भी थे. इनके काव्य हिंदी साहित्य की अमूल निधी माने जाते हैं. महान ग्रन्थ ‘भारत भारती’ में उन्होंने भारतीय लोगों की जाति और देश के प्रति गर्व और गौरव की भावना जगाई है। अंतिम काल तक राष्ट्र सेवा में अथवा काव्य साधना में लीन रहने वाले और राष्ट्र के प्रति अपनी रचनाओं को समर्पित करने वाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी 12 दिसम्बर सन 1964 ई. को अपने राष्ट्र को अलविदा कह गए।
कवि मैथिलीशरण गुप्त की रचनायें:
यशोधरा:
रंग में भंग
साकेत
भारत भारती
पंचवटी
जय भारत
पृथ्वीपुत्र
किसान
हिन्दू
चन्द्रहास
कुणालगीत
द्वापर आदि.
पुरस्कार | Maithili Sharan Gupt's Awards
इलाहाबाद विश्विद्यालय से इन्हें डी.लिट. की उपाधि प्राप्त हुई थी.
सन 1952 में गुप्त जी राज्य सभा में सदस्य के लिए मनोनीत भी हुए थे।
1952 ई. में मैथिलीशरण गुप्त जी को राजसभा सदस्य मनोनीत किया गया, जहां उन्होंने अपने पद के प्रति पूरी निष्ठा से 12 साल सेवा प्रदान किया और सदन की गरिमा बढाते रहे। वहां भी वो अपनी कविता से सभी सांसदों को मंत्रमुग्ध करते रहे। उनकी अभिव्यक्ति ज्यादातर कविताओं में ही हुआ करती थी।
मैथिलीशरण गुप्त जी को सन् 1954 ई. में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
1954 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था।
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Rashtr Kvi Maithili Sharan Gupt's Biography In Hindi .
मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन परिचय।
ये मैथिलीशरण गुप्त जी के जीवन परिचय का अंश मात्र है, मैं समय समय पर आप सबको और जानकारियां इकट्ठा करके देती रहूंगी, उम्मीद है, आप सब को ये साहित्य संवाद पसंद आए होंगे।
मैथिली शरणगुप्त जी के जीवन से जुड़ी अच्छी जानकारी शेयर की।
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