नवरात्री के छठे दिन खष्टी तिथि को माँ कात्यायनी की पूजा विधि , उपासना, मंत्र, और प्रिय भोग

नवरात्री के छठे दिन खष्टी तिथि को माँ कात्यायनी की पूजा विधि , उपासना, मंत्र, और प्रिय भोग 

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नवरात्री के छठे दिन खष्टी तिथि को माँ कात्यायनी की पूजा विधि , उपासना, मंत्र, और प्रिय भोग 




शास्त्रों के अनुसार माँ दुर्गा की छठी अनुभूति है , माँ कात्यायनी। इस दिन माँ कात्यायनी की पूजा आराधना करने माँ प्रसन्न  होती है, और सुख समृद्धि का आशीर्वाद देती है। माता कात्यायनी की उपासना और आराधना से, माता सभी भक्तों पर प्रसन्न होती है और अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति जा वरदान देती है। देवी की उपासना से रोग, शोक, संताप और भय सब नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी कट जाते हैं। 


 

जानते हैं माता कात्यायनी के बारे में कुछ खास रोचक बातें :--

शास्त्रों के अनुसार माता कात्यायनी , ब्रह्मा की मानस पुत्री है और यह देवी दुर्गा के छठे रूप की विभूति भी हैं। उत्तर भारत, बिहार और झारखण्ड में छठ पूजा के दौरान, माता कात्यायनी की ही पूजा का विधान है। जिसे वहाँ की भाषा में छठी मईया कहते हैं, जिसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में किया गया है। 

उत्तरप्रदेश का प्रशिद्ध शहर, वृन्दावन के भूतेश्वर नामक स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे, वही पर कात्यायनी मंदिर है , जो कि माता 51 शक्ति पीठों में एक है , और बहुत प्रशिद्ध है। 

माता कात्यायनी ऋषि कात्यायन की पुत्री थी , जो कि दुर्गा माँ के नौ रूपों में से एक है। शास्त्रों के अनुसार कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती परम अम्बा माता जगदम्बा की संतान प्राप्ति के लिए उपासना की थी उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो तब मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। ऋषि कात्यायन विश्वामित्र के वंशज थे , जिसका उल्लेख स्कन्द पुराण के नगर खंड में कात्यायन को यञवल्क्य का पुत्र बतलाया गया है। उन्होंने श्रौतसूत्र, गृहसूत्र आदि की रचना की थी। 

 माता कत्यायनी का गुण शोधकार्य है। इसीलिए आदिशक्ति का इस वैज्ञानिक युग में भी महत्व सर्वाधिक बढ़ जाता है।


माँ कात्यायनी की पूजा, अर्चना और साधना समय सायं काल में होती है। गोधूलि बेला के समय , धूप -दीप , गूगल आदि से पूजा करने से माँ कात्यायनी प्रसन्न होती हैं, और घर में आने वाली सभी बाधाओं से दूर रखती हैं। 

इस दिन के पूजा में कुंवारी कन्याओं को भी खिलाने अथवा भोग लगाने का विधान हैं। कहते हैं, छोटी और कुँवारी कन्याएं भी देवी के ही रूप में होती है। 


पूजन विधि :--

माता कात्यायनी की पूजा गोधूलि बेला के समय , पिले अथवा लाल वस्त्र धारण करके करनी चाहिए। 

माता को पिले फूल , पिले नैवेद्य और शहद का भोग अति प्रिय है, अतः इन्ही सबका भोग माता को अर्पण करना चाहिए। माता के सामने पीले फूल और दीप अर्पण  करने के साथ 3 गाँठ हल्दी के भी चढाने चाहिए  इसके पश्चात मंत्र का उच्चारण कर जाप करना चाहिए। 

माँ कात्यायनी के मंत्र जाप :--

"कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरि। 

नन्दगोपसुतं देवी, पति में कुरु ते नमः।।"

तत्पश्चात हल्दी के गाँठ को अपने पास रख ले और शहद माँ को अर्पण कर दे। 


अगर संभव हो तो शहद चाँदी या मिटटी के बर्तन में ही अर्पण करे तो ज्यादा अच्छा रहेगा। 

जाप मंत्र  :--

"ॐ ह्रीं नमः।।

चन्द्रहासोज्ज्वलकरशाईलवरवाहना। 

कात्यायनी शुभं दधादेवी दानवघातिनी।।

मंत्र :--

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः।।


देवी का भोग:--

शहद वाली पान माता को प्रिय है अतः शहद युक्त पान माता को अवश्य अर्पित करे। 


माता कात्यायनी देवी की कथा :--

नवरात्री के छठे दिन खष्टी तिथि को माँ कात्यायनी की पूजा विधि , उपासना, मंत्र, और प्रिय भोग 



माता कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं।

माता की चार भुजाएं हैं, दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में रहता है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। माता के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले कर में कमल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है। इनकी उपासना मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। 

महिसासुर , जो की रम्भासुर का पुत्र था और अत्यंत बलशाली भी था। उसने अपने कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके , देवता, असुर और मानव , किसी से भी नहीं मरने का वरदान प्राप्त कर लिया था। वरदान देने से पहले हलाकि ब्रह्मा जी ने सर्त  रखी थी कि जीवन को छोड़कर कोई भी वरदान माँगो। इसलिए बहुत सोचने पर महिसासुर को लगा कि, अगर ये तीनों मुझे नहीं मार पाए , फिर तो मई अमर हो जाऊँगा। और स्त्री तो नाजुक और अबला होती है, भला वो मुझे कैसे मारेगी ? यही सोचकर उसने एक स्त्री से अपने मृत्यु का वरदान मांग लिया। 
ब्रह्मा जी तथास्तु कहकर अपने लोक चले गए।  

महिसासुर के वद्ध के लिए ही माता का अवतरण हुआ था अतः उन्हें महिसासुर मर्दिनी भी कहा जाता है।


माता कात्यायनी की उपासना से वो भक्तों पर प्रसन्न होती है और उनके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट करती हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है। 

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जय माता दी।



 

   

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