"सफ़र जिंदगी का"_Poetry collection on "safar"

"सफ़र जिंदगी का"_Poetry collection on "safar"

1* अब जीने में जो जिंदगी बची है-ab jine me jo zindagi bachi hai.

अब जीने में जो जिंदगी बची है......


अब जीने में जो जिंदगी बची है......

उनकी यादें हैं... जो रख ली है मैंने...


क्या जानें ईश्क़ था कि क्या था...

पर अब जब वो नही है...

बस जिंदगी की जर्द रख ली है मैंने....


वो था जो मेरा अपनो में कोई ख़ास था....

अब जो है बस साँसे उधार की रख ली है मैंने।


अब जो भी है बस निभानी है....

ख़ुशी तो बस ख़यालो में कैद रख ली है मैंने।

अब जीने में जो जिंदगी बची है...(you tube video)

कभी प्यार,और ईश्क़ जो था दिल से था

अब दिलों की महफ़िल में भी... 

दिमाग की बाज़ार लगा ली हमनें।


क़हक़हे गुज़रे जमाने की बात हुई....

अब खामोशियों की बाज़ार लगा ली हमने।


अभी जीने के सफऱ में हैं.....

कुछ रवायतें अधूरे हैं...

फ़िलहाल!!!ख़्वाब में ख़ाक से मिलने की

 ताबीर बना ली हमने।


वो जो सभी अपने थे.... अपने ही हैं

कोई हमदर्द भी मिलेगा.…..

उस शीशमहल को.....

अपने ही हाथों चूर कर ली है हमनें।


अब मैं हूँ और मेरी ख़ामोश कहानी है
बस उसी को बाबस्ता पढ़ने की.….. 
जिंदगानी बना ली हमनें।





"सफ़र जिंदगी का"_Poetry collection on "safar"


2* सफ़र_safar

Safar jindagi ka, (you tube video)


जिंदगी के सफ़र में यूँ ही....
रास्ते मे तेरा शहर आ गया था।

जिंदगी के सफ़र में यूँ ही....
रास्ते मे तेरा शहर आ गया था।

शहर नया था...
आवोहवा अपना सा था।
क़दम रुके-रुके से,
जैसे मंजिल यहीं थी।

क़दम रुके-रुके से,
जैसे मंजिल यहीं थी।

किसी की तलाश नही थी...
हाँ, पर किसी के इंतज़ार.... 
का एहसास पूरा था।
जैसे बालकनी से,
सफ़ेद ओढ़नी और लाल बिंदी संग,
इंतज़ार मेरा ही कर रहा थी।

सफ़ेद ओढ़नी और लाल बिंदी संग,
इंतज़ार मेरा ही कर रहा थी।

हवा की भी थोड़ी, 
शैतानियों सी मिज़ाज़ लग रही थी।
जुल्फों संग खेलते, 
उसके चेहरे पर आ रहे थे।

जुल्फों संग खेलते, 
उसके चेहरे पर आ रहे थे।

सफ़र में पड़ा वो पूरा शहर,
आज मेरे बरामदे में,
अपराजिता के पौधें को, 
पानी से सींच रही है।

Poetry collection on "safar"




3* सफ़र जिंदगी का, जैसे ख़ानाबदोश।

Safar zindagi ka, jaise khanabadosh.



ज़िन्दगी सफऱ में ही कटे.. तो बेहतर है,

मंजिल के बाद क्या होगा..? किसने देखा है!

सफ़र जिंदगी का, जैसे ख़ानाबदोश।
Safar zindagi ka, jaise khanabadosh

इसे भी देखे और सुने:--

सफऱ ज़िन्दगी का, जैसे ख़ानाबदोश।


ज़िन्दगी ख़ानाबदोश की तरह है

है न! क्यूँ नही?

मैं बताती हूँ, कि कैसे ?

हमारी पूरी डोर किसी के हाथ मे है।

न जन्म हमारी मर्जी से, 

और न ही मौत हमारे हाथ मे है।

एक पुरुष और स्त्री के.... 

आत्मसमर्पण से सुरु हुआ ये सफर....

माँ के कोख़ में नौ महीने तक.... 

हर दिन एक नए बदलाव के साथ। 

न जाने सुकून भरी या बेचैनी में....

पर उस कोख़ की कर्ज़दार..... 

जिंदगी भर के लिए।

क्रंदन से सुरु हुआ जन्म का ये सफऱ.... 

फिर से दूध के एक - एक कतरे की कर्ज़दार.... 

नाम किसी का दिया हुआ, 

कपड़े किसी के, पहचान किसी का..... 

लेकर चलता जिंदगी का ये सफऱ।

खिलौना-खाना, बचपन की शैतानियाँ, 

माँ का आँचल, बाबा के कंधे का सिंघासन, 

दादा-दादी का वात्सल्य भरा जीवन, 

दोस्तों की टोली, बस आनंद ही आनंद। 

लेकिन, संतुष्टि नही।

जल्दी से जल्दी बड़ा होना है। 

एक उम्र से दूसरे उम्र तक का सफर...

बड़े भी हो गए, 

यानी बड़े होने की पहली सीढ़ी.... 

और पहली ही सीढ़ी से...... 

स्कूल के बस्तों की बोझ से सुरु हुई...

अनगिनत, अनचाहे ज़िन्दगी के सफऱ.... 

उस सफऱ में दबाबों का बोलबाला।

जल्दी उठना जल्दी सोना, 

हर काम मे अब्बल होना। 

डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, 

शिक्षक और न जाने क्या-क्या...

हर क़दम दूसरे से आगे होने का सफर....

ठीक से पता नही, 

लेकिन हर अब्बल पद्दवी पर नाम लिख जाना। 

नाम लिख गया....

लेकिन कल वो हमारा होगा भी या नही....

पता नही। 

पर अब हम सबको बताते हैं, 

कि हमे डॉक्टर, इंजीनियर, 

फलाना-ढेंकाना बनना है, 

लेकिन किसी का भी मतलब पता नही।

कहने का मतलब.... 

जीवन भर किसी न किसी चाहत 

या महत्वाकांक्षाओं के पीछे भागने वाला.....

जिंदगी का सफ़र।

तो हुए न....ख़ानाबदोश!



#Safar_zindagi_ka_jaise_khanabadosh. #ज़िंदगी, #अपरिचिता, #अभिव्यक्ति, #जीवन_परिचय, #abhivyakti, #Aparichita, #you_tube_Video, #कविता, #Hindi_poetry,#"सफ़र_जिंदगी_का_Poetry_collection_on_safar"

Post a Comment

If you have any doubt, please let me know.

Previous Post Next Post