उड़ान-Udan

 उड़ान-Udan



उड़ान चाहे जितनी भरो,

सबकी मंजिल, 

मिलती बस एक जगह है...

असमसान तक।

फिर सब राख....।

फिर ये फ़रेब का बाजार क्यूँ ?

अपनो से ही, 

स्पर्धा अपार क्यूँ?

बड़े होशियार निकले,

निकल आए सबसे आगे।

हर रिस्तों की लाश पर,

उड़ान ऊँची और ऊँची!

इतनी ऊँची कि खोए हर एहसास....

गली-कूंचों की हास-परिहास।

क्यूँ हर बात भूले हम,

कि जमीन ही अपनी जगह है,

रिस्तों में मिठास की उड़ान अहम है।

उड़ान चाहे जितनी भरो,

सबकी मंजिल, 

मिलती बस एक जगह है...

असमसान तक।


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