रिवाजो के नाम पर, जिन्दों को दफनाते देखा है।

रिवाजो  के नाम पर, जिन्दों को दफनाते देखा है।
Rivazon ke naam par jindon ko dafnaten dekha hai .

रिवाजो  के नाम पर, जिन्दों को दफनाते देखा है।





यहाँ इंसानों की बस्ती में 
इंसानो को ही इंसानो की बोटी
को नोचते देखा है।
रिवाजो  के नाम पर, 
जिन्दों को दफनाते देखा है।

क्या कम है?
 जिंदा लास बनने के लिए कि,
अब न उसका हमसफर है कोई
फिर भी रिबायतों के नाम पर,
हर एक साँस पर ,
अपनो को ही पहड़ा लगाते देखा है।

रिवाजो  के नाम पर, जिन्दों को दफनाते देखा है।

प्रीतम के जाने से
बंजर बनी मन की उजाड़ बगिया मे 
पथरिले रेत बिछाते
अपने ही रहनुमा को देखा है।
हुक भरती धड़कनो पर भी,
परहेज़ो के क़सीदे पढ़ते
अपने ही खैरख्वाहो को देखा है।

रिवाजो  के नाम पर, जिन्दों को दफनाते देखा है।

खुशी के रंग तो 
अब भर न सकेगी कभी,
प्राकृतिक गुलजारो से बेजार करते
अपने ही दर्दमंद को देखा है। 
जी तो अब न सकेगी कभी,
पर सांस लेने की इजाज़त
 तो दो उसे भी,
 कि अधमरी ही सही, 
ज़िन्दा है अभी।

यहां इंसानों की बस्ती में,
इंसानो को ही,
 इंसानों की बोटी को नोचते देखा है।

2 Comments

If you have any doubt, please let me know.

  1. रिवाज़ो के नाम पर हूक भरती सांसो को छीनने का प्रयाश।

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  2. बहुत सही लिखा है शिखा जी, कुछ रिवाजें ऐसी हैं जो जीते जी मारती रहती हैं। सांसों पर तो बस नहीं बस मर मर के जीने पर मजबूर।

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