यक़ीन_yakin

 



यक़ीन,yakin,kavita, shayri

यक़ीन,yakin,kavita, shayri


यक़ीन,yakin


लफ्ज़ो का बाज़ार
गर्म बहुत है,
जिसे देखो,
बना तारणहार बहुत है।

हमनें भी सोचा चलो,
जरा यक़ीन की दरियाँ
में दो क़दम रखे तो हम भी,
यकीन हुआ, कि बातों की 
कीमत कम बहुत है।

यहाँ बिकती है जुबा सस्ते
में बहुत है।

किसपे यक़ीन करे हम,
जिसे देखो, नकाब पर नकाब चढ़ाए हैं,
झूठो का बोलबाला
बहुत है।

हम भी वाकिफ़ ही थे जनाब..
क्या करे हम भी
आदत से मजबूर बहुत हैं।
चोट खाने की आदत सी पड़ी है..
यूँ ही सब पर यकीन करने की
लत लगी बहुत है।

सो चख कर ही छोड़ते हैं,
गमों का दावत......
चोट खाने की भूख बहुत है।

आगे भी यूँ यकीन करते रहंगे हम तो,
की जानते हैं, जिंदगी के दिन बहुत कम है,
और साथ हमारे जाने के लिए बस
हमारे किरदार बहुत है।

शुक्रिया💐🙏🙏


Aparichita हरदम हरवक्त आपके साथ है। Aparichita कुछ अपने, कुछ पराए, कुछ अंजाने अज़नबी के दिल तक पहुँचने का सफर। aparichita इसमें लिखे अल्फ़ाज़ अमर रहेंगे, मैं रहूं न रहूं, उम्मीद है, दिल के बिखड़े टुकड़ो को संभालने का सफर जरूर आसान करेगी। aparichita, इसमें कुछ अपने, कुछ अपनो के जज़बात की कहानी, उम्मीद है आपके भी दिल तक जाएगी।




✍️Shikha Bhardwaj ❣️


2 Comments

If you have any doubt, please let me know.

  1. अति सुन्दर है आपकी रचना धन्यवाद जी
    शुभ प्रभात

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