मेरे हौसले की उड़ान अभी बाकी है।

मेरे हौसले की उड़ान अभी बाकी है।

मेरे हौसले की उड़ान अभी बाकी है।



 देखो जरा इनको
मालूम होता है , जिम्मेदारियां और वक्त ने 
कैसे कंधे पर हुमच्चा मारा है।
रीढ़ झुक गई है
लेक़िन हौसले बुलंद है ।
बता रहा हो जैसे ...मैं अभी बाक़ी हूँ।
परिवार की रीढ़ अभी बाक़ी है।


हौसलें बुलंद हैं....
कह रहा हो जैसे..
वक्त की आंखों में आंखे डालकर....
चाहे तू जितने पतझड़ ला,
वसंत मुझे खिलाना आता है।

इन हौसलें ने न जाने जीवन के
कितने पतझड़ और बहार देखें हैं।
लेकिन ये हौसले है कह रहा जैसे
ऐ वक्त तू अपना काम कर 
मैं अपना करता जाता हूँ।

मेरी हड्डियाँ झुक गई है,

मेरा विश्वास और हौसला झुका नही।


कुछ बाते बाकी है, कुछ वादे बाकी है।
हैं कई जिम्मेदारियां जो निभाने बाक़ी हैं।
हर सुबह सूरज मेरी प्रेरणा
और शाम शांति की छाया है।

मेरे हौसले की उड़ान अभी बाकी है।

मेरे हौसले की उड़ान अभी बाकी है।




ये कौन हैं मैं नही जानती, पर हर रोज ये मेरी रसोई की खिड़की के पास चापा कल है, उसपर नहाने आते है।चाहे अभी ये दिसम्बर का महीना ही चल क्यों नही रहा है ! पर इसी वक्त ये एकदम झुके हुए कमर के साथ चेहरे पर शांति की छाया लिए आ जाते है, मेरा भी हर रोज का यही routine है कि मैं भी इस वक्त रसोई में ही होती हूँ। अनायास ही इनकी शारीरिक अवस्था, कार्यशैली और हौसलों को देखकर मैं दंग रह जाती हूँ ।

          

                  ✍️Shikha Bhardwaj ❣️


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