" गाँव " उमंगो और खुशियों का डेरा।![]() |
" गाँव " उमंगो और खुशियों का डेरा। |
" गाँव " उमंगो और खुशियों का डेरा।
जहाँ होता ,
संस्कृति और संस्कारो का सवेरा।
हर दिशा बस खुशियों का बसेरा।
गाँव के सूर्योदय की छटा भी अलबेली।
चिड़ियों और चूजों की गान सुरीली,
तो मस्त झूमती गेहूं की बाली।
सरसों और तीसी बिखेरती रंग निराली,
तो मक्के पर भी है यौवन छाई।
" गाँव " उमंगो और खुशियों का डेरा।
सीधी-सादी गाय रंभाई,
तो बकड़ियों ने भी ऊँची छलांग लगाई।
जैसे बच्चों ने हो दौर लगाई,
और अपनी-अपनी टोली सजाई।
काकी-नानी ने कहकहे लगाई,
तो काका-मामा ने भी चौपाल सजाई।
जहां बड़े-बूढो के आशीर्वादों का रेला।
तो कहीं घूंघट के पीछे मुस्कानो का खेला।
" गाँव " उमंगो और खुशियों का डेरा।
किसी एक घर, गर बजी सहनाई,
तो सबके घर मे रौनक छाई।
नही किसी का यहां काम अकेला,
सभी मिल-जुल करते हर काम सजीला।
"गाँव" उमंगो और खुशियों का डेरा।
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मेरे हौसलें की उड़ान अभी बाक़ी है।
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#Aparichita हरदम हरवक्त आपके साथ है। #Aparichita कुछ अपने, कुछ पराए, कुछ अंजाने अज़नबी के दिल तक पहुँचने का सफर। #aparichita इसमें लिखे अल्फ़ाज़ अमर रहेंगे, मैं रहूं न रहूं, उम्मीद है, दिल के बिखड़े टुकड़ो को संभालने का सफर जरूर आसान करेगी। #aparichita, इसमें कुछ अपने, कुछ अपनो के जज़बात की कहानी, उम्मीद है आपके भी दिल तक जाएग
Shikha Bhardwaj____✍️
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गांवों की तो हर बात निराली है
ReplyDeleteशहरों में कंकरीट गावों में हरियाली है...
बहुत सुंदर रचना 👌👌