ये विरानियाँ मुझे भाने लगी है... अब हर्फे इन वीरानियों का नुकसान हरगिज नही।
विरानियाँ |
ये विरानियाँ मुझे भाने लगी है... |
कोई शोर नही, कोई सवाल नही।
ना ही इल्जामों की फेहरिस्त लम्बी है।
एक खामोशी है....जो मुझे सुनती है, समझती है।
ये विरानियाँ मुझे भाने लगी है...
अब हर्फे इन वीरानियों का नुकसान हरगिज नही।
इंसानों से बेहतर ये दरों-दीवार लगने लगी है।
बेवज़ह ही उठाने को पास इनके उंगली नही,
ये विरानियाँ मुझे भाने लगी है...
फ़क़त धूप से भी दूरी बढ़ाने लगी हूँ,
कि इनके साये में भी साथ चलते हैं मेरे साये,
अब ये साये भी मुझे याद उसकी दिलाने लगी है।
जहाँ अंधेरे में मुझे साथ छोड़...
दुनियादारी की सीख दिलाने लगी ....
कि अब किसी ईश्क़ की आहट भी नही...
मेरी धड़कनों में जो ये शांति है...
जिंदगी मुक़म्मल सी लगने लगी है।
मैं जो चुप हूँ, सही है....
डर है जो, अगर ये ख़ामोशी टूटी फ़िर....
ये शैलाब शहर न बहा दे कहीं।
ये विरानियाँ मुझे भाने लगी है...
अब हर्फे इन वीरानियों का नुकसान हरगिज नही।
ye-viraaniyaan-mujhe-bhane-lagi-hai-ab-harfe-in-viraniyon-ka-nuksaan-hargiz-nhi
#shayri#kavita#अपरिचिता#quotes#अभिव्यक्ति#शायरी#Quotes#Aparichita
✍️Shikha Bhardwaj ❣️
बहुत रचना...👌👌
ReplyDelete