क्या तुझे याद नहीं ?-kya tujhe yaad nahi ?

क्या तुझे याद नहीं ? 
kya tujhe yaad nahi ?

क्या तुझे याद नहीं ? 



kya tujhe yaad nahi ?


 क्या तुझे याद नहीं ? की तूने ही कभी !
रिस्तो में की चासनी घोली थी। 
जिंदगी जीने का आयाम दिया था।  
नीरस जिंदगी में ख़ुशी का पैगाम दिया था। 

धरा और नील गगन के मिलन सा ,
सुखद एहसास दिया था। 
क्या तुझे याद नहीं ? तूने ही कभी !
 ख़ुशी से मन सारंग किया था। 

तू भूल गई , भूल सका न मैं। 
बुलंद खुले आकाश में ,
जब  हमने सपनो के परवाज़ लिए 
उस सतरंगी ख्वाबो को बुना था। 
उस पल जन्नत हमारा वही था । 

क्या सच में तुझे याद नहीं ,
खूबसूरत रंगो की जो बारात सजाई थी कभी साथ-साथ 
अब भी उसका दूल्हा बना सजा बैठा हूँ मैं। 
गर है तुझे याद ,तू भी आ लाल चुनर डाल। 

तू अब भी वही है, फिर न जाने क्या कमी है ?
जिंदगी बस फीकी और बेज़ार हुई है।
वही आकाश ,वही चाँद ,लेकिन चाँदनी !
 तिमिर में तब्दील हो गई है। 

टिमटिमाते तारो से भरे आकाश में जैसे  
मायुशियों के घने बादलो का कोहराम हुआ है। 
मन की बुलंदियों पर भी जैसे ,
उदाशियों के भीषन आगाज हुआ है। 
इंद्रधनुषी रंगो की छटा भी जैसे बेजार हुई है। 

काश ये सपनो का खेल हो बस ,
 वो पल फिर लौटे, गर ,विस्वास में है आस ,
वो सुकूँ  फिर आएगी ,वो पल फिर आएंगे। 
तुझे याद सब आएगी। 

क्या क्या तुझे सच में याद नहीं ? 

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1 Comments

If you have any doubt, please let me know.

  1. यादों के झरोखे से.....लाजवाब👌👌

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