क्या आप जानते हैं?"रामायण" राम ही नही, लक्ष्मण के भी त्याग की गाथा है।

   क्या रामायण के इन खास पहलुओं "जिसमे लक्ष्मण जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है..,"को आप जानते हैं?

"रामायण" राम ही नही, लक्ष्मण के भी त्याग की गाथा है।





हमारी संस्कृति बहुत ही अद्भुत तथ्यों और आश्चर्यों से भरी हुई है। जिन्हें हम जितना ही जानने की कोशिश करते हैं उससे उतना ही ज्ञान की अमृत बाहर निकलती है।हर एक तथ्यों के साथ नई सिख और नए उपदेश छुपे होते हैं।

जिसमे से एक है कि:

केवल लक्ष्मण ही एक ऐसे योद्धा थे जो मेघनाद का वध कर सकते थे, और किसी मे इतना साहस नही था या फिर मेघनाद ने ऐसे ही वरदान प्राप्त किए थे कि लक्ष्मण में ही वो बात थी जो मेघनाद को परास्त कर सकते थे।

क्या कारण रही होगी..? जानने के लिए पढ़िये पूरी कथा:


    कहते हैं राम जी के यहाँ हनुमानजी का नाम लिए वगैर कोई काम नही बनेगा , ठीक उसी तरह लक्ष्मण के वगैर भी रामभक्ति की गाथा संसार में भर में नहीं गाई जा सकती। लक्ष्मणजी की भक्ति भी अद्भुत थी। लक्ष्मणजी की कथा या उनके नाम के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है।  एक बार अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और बातों बातों में लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया ।


भगवान श्रीराम बताए जा रहे थे कि लंका युद्ध में उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों से लड़े और उनका का वध किया और साथ ही लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली, पराक्रमी असुरों का बद्ध कर मारा डाला॥


     अगस्त्य मुनि बताते हैं कि कैसे - श्रीराम के सामने रावण और कुंभकर्ण निश्चय ही प्रचंड वीर थे, लेकिन इन सब मे सबसे बड़ा वीर तो मेघनाध ही था। जिसमें इतना साहस और बल था कि अंतरिक्ष में स्थित होकर इंद्र से युद्ध कर और उसे बंदी बनाकर  लंका ले आया था।

    उस समय ब्रह्मा जी को इंद्रजीत से दान के रूप में इंद्र को माँगना पड़ा था तब जाकर इंद्र मुक्त हुए थे।उस योद्धा का वध लक्ष्मण के द्वारा किया गया था इसलिए वे सबसे बड़े योद्धा हुए ।


    श्रीराम जो कि सभी बातों को जानतें थे, और जाने भी क्यों न भला? वो तो स्वयं नारायण के अवतार थे। उन्हें अपने भाई की ख्याति को भी तो संसार के सामने लानी थी।लेकिन अभी वो मनुष्य रूप में थे और इस रूप की मर्यादा सिर्फ बड़ो का अनुकरण करना सिखाती है... सो वो भी दिलचस्पी के साथ लक्ष्मण के वीरता की कथा में अपने आप को समर्पित कर दिया। राम जी को आश्चर्य हो रहा था लेकिन वो भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे और कौतूहल के साथ राम जी के मन मे भी सब जानने की जिज्ञासा पैदा हुई जा रही थी कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था।


     अगस्त्य मुनि कहते हैं कि- प्रभु इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जो.....


 (१) चौदह वर्षों में  एक बार भी न सोया हो,


   (२) वैसा वीर जिसने चौदह साल किसी भी इस्त्री का मुँह तक नही देखा हो, और


   (३) इतना ही नही चौदह साल तक उसने भोजन को भी हाथ न लगाया हो ॥

 श्रीराम आश्चर्यचकित हो कर बोले- परंतु मैं तो बनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता ही रहा था । 

    मैं सीता और लक्ष्मण वनवास के समय तीनो एक साथ रहते थे। मैं और सीता एक कुटी में और बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर लक्ष्मण ने सीता का मुख भी न देखा हो, और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है?


     अगस्त्य मुनि सारी बात समझकर मुस्कुराए॥ प्रभु से कुछ छुपा है भला! दरअसल, सभी लोग सिर्फ श्रीराम का गुणगान करते थे, लेकिन प्रभु चाहते थे कि लक्ष्मण के तप और वीरता की चर्चा भी अयोध्या के घर-घर में हो। इसलिए वो इस तरह की प्रश्नों को सभी के सामने रख रहे थे।


   अगस्त्य मुनि ने कहा – इस बात की पुष्टि तो लक्ष्मण ही कर सकता है, क्यों न लक्ष्मणजी से ही पूछा जाए ।


    लक्ष्मणजी को बुलाया गया, वो आए, प्रभु ने कहा कि आपसे जो पूछा जाए उसे सच-सच कहिएगा।


     प्रभु श्री राम ने पूछा- 

हम तीनों चौदह वर्षों तक साथ रहे फिर तुमने सीता का मुख कैसे नहीं देखा ?यह कैसे संभव है, तुम्हे नित्य फल दिए गए फिर भी तुम अनाहारी रह गए, यह कैसे हुआ?, और सबसे बड़ी बात १४ साल तक सोए भी नहीं ? यह कैसे हुआ ?


    फिर लक्ष्मणजी ने बताना सुरु किया:


- भैया जब हम भाभी को तलाशते हुए ऋष्यमूक पर्वत पहुँचे तो वहाँ सुग्रीव ने हमें उनके अनेक आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा।

  

    आपको स्मरण होगा मैं वहाँ उनके सारे आभूषणों में सिर्फ पैरों के नुपूर को ही पहचान पाया उसके अलावे कोई भी आभूषण नहीं पहचान पाया था क्योंकि मैं तो कभी भी उनके चरणों के ऊपर देखा ही नहीं था।


   और जहाँ तक सवाल है चौदह वर्ष नहीं सोने के बारे में, तो सुनिए – आप औऱ माता एक कुटिया में सोते थे. मैं रातभर बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में खड़ा रहता था. एक दिन निद्रा ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो मैंने निद्रा को अपने बाणों से बेध दिया था॥


      निद्रा ने हारकर स्वीकार किया कि वह चौदह साल तक मुझे स्पर्श नहीं करेगी लेकिन जब श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हो रहा होगा और मैं उनके पीछे सेवक की तरह छत्र लिए खड़ा रहूंगा तब वह मुझे घेरेगी और मैं कुछ नही कर पाऊंगा। 


      और जब आपका राज्याभिषेक हो रहा था, आपको याद होगा उसी समय मेरे हाथ से छत्र गिर गया था।


    अब सुनिए कि मैं १४ साल तक अनाहारी कैसे रहा! मैं जो फल-फूल लाता था आप उसके तीन भाग करते थे. एक भाग देकर आप मुझसे कहते थे लक्ष्मण फल रख लो॥ 

     आपने कभी फल खाने को नहीं कहा- फिर बिना आपकी आज्ञा के मैं उसे खा लेता, ये कैसे संभव था?


   मैंने सभी फलों को संभाल कर रख दिया, वो सभी फल उसी कुटिया में अभी भी रखे होंगे ॥ प्रभु के आदेश पर लक्ष्मणजी चित्रकूट की कुटिया में से वे सारे फलों की टोकरी लेकर आए और दरबार में सभी के सामने रख दिया।फलों की गिनती शुरू हुई, सात दिन के हिस्से के फल नहीं थे।


    प्रभु श्री राम ने कहा- इसका अर्थ है कि तुमने सात दिन आहार लिए, उसके बाद लेना बंद कर दिए।


     फिर लक्ष्मणजी ने सात फल कम होने के बारे बताया कि उन सात दिनों में फल आए ही नहीं :—

1.जिस दिन हमें पिताश्री के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली,उस दिन हम निराहारी ही रहे थे।


2. जिस दिन रावण ने माता का हरण किया उस दिन फल लाने की सुध या भूख की सुध कहाँ थी ?तो फल भी लाने कौन जाता, सो उस दिन भी फल नही आया।


3. जिस दिन समुद्र की साधना में लीन होकर आप उससे लंका जाने की राह मांग रहे थे, ।


4.जिस दिन आप इंद्रजीत के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे थे।


5. जिस दिन इंद्रजीत ने मायावी सीता को काटा था और हम शोक में रहे थे, उस दिन भी फल नही आया था।


6. जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी थी,

7.और जिस दिन आपने रावण-वध किया था।


  इन दिनों में हम बस शोकाकुल ही रहे थे और हमें भोजन की सुध ही कहां थी। 

विश्वामित्र मुनि से मैंने एक अतिरिक्त विद्या का ज्ञान लिया था- जो था , बिना आहार किए जीने की विद्या. उसके प्रयोग से मैं चौदह साल तक अपनी भूख को नियंत्रित कर सका और  जिससे इंद्रजीत भी मारा गया।


    भगवान श्रीराम ने लक्ष्मणजी की इन तपस्याओ के बारे में सुन...भावविभोर उन्हें ह्रदय से लगा लिया।

इस तरह से जैसे श्री राम रामायन के मुख्य पात्र हैं, ठीक उसी तरह लक्ष्मण का भी योगदान कम नही रहा है।

सीखने वाली बात है कि जब हर कोई अपने सामर्थ्य के हिसाब से योगदान देने की कोशिश करता है वहीं से रामायण की सुरुआत होती है।

चाहे वो घर हो या समाज, है फिर देश ही क्यों न हो।

उम्मीद है....रामायण का ये एकदम छोटा सा अंश आप सभी को अच्छा लगेगा और आप इससे कुछ सीखकर अपना और समाज के कल्याण में भागी होंगे।

         🙏🏼💐🚩जय जय सियाराम🚩💐🙏🏼



                                               ✍️Shikha  Bhardwaj🙏🏼


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