ये कैसी ख़ामोशी है?

 ये कैसी ख़ामोशी है?

Ye kaisi khamoshi hai?
ये कैसी ख़ामोशी है?


ये कैसी ख़ामोशी है?

बस शोर किए जा रही है।

हर पल हर जगह।

उन यादों से उन लम्हों से...

जितना ही भागती हूं....

बस मुझे कैद किए जा रही है।

ये कैसी खामोशी है?

दिल का दर्द.... 

सिर्फ़ जहन तक नही होता..

बदन टूटता है, 

आंखे रिसती है।

जितना संभालो खुद को...

उतनी ही बिखड़ती जाती है।

और उसकी खनक,

धड़कनों को बेदम करती जाती है।

ये कैसी ख़ामोशी है? 

सांसों को न रोकती न ही लय देती है,

बस गले में आकर अटकी पड़ी है।

जुबा कुछ बोल नहीं पाती,

बेचैनियों का शोर...

जीना दूभर और

आँखे सावन समेटे खड़ी है।

ये कैसी ख़ामोशी है?

यादों की आहट.... 

और पलको के पीछे का समंदर...

सारे दायरे लांघने को बेताब खड़ी है।

ये कैसी ख़ामोशी है?


कि भीतर जो इक चिंगारी दबी पड़ी है...

उसे बस हर पल, हर लम्हा...

हवा पुरजोर दिए जा रही है।

ये कैसी ख़ामोशी है?

बस अंधेरों का शोर....

दूर तलक सुनसान राहें.....

उन राहों की खामोशी....

उस खामोशी के बीच की ये

दम घोटती जिंदगी....

जान से ज्यादा..... 

मौत की सिफ़ारिश लिए खड़ी है।

ये कैसी ख़ामोशी है?

ये कैसी ख़ामोशी है?


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