चलो मैं फिर तुमपर विश्वास की एक आस लेती हूँ।
chalo mai fir tumpar vishwas ki ek aas leti hoon.
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चलो मैं फिर तुमपर विश्वास की एक आस लेती हूँ। |
चलो मैं फिर तुमपर विश्वास की एक आस लेती हूँ।
ना कोई सवाल न कोई मलाल का इख़्तियार लेती हूँ।
तुम्हे लगता है कि मैं बेवज़ह ही तुम्हारा इम्तेहान लेती हूँ
तो ठीक है, आज मैं भी तुझमे ही खुद को खोने का,
प्रण और एक बार लेती हूँ।
ना कोई सवाल न कोई मलाल का इख़्तियार लेती हूँ।
तुम्हे लगता है कि मैं बेवज़ह ही तुम्हारा इम्तेहान लेती हूँ
तो ठीक है, आज मैं भी तुझमे ही खुद को खोने का,
प्रण और एक बार लेती हूँ।
चलो मैं फिर तुमपर विश्वास की एक आस लेती हूँ।
तुम्हारे ही निशा पर चलकर, गीली मिट्टी सा,
मूर्ति का स्वरूप, लेने की शुरुआत
और एक बार करती हूँ।
तुम्हारे ही हाथों चाक देती हूँ,
तुम इसे गढ़ो या कि, कीचड़ बना दो ।
चलो मैं फिर तुमपर विश्वास की एक आस लेती हूँ।
खुद को तुझमे ही खो कर
आख़िरी प्रण फिर एक बार लेती हूँ।
ख़ुद को खोकर तुझको पाना चाहती हूँ।
चलो फिर तुमपर विस्वास करती हूँ।
चलो मैं फिर तुमपर विश्वास की एक आस लेती हूँ।
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सुंदर रचना 👌👌
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